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सोमवार, 26 अक्टूबर 2020

अक्टूबर 26, 2020

शनि ग्रह का राशियों में फल



शनि ग्रह का राशियों में फल


विभिन्न राशियों में स्थित शनि ग्रह का फल :- शनि के द्वादश राशियों में फल शास्त्रों में निम्नानुसार बताए गए हैं


1.मेष राशि :- यदि जन्म कुंडली में शनि मेष राशि में स्थित हो,तो जातक मूर्ख,आवारा,क्रूर,जालफरेब करने वाला,झगड़ालू,उल्टे दिमाग वाला और दु:खी होता है। 


2.वृषभ राशि :- यदि जन्म कुंडली में शनि वृषभ राशि में स्थित हो,तो जातक धोखेबाज, सफल,एकांतप्रिय,संयमी और छोटी-छोटी बातों के कारण चिंतित होने वाला होता है। 


3.मिथुन राशि :- यदि जन्म कुंडली में शनि मिथुन राशि में स्थित हो,तो जातक दु:खी, गंदा, कमजोर, कम संतान वाला और संकीर्ण मन वाला होता है।


4.कर्क राशि :- यदि जन्म कुंडली में शनि कर्क राशि में स्थित हो,तो जातक गरीब, हठी, कम संतान वाला, स्वार्थी और मामा से बिछोह वाला होता है। 


5.सिंह राशि :- यदि जन्म कुंडली में शनि सिंह राशि में स्थित हो,तो जातक हठी, कम संतान वाला, अभागा, अच्छा लेखक और ईष्यालु होता है।


6.कन्या राशि :- जन्म कुंडली में शनि कन्या राशि में स्थित हो,तो जातक गरीब,ईष्यालु स्वभाव वाला,झगड़ालू,असभ्य, कमजोर स्वास्थ्य वाला और पुराने विचारों वाला होता है। 


7.तुला राशि :- यदि जन्म कुंडली में शनि तुला राशि में स्थित हो,तो जातक प्रसिद्ध नेता, राजनीति में रुचि रखने वाला, धनवान, सम्मानित, शक्तिशाली, दानशील और परिस्थितियों में रुचि रखने वाला होता है। 


8.वृश्चिक राशि :- यदि जन्म कुंडली में शनि वृश्चिक राशि में स्थित हो,तो जातक उतावला, कठोर हृदय, संकीर्ण विचारों वाला, हिंसक प्रवृत्ति वाला, दु:खी, विष से खतरा, कमजोर स्वास्थ्य वाला, गरीब और बुरी आदतों वाला होता है।


9.धनु राशि :- यदि जन्म कुंडली में शनि धनु राशि में स्थित हो,तो जातक सक्रिय, चतुर, प्रसिद्ध, शांतिप्रिय, दु:खी विवाहित जीवन में जीने वाला और धनवान होता है। 


10.मकर राशि :- यदि जन्म कुंडली में शनि मकर राशि में स्थित हो,तो जातक कुशाग्र बुद्धि वाला, परिश्रमी, अच्छा घरेलू जीवन जीने वाला, विद्वान, सन्देह करने वाला, बदला लेने वाला और दार्शनिक होता है।


11.कुम्भ राशि :- यदि जन्म कुंडली में शनि कुंभ राशि में स्थित हो,तो जातक नीति में दक्ष, योग्य, सुखी, कुशाग्र बुद्धि वाला और शक्तिशाली शत्रु वाला होता है। 


12.मीन राशि :- यदि जन्म कुंडली में शनि मीन राशि में स्थित हो,तो जातक धनवान, प्रसिद्ध, नम्र, सुखी और दूसरों की सहायता करने वाला होता है।

अक्टूबर 26, 2020

राहु ग्रह का राशियों में फल

राहु ग्रह का राशियों में फल


विभिन्न राशियों में स्थित राहु ग्रह का फल :- राहु के द्वादश राशियों में फल शास्त्रों में निम्नानुसार बताए गए हैं


मेष राशि :- यदि जन्म कुंडली में राहु मेष राशि में स्थित हो,तो जातक साहसहीन,आलसी एवं अनैतिक चरित्र वाला होता है।


वृषभ राशि :- यदि जन्म कुंडली में राहु वृषभ राशि में स्थित हो,तो जातक सुखी,कुरूप,आवेशपूर्ण स्वभाव वाला और धनवान होता हैं।


मिथुन राशि :- यदि जन्म कुंडली में राहु मिथुन राशि में स्थित हो,तो जातक गाने वाला,साधु,साहसी और दीर्घायु होता हैं।


कर्क राशि :- यदि जन्म कुंडली में राहु कर्क राशि में स्थिततो जातक उदार,रोगी, चतुर,धोखेबाज और अनेक शत्रुओं वाला होता हैं।


सिंह राशि :- यदि जन्म कुंडली में राहु सिंह राशि में स्थित हो,तो जातक चतुर,नीति-में दक्षवान,सज्जन और विचारक होता हैं। 


कन्या राशि :- जन्म कुंडली में राहु कन्या राशि में स्थित हो,तो जातक लोकप्रिय, नम्रभाषी,कवि,लेखक, गाने वाला और धनवान होता हैं।


तुला राशि :- यह दिन जन्म कुंडली में राहु तुला राशि में स्थित हो,तो जातक अल्पायु,दाँतो के रोग वाला एवं विरासत में धन पाने वाला होता हैं।


वृश्चिक राशि :- यदि जन्म कुंडली में राहु वृश्चिक राशि में स्थित हो,तो जातकधोखेबाज, अनैतिक चरित्र, रोगी एवं अधिक खर्च करने वाला होता हैं।


धनु राशि :- यदि जन्म कुंडली में राहु धनु राशि में स्थित हो,तो जातक प्रारम्भिक जीवन में सुखी,बचपन में गोद लिया जाने वाला एवं बुरा मित्र होता हैं।


मकर राशि :- यदि जन्म कुंडली में राहु मकर राशि में स्थित हो,तो जातक कम खर्च करने वाला, कुटुम्बहिन्,दाँत का रोगी,विद्वान, लेखक और कम बोलने वाला होता हैं।


कुम्भ राशि :- यदि जन्म कुंडली में राहु कुंभ राशि में स्थित हो,तो जातक कम खर्च करने वाला, कुटुम्बहिन्,दाँत का रोगी,विद्वान, लेखक और कम बोलने वाला होता हैं


मीन राशि :- यदि जन्म कुंडली में राहु मीन राशि में स्थित हो,तो जातक आस्तिक, कुलीन,शांत,कलाप्रिय और दक्ष होता हैं।  

अक्टूबर 26, 2020

गुरु ग्रह का राशियों में फल

गुरु ग्रह का राशियों में फल


विभिन्न राशियों में स्थित गुरु ग्रह का फल :- गुरु के द्वादश राशियों में फल शास्त्रों में निम्नानुसार बताए गए हैं


मेष राशि :- यदि जन्म कुंडली में गुरु मेष राशि में स्थित हो,तो जातक उग्र स्वभाव वाला, बलशाली, धनवान, विद्वान, प्रचुर संतान वाला, उदार, नम्रता से बोलने वाला, परंतु अपने आपको दूसरों से ऊंचा या बड़ा समझने वाला, सुखी विवाहित जीवन और उच्च पद पर आसीन होता है।


वृषभ राशि :- यदि जन्म कुंडली में गुरु वृषभ राशि में स्थित हो,तो जातक विद्वान, जीवन में स्थिरता वाला,ढृृृढ़ विचार वाला,दिखावा करने वाला,योग्य,  कामक्रीड़ा में आतुुुर, हस्तमैथुन की ओर झुकाव वाला होता है।


मिथुन राशि :- यदि जन्म कुंडली में गुरु मिथुन राशि में स्थित हो,तो जातक योग्य वक्ता,लंबे कद वाला, सुगठित शरीर वाला, उदार, विद्वान और कई भाषाओं को जानने वाला होता है।


कर्क राशि :- यदि जन्म कुंडली में गुरु कर्क राशि में स्थित हो ,तो जातक विद्वान, राजकीय से सेवा सम्मानित, राजा के समान जीवन जीने वाला, धनवान, कुशाग्र बुद्धि वाला और वफादार मंत्री या महात्मा होता है। 


सिंह राशि :- यदि जन्म कुंडली में गुरु सिंह राशि में स्थित हो,तो जातक  आकर्षक व्यक्तित्व वाला, औसत कद वाला, उच्चाकांक्षी,सक्रिय, सुखी, कुशाग्र बुद्धि वाला, साहित्य की ओर झुकाव वाला, लेखक और उच्च सरकारी पद पर आसीन होता है।


कन्या राशि :- यदि जन्म कुंडली में गुरु कन्या राशि में स्थित हो,तो जातक उच्चाकांक्षी,स्वार्थी, भाग्यवान, कंजूस, विद्वान और संतोषी स्वभाव का होता है।


तुला राशि :- यदि जन्म कुंडली में गुरु तुला राशि में स्थित हो,तो जातक सुंदर, उदार, बलवान, योग्य, धार्मिक प्रवृत्ति वाला और निष्पक्ष स्वभाव का होता है।


वृश्चिक राशि :- यदि जन्म कुंडली में गुरु वृश्चिक राशि में स्थित हो,तो जातक भले आचरण का, सुगठित शरीर वाला, अपनी उच्चता का दिखावा करने वाला, स्वार्थी, कमजोर शरीर वाला, कामक्रीड़ा में रुचि वाला एवं दु:खी होता है।


धनु राशि :- यह जन्म कुंडली में गुरु धनु राशि में स्थित हो,तो जातक धनवान, विद्वान, प्रभावशाली,सज्जन, विश्वासपात्र, दानशील, संगठनकर्ता और अच्छा वक्ता होता है।


मकर राशि :- यदि जन्म कुंडली में गुरु मकर राशि में स्थित हो, तो जातक असभ्य आचरण वाला, दु:खी, ईष्या करने वाला और अनियमित स्वभाव वाला होता है। 


कुम्भ राशि :- यदि जन्म कुंडली में गुरु कुंभ राशि में स्थित हो, तो जातक विद्वान, परंतु धनहीन, लोकप्रिय, मिलनसार, स्वपनों के जगत में विचरण करने वाला और सन्यास की ओर झुकाव वाला होता है।


मीन राशि :- यदि जन्म कुंडली में गुरु मीन राशि में स्थित हो, तो जातक विरासत में धन-संपत्ति प्राप्त करने वाला, मंझला कदवाला, साहसी और उच्च पद पर आसीन होता है। 

अक्टूबर 26, 2020

शुक्र ग्रह का राशियों में फल

शुक्र ग्रह का राशियों में फल


विभिन्न राशियों में स्थित शुक्र ग्रह का फल:- शुक्र के द्वादश राशियों में फल शास्त्रों में निम्नानुसार बताए गए हैं:


मेष राशि :- यदि जन्म कुंडली में शुक्र मेष राशि में स्थित हो,तो जातक आवेशपूर्ण स्वभाव वाला, स्वप्न जगत में जीने वाला,स्थिर मन वाला, दु:खी, बुद्धिमान, आरामतलब, अनैतिक चरित्र वाला और अधिक खर्च करने वाला होता है।


वृषभ राशि :- यदि जन्म कुंडली में शुक्र वृषभ राशि में स्थित हो,तो जातक सुंदर, सुगठित शरीर वाला,ढृढ़,स्वतंत्र विचार, काम क्रिड़ा करने में आतुर,शौकीन तबीयत, आलसी, संगीत-नृत्य तथा अन्य कलाओं में रूचि रखने वाला होता है।


मिथुन राशि :- यदि जन्म कुंडली में शुक्र मिथुन राशि में स्थित हो,तो जातक धनवान,उदार,सम्मानित,कुशाग्र बुद्धि वाला, विद्वान और परस्त्रियों में रुचि रखने वाला होता है।


कर्क राशि :- यदि जन्म कुंडली में शुक्र कर्क राशि में स्थित हो,तो जातक आवेशपूर्ण कार्य करने वाला, डरपोक, एक से अधिक विवाह करने वाला,दु:खी और प्रचुर संतान वाला होता है 


सिंह राशि :- यदि जन्म कुंडली में शुक्र सिंह राशि में स्थित हो,तो जातक स्त्रियों के द्वारा धन प्राप्त करने वाला, कामुक, दु:खी, आवेशपूर्ण,जल्दबाज, अपने को दूसरों से ऊंचा समझने वाला और शत्रुओं को पराजित करने वाला होता है। 


कन्या राशि :- जन्म कुंडली में शुक्र कन्या राशि में स्थित हो,तो जातक दु:खी, कामुक, अवैध संबंध रखने वाला, अधिक बातें करने वाला, धनवान, विद्वान और अनैतिक चरित्र वाला होता हैं।


तुला राशि :- यदि जन्म कुंडली में शुक्र तुला राशि में स्थित हो,तो जातक कुशाग्र बुद्धि वाला, उदार, दार्शनिक, सुंदर, सुखी विवाहित जीवन वाला,कामुक,अभिमानी,सम्मानित, अच्छा अंतर्ज्ञान वाला, बौद्धिक कार्यों में रुचि रखने वाला, दूर-दूर तक की यात्रा करने वाला,वरिष्ठ नेता,सन्तुलित स्वभाव वाला,कविता और उपन्यास लिखने में रुचि रखने वाला होता है।


वृश्चिक राशि :- यदि जन्म कुंडली में शुक्र वृश्चिक राशि में स्थित हो,तो जातक झगड़ालू, स्वतंत्र विचारधारा धारा वाला, अन्यायी, अपने अवैध संबंधों के लिए बदनाम, धनहीन और अत्यंत कामुक होता है।


धनु राशि :- यदि जन्म कुंडली में शुक्र धनु राशि में स्थित हो, तो जातक धनवान, बलशाली, प्रभावशाली, सम्मानित, सुखी घरेलू जीवन जीने वाला और उच्च पद की प्राप्ति करने वाला होता है।


मकर राशि :- यदि जन्म कुंडली में  मकर राशि में स्थित हो,तो जातक नीच जाति की स्त्रियों में रुचि रखने वाला, सिद्धान्तहीन,अनैतिक चरित्र वाला और कमजोर शरीर वाला होता हैं।


कुम्भ राशि :- यदि जन्म कुंडली में शुक्र कुंभ राशि में स्थित हो,तो जातक लोकप्रिय, सुंदर सच्चरित्र, शांतिप्रिय और दूसरों की सहायता करने वाला होता है।


मीन राशि :- यदि जन्म कुंडली में शुक्र मीन राशि में स्थित हो,तो जातक अच्छा और हास-परिहास का स्वभाव वाला,विद्वान, लोकप्रिय, शिष्ट और सभ्य, सम्मानित, आरामतलब और धनी होता है। 

अक्टूबर 26, 2020

बुध ग्रह का राशियों में फल

बुध ग्रह का राशियों में फल


विभिन्न राशियों में स्थित बुध ग्रह का फल :- बुध के द्वादश राशियों में फल शास्त्रों में निम्नानुसार बताए गए हैं


मेष राशि :- यदि जन्म कुंडली में बुध मेष राशि में स्थित हो,तो जातक औसत कद का, चतुर, मिलनसार, सांसारिकता में लिप्त,अस्थिर विचार वाला, आवेश पूर्ण स्वभाव वाला, धोखेबाज, विश्वास करने के लायक नहीं और बुरे विचारों वाला होता है।


वृषभ राशि :- यदि जन्म कुंडली में बुध वृषभ राशि में स्थित हो,तो जातक सुगठित शरीर वाला, कुशाग्र बुद्धि वाला, उच्च पद पर आसीन, विद्वान, को दिखावा पसंद करने वाला होता है।


मिथुन राशि :- यदि जन्म कुंडली में बुध मिथुन राशि में स्थित हो,तो जातक अच्छा आचरण वाला, सुंदर, जितनी अवस्था हो उससे कम का दिखाई देने वाला, खोज के काम में चतुर,हास-परिहास करने वाला, संगीत में रुचि रखने वाला, यात्रा का शौकिन, दीर्घायु और धनवान होता है।


कर्क राशि :- यदि जन्म कुंडली में बुध कर्क राशि में स्थित हो,तो जातक छोटा कद वाला, नीति में दक्ष, सूक्ष्मग्राही,अत्यंत कामुक, अनैतिक चरित्र वाला और अनिश्चित स्वभाव वाला होता है।


सिंह राशि :- यदि जन्म कुंडली में बुध सिंह राशि में स्थित हो,तो जातक घूमने का शौकीन,अभिमान करने वाला,अधिक बोलने वाला, कम उम्र में विवाह करने वाला, आवेश पूर्ण स्वभाव वाला और राजकीय सेवा में कार्यरत होता है।


कन्या राशि :- जन्म कुंडली में बुध कन्या राशि में स्थित हो,तो जातक सुंदर, विद्वान, उदार, अच्छा अंतर्ज्ञान वाला, अच्छा अंतर्ज्ञान वाला, अच्छा व्यक्ता, लेखक, पत्रकार, ज्योतिषी, खगोल शास्त्री, गणितज्ञ, अध्यापक और अच्छा चरित्रवान होता है।


तुला राशि :- यह दिन जन्म कुंडली में बुध तुला राशि में स्थित हो,तो जातक गोरे रंग का, अंतर्ज्ञान वाला, वफादार, विनीत, संतुलित मन वाला और दार्शनिक होता है।


वृश्चिक राशि :- यदि जन्म कुंडली में बुध वृश्चिक राशि में स्थित हो,तो जातक अनैतिक चरित्र वाला, रतिक्रिया की अति करने वाला, गुप्तांगों के रोगों से पीड़ित, स्वार्थी और अपशब्द बोलने वाला होता है।


धनु राशि :- यदि जन्म कुंडली में बुध धनु राशि में स्थित हो,तो जातक समाज में सम्मानित, गुणवान, शरीर व्यवस्थित, विद्वान,अविवेकी,अच्छा संगठनकर्ता, चतुर और ईमानदार होता है।


मकर राशि:- यदि जन्म कुंडली में बुध मकर राशि में स्थित हो,तो जातक व्यापार में रुचि करने वाला, किफायतीसार,चतुर और मेहनत करने वाला होता है।


कुम्भ राशि :- यदि जन्म कुंडली में बुध कुम्भ राशि में स्थित हो,तो जातक झगड़ा करने वाला, शीघ्र प्रगति करने वाला,प्रसिद्ध और कमजोर स्वास्थ्य वाला होता है।


मीन राशि :- यदि जन्म कुंडली में बुध मीन राशि में स्थित हो,तो जातक नौकर, नकल करने का स्वभाव वाला, चिंतित, छोटे दिल का और जीवन में असफलताएँ प्राप्त करने वाला होता है। 

अक्टूबर 26, 2020

मंगल ग्रह का राशियों में फल

मंगल ग्रह का राशियों में फल


विभिन्न राशियों में स्थित मंगल ग्रह काफल :- मंगल के द्वादश राशियों में फल शास्त्रों में निम्नानुसार बताए गए हैं


मेष राशि :- यदि जन्म कुंडली में मंगल मेष राशि में स्थित हो, तो जातक योग्य संगठनकर्त्ता, सेनापति, सेनाधिकारी, चिकित्सक, पुलिस अधिकारी, आक्रामक स्वभाव वाला, सक्रिय, जल्दबाज, स्पष्ट बोलने वाला, उदार, कम खर्च करने वाला और पहले काम करना बाद में विचार करने वाला होता है।


वृषभ राशि :- यदि जन्म कुंडली में मंगल वृषभ राशि में स्थित हो, तो जातक अत्यंत कामुक, अनैतिक आचरण करने वाला, सिद्धांत रहित, स्वार्थी,उतावला और आवेश में पशु के समान व्यवहार करने वाला होता हैं।


मिथुन राशि :- यदि जन्म कुंडली में  मिथुन राशि में स्थित हो,तो जातक घरेलू जीवन से सुखी, शौकीन तबीयत, विद्वान, बलवान शरीर,उच्चाकांक्षी, अच्छा कवि या संगीतकार, नीति में दक्ष, कुशाग्र बुद्धि वाला,चतुर और जासूस के समान स्वभाव वाला होता है।


कर्क राशि :- यदि जन्म कुंडली में कर्क राशि में स्थित हो ,तो जातक कुशाग्र बुद्धि वाला, धनवान, बदमाश, कुशल चिकित्सक या सर्जन, चंचल मन वाला और हर बात में जुआ खेलने वाले स्वभाव का होता है।


सिंह राशि :- यदि जन्म कुंडली में  सिंह राशि में स्थित हो, तो जातक खगोल शास्त्र का ज्ञाता, ज्योतिष और गणित की ओर झुकाव वाला, माता-पिता का आज्ञाकारी, गुरुजनों का आदर करने वाला, उदार, मानसिक रोगी, सफल और बेचैन रहने वाला होता है।


कन्या राशि :- जन्म कुंडली में  कन्या राशि में स्थित हो, तो जातक कमजोर पाचन शक्ति वाला, दुःखी विवाहित जीवन वाला, दुर्घटनाओं का शिकार होने वाला, अभिमान करने वाला, बड़ी-बड़ी बातें बनाने वाला और धोखेबाज होता है।


तुला राशि :- यह दिन जन्म कुंडली में  तुला राशि में स्थित हो, तो जातक लंबे कद वाला, सुंदर शरीर वाला, गोरे रंग का,उच्चाकांक्षी, धनवान बनने के लिए अधिक परिश्रम करने वाला, लड़ाई-झगड़े करने वाला, किसी पर कृपा करने वाला, पर स्त्रियों की ओर झुकाव और इनके कारण कठिनाइयों में पड़ने वाला होता है।


वृश्चिक राशि :- यदि जन्म कुंडली में  वृश्चिक राशि में स्थित हो तो जातक नीति में दक्ष, अच्छी याददाश्त शक्ति वाला,ईष्यालु स्वभाव का, बहुत ही हठी स्वभाव का,आक्रामक स्वभाव वाला,अभिमान करने वाला और सफल होता है।


धनु राशि :- यह दिल जन्म कुंडली में  धनु राशि में स्थित हो, तो जातक लोकप्रिय, प्रसिद्ध, उच्च प्रशासकीय पद पर कार्यरत, चतुर,  राजनैतिक नेता, झगड़ा करने वाला, कानून के प्रति निष्ठावान, सक्रिय, आक्रामक और उच्चाकांक्षी होता हैं।


मकर राशि :- यदि जन्म कुंडली में  मकर राशि में स्थित हो, तो जातक धनवान, उच्च राजनीतिक पद पर कार्यरत, सेनापति, उच्च अधिकारी, पुलिस अधिकारी प्रशासक, प्रचुर संतान वाला, उदा,मेहनत करने वाला, अच्छे स्वास्थ्य वाला, सम्मानित, बहादूर और प्रभावशाली होता हैं।


कुम्भ राशि :- यदि जन्म कुंडली में  कुंभ राशि में स्थित हो, तो जातक गरीब, दु:खी और असत्य बोलने वाला और बुद्धिहीन होता है।


मीन राशि :- यदि जन्म कुंडली में  मीन राशि में स्थित हो, तो जातक कामक्रीड़ा के लिए आतुर, आज्ञा मानने वाला, गंदा, अस्थिर जीवन जीने वाला और दु:खी घरेलू जीवन जीने वाला होता है।

अक्टूबर 26, 2020

चन्द्रमा ग्रह का राशियों में फल

चन्द्रमा ग्रह का राशियों में फल


विभिन्न राशियों में स्थित चन्द्रमा ग्रह का फल :- चन्द्रमा के द्वादश राशियों में फल शास्त्रों में निम्नानुसार बताए गए हैं


मेष राशि :- यदि जन्म कुंडली में चन्द्रमा मेष राशि में स्थित हो, तो जातक सक्रिय, चिड़चिड़ापन, अस्थिर मति, यात्रा में रुचि लेने वाला, महत्त्वाकांक्षी,साहसी,आत्माभिमानी,क्रोधी स्वभाव वाला होता हैं।


वृषभ राशि :- यदि जन्म कुंडली में चन्द्रमा वृषभ राशि में स्थित हो, तो जातक कुशाग्र बुद्धि वाला,सुखी, सुगठित  शरीर वाला,परलिंगी के प्रति आकर्षण वाला, मध्यावस्था और वृद्धावस्था में सुखी, धनी, संतोषी, चंचल मन वाला,खाने-पीने का शौकीन,लोकप्रिय एवं कामुक होता हैं।


मिथुन राशि :- यदि जन्म कुंडली में चन्द्रमा मिथुन राशि में स्थित हो,तो जातक कुशाग्र बुद्धि वाला, विद्वान, अध्ययनशील, सुंदर, वास्तविक अवस्था से कम आयु का दिखाई देने वाला, अच्छा बोलने वाला, मजाक करने वाला, संगीत में रुचि रखने वाला, बड़ी उम्र वाला एवं अंतर्ज्ञान वाला होता हैं।


कर्क राशि :- यदि जन्म कुंडली में चन्द्रमा कर्क राशि में स्थित हो ,तो जातक स्त्रियों के प्रभाव में आ जाने वाला, अच्छे स्वभाव वाला, चंचल मन वाला, सुंदर, दयालु, क्रोधी स्वभाव वाला, विदेश यात्रा की रुचि रखने वाला, जमीन जायदाद वाला और कुछ झूमती हुई चाल से चलने वाला होता हैं।


सिंह राशि :- यदि जन्म कुंडली में चन्द्रमा सिंह राशि में स्थित हो, तो जातक साहसी,शान दिखाने वाला,परलिंगी द्वारा अपमानित, पेट के रोग वाला, दु:खी, मानसिक रूप से बेचैन ,अभिमानी,महत्त्वाकांक्षी और पुराने विचारों वाला होता हैं।


कन्या राशि :- जन्म कुंडली में चन्द्रमा कन्या राशि में स्थित हो, तो जातक सुंदर रंग वाला, रूपवान, अच्छे आचरण वाला, ईमानदार, सत्य वचन बोलने वाला, कुशाग्र बुद्धि वाला ,अच्छा बोलने वाला, पुत्री संतान या कन्या संतान की अधिकता वाला, ज्योतिषी, संगीत-नृत्य और कला की ओर आकर्षित करने वाला होता हैं।


तुला राशि :- यह दिन जन्म कुंडली में चन्द्रमा तुला राशि में स्थित हो, तो जातक विकलांग, रोगी, संबंधियों से अपमानित ,कुशाग्र बुद्धि वाला, संतुलित मन वाला, चतुर, दक्ष, अच्छे स्वभाव वाला,उच्चाकांक्षाओं से रहित और संतोषी स्वभाव वाला होता हैं।


वृश्चिक राशि :- यदि जन्म कुंडली में चन्द्रमा वृश्चिक राशि में स्थित हो, तो जातक अपने माता-पिता, भाइयों आदि से अलग रहने वाला, झगड़ा करने वाला, स्पष्ट बोलने वाला बुरे विचार रखने वाला, दु:खी, हठी,क्रूर, अनैतिक विचारों वाला और धनवान होता हैं।


धनु राशि :- यह जन्म कुंडली में चन्द्रमा धनु राशि में स्थित हो, तो जातक  उच्च बौद्धिक स्तर वाला, सुखी विवाहित जीवन जीने वाला, पैतृक संपत्ति विरासत में पाने वाला,  साहित्य के प्रति रुचि का दिखावा करने वाला और लेखक होता हैं।


मकर राशि :- यदि जन्म कुंडली में चन्द्रमा मकर राशि में स्थित हो, तो जातक सदाचारी, पत्नी और संतान से प्रेम करने वाला, बात को शीघ्र जाने वाला एवं समझने वाला,स्वार्थी, आलसी, कंजूस और नीच प्रवृत्ति वाला होता हैं।


कुम्भ राशि :- यदि जन्म कुंडली में चन्द्रमा कुंभ राशि में स्थित हो, तो जातक गोरे रंग का, सुगठित शरीर वाला, लंबा कद वाला, नीति-दक्ष, दूर की सोचने वाला एवं देखने वाला, गुप्त विद्याओं में रुचि रखने वाला, अच्छा अंतर्ज्ञान वाला, धार्मिक प्रवृत्ति वाला और मध्यावस्था में सन्यास के प्रति झुकाव वाला होता हैं।


मीन राशि :- यदि जन्म कुंडली में चन्द्रमा मीन राशि में स्थित हो, तो जातक  तरल पदार्थ समुद्र से प्राप्त वस्तुओं, रत्न, शृंगार की वस्तुओं,तेल इत्यादि का व्यापार करने वाला, परलिंगी व्यक्ति के प्रभाव में आने वाला, विद्वान, स्थिर स्वभाव वाला, सादगी पसंद करने वाला, लोकप्रिय,मध्यावस्था के बाद सन्यास और साधना के प्रति रुचि दिखाने वाला और गुप्त विद्याओं के प्रति झुकाव वाला होता हैं।

अक्टूबर 26, 2020

सूर्य ग्रह का राशियों में फल

सूर्य ग्रह का राशियों में फल


विभिन्न राशियों में स्थित सूर्य ग्रह का फल :- सूर्य के द्वादश राशियों में फल शास्त्रों में निम्नानुसार बताए गए हैं


1.मेष राशि :- यदि जन्म कुंडली में सूर्य मेष राशि में स्थित हो, तो जातक सक्रिय, बुद्धिमान, प्रसिद्ध, यात्रा करने में रुचि लेने वाला और धनी होता है परंतु उसके जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। उसमें काम करने की क्षमता होती है, वह महत्त्वाकांक्षी होता है और उसका दूसरों पर अधिकार बनाए रखने का स्वभाव होता है। वह  ईमानदार और उदार हृदयी होता है और मध्यावस्था में उसका अध्यात्म की ओर झुकाव होता है।


2.वृषभ राशि :- यदि जन्म कुंडली में सूर्य वृषभ राशि में स्थित हो, तो जातक धीरे-धीरे नियमित रूप से कार्य करने वाला, हठी,भोग विलास का शौकीन,परिश्रमी और कला में रुचि रखने वाला एवं कुशाग्र बुद्धि वाला होता है।


3.मिथुन राशि :- यदि जन्म कुंडली में सूर्य मिथुन राशि में स्थित हो,तो जातक अधिक बातें करने वाला, कुशाग्र बुद्धि वाला, विद्वान, अध्ययनशील, धनी आलोचना करने वाला एवं मौलिकता की कमी वाला होता है।


4.कर्क राशि :- यदि जन्म कुंडली में सूर्य कर्क राशि में स्थित हो ,तो जातक गरीब, उदास, दु:खी, रोगी, यात्री,दूसरों की अधीनता में काम करने वाला एवं मंद बुद्धि वाला होता है।


5.सिंह राशि :- यदि जन्म कुंडली में सूर्य सिंह राशि में स्थित हो तो जातक हठी, दूसरों पर अधिकार जमाने वाला, सदा धनी नहीं, दूसरों के आश्रय में न रहने वाला एवं उदार हृदय होता है।


6.कन्या राशि :- यदि जन्म कुंडली में सूर्य कन्या राशि में स्थित हो, तो जातक साहित्य और कविता में रुचि रखने वाला, अनेक भाषाएँ जानने वाला, विद्वान, अच्छी स्मरण शक्ति वाला, बहस करने में उस्ताद, बुद्धिमान, पत्रकार, गणित में प्रवीण एवं स्त्रियों का स्वभाव वाला होता है।


7.तुला राशि :- यह जन्म कुंडली में सूर्य तुला राशि में स्थित हो, तो जातक शराब बनाने और बेचने वाला, शराबी, नैतिकता की कमी वाला, गाली के साथ बात करने वाला, पतित, दूसरों से दबने वाला एवं दिखावा करने वाला होता है।


8.वृश्चिक राशि :- यदि जन्म कुंडली में सूर्य वृश्चिक राशि में स्थित हो तो जातक असावधान, साहसी, सिद्धांतहिन, पुलिस अधिकारी एवं सेना में उच्च पद प्राप्त करने की योग्यता वाला होता है।


9.धनु राशि :- यह जन्म कुंडली में सूर्य धनु राशि में स्थित हो, तो जातक प्रश्नचित्र, लोकप्रिय, अच्छी आय वाला, धनी, ईमानदार, विश्वासपात्र एवं शीघ्र गुस्से वाला होता है।


10.मकर राशि :- यदि जन्म कुंडली में सूर्य मकर राशि में स्थित हो, तो जातक नीच, हठी, कंजूस, परिश्रमी, आलसी, समझदार एवं प्रगति बहुत ही धीमी करने वाला होता हैं।


11.कुम्भ राशि :- यदि जन्म कुंडली में सूर्य कुंभ राशि में स्थित हो, तो जातक दु:खी, हठी, गरीब,बाधाएँ और कठिनाइयाँ, मध्यावस्था के बाद सन्यास लेने वाला और अच्छा ज्योतिषी होता है।


12.मीन राशि :- यदि जन्म कुंडली में सूर्य मीन राशि में स्थित हो, तो जातक की  शांतिप्रिय, रत्नों का व्यापार करने वाला, तरल पदार्थों का व्यापारी, धनी, स्त्रियों को अपनी और आकर्षित करने वाला एवं गुप्त विद्याओं में में रुचि रखने वाला होता है। 

अक्टूबर 26, 2020

ज्योतिष शास्त्र का परिचय

ज्योतिष शास्त्र का परिचय


ज्योतिष शास्त्र का परिचय


'ज्योतिष 'शब्द 'ज्योति' से बना है। 'ज्योति का शाब्दिक अर्थ'-:प्रकाश,उजाला,रोशनी,आभा,द्युति आदि हैं। 


ज्योतिष शब्द का सन्धि-विच्छेद ज्योत+ईश होता हैं।जिसका अर्थ ईश्वर की रोशनी हैं अर्थात ईश्वर के द्वारा अंधेरे से उजाला की ओर ले जाने का मार्गदर्शन होता हैं।


आकाश मंडल के ग्रह एवं नक्षत्र ज्योति प्रदान करते हैं मेष,वृषभ,मिथुन, सिंह, तुला, मकर, मीन आदि आकार  वाले  तारक समूह को ज्योतिष में राशियों की संज्ञा दी गई है, यह हमें ज्योति प्रदान करते हैं। धूम्रकेतु ,उल्काएं आदि भी ज्योति प्रदान करते हैं। जन्म के समय 'ज्योति रश्मियां' ही व्यक्ति के स्वभाव का निर्माण करती हैं।


'ज्योतिष विज्ञान -: आकाशीय पिण्डों से निकलने वाली ज्योति रश्मियां स्वयं के बल एवं कोणात्मक दूरी या अन्तर के अनुसार व्यक्तियों को भिन्न-भिन्न प्रकार से प्रभावित करती हैं। 'ज्योति रश्मियों के प्रभाव का अध्ययन करने वाले विषय को ही 'ज्योतिष विज्ञान' या 'ज्योतिर्विज्ञान कहते हैं।


ज्योतिष के अंग -: आदिकाल की समाप्ति तक ज्योतिष के तीन अंग थे आधुनिक में इसमें दो अंग जोड़े गये हैं।इस प्रकार ज्योतिष के पाँच अंग बन गये हैं।जो निम्नानुसार हैं:


1.सिद्धान्त ज्योतिष -: ज्योतिष विद्या पूर्णतया शुद्ध गणितीय आकलन व परिमाप पर आधारित है। अतः किसी भी व्यक्ति के जन्म के समय या किसी घटना के समय आकाश मंडल के ग्रह, नक्षत्र किस गति,स्थिति पर है तथा उनके उदय,अस्त एवं वक्री होने का व्यक्ति या घटना पर क्या प्रभाव होता है,? इसी गणित के ,सिद्धांत, ज्योतिष कहते हैं।


प्राचीन काल में अट्ठारह सिद्धांत सूर्य सिद्धांत, पितामह सिद्धांत, व्यास सिद्धांत, वशिष्ठ सिद्धांत, लोमश सिद्धांत, पौलिश सिद्धांत, भृगु सिद्धांत,शौनक सिद्धांत आदि प्रचलित थे।


2.सहिंता ज्योतिष -: इसमें  उन  सभी  विषयों  को  शामिल  किया  गया  हैं,  जिनका  किसी  व्यक्ति  राष्ट्र   या समूचे  विश्व पर प्रभाव पड़ता है यथा-भूशोधन,दिकशोधन,गृहारम्भ,जलाशय निर्माण,  वर्षारंभ,  भूकंप आना, ज्वालामुखी फूट पड़ना,अकाल पड़ना,ग्रहण पड़ना, महामारी होना आदि। इसे'संहिता ज्योतिष'  या  'सांसारिक फ़लित ज्योतिष'  भी  कहा जाता है।


प्राचीन पुस्तकों में रावण संहिता,सूर्य संहिता,इंद्र संहिता,  रुद्र संहिता,वराह संहिता,पुलस्य संहिता,जैमिनी संहिता,भृगु संहिता आदि के प्रमुख नाम ही शेष रह गए हैं। 


3.होरा ज्योतिष या जातक शास्त्र -: होरा 'अहोरात्र'शब्द से  बना है। यदि अहोरात्र के आदि का 'अ' तथा  अंत  का  'त्र'अक्षर  लोप  कर दें  तो  'होरा'  शब्द  शेष   रह जाता है।  ऐसा माना जाता है कि अंग्रेजी शब्द Hour (घंटा) होरा से ही निकला है।  इसलिये  जैसे एक अहोरात्र या दिन रात  में  24  होरा  होती हैं, उसी प्रकार एक दिनरात 24 घंटे की होती हैं।


इस शास्त्र द्वारा  व्यक्ति  के  जन्म कालीन  ग्रहों  की  स्थिति  के अनुसार शुभाशुभ फल निरूपित किया जाता है।  जीवन के  सुख-दुख:,इष्ट-अनिष्ट,उन्नति-अवनति, भाग्योदय  आदि का वर्णन इस शास्त्र के विषय हैं।  इस प्रकार इसका सम्बन्ध फलित ज्योतिष  है। 


4.प्रश्न शास्त्र ज्योतिष -: यह शास्त्र तात्कालिक फल कहने वाला शास्त्र हैं। प्रश्नकर्ता द्वारा पूछे गये प्रश्न का उत्तर या फल प्रश्नाक्षरों या प्रश्न करने के समय को आधार मानकर प्रतिपादित किया जाता है। इस संबंध में प्रश्नाक्षर सिद्धांत ,प्रश्न लग्न सिद्धांत एवं स्वरज्ञान सिद्धांत का जन्म हुआ है।  


5.'शकुन शास्त्र ज्योतिष' या 'निर्मित शास्त्र' -: सर्वप्रथम इसमें अरिष्ट विषय ही शामिल किये गये थे। कालांतर में इसकी विषय सीमा में प्रत्येक कार्य के प्रारम्भ पूर्व शुभाशुभ तथ्यों तथा घटनाओं का ज्ञान प्राप्त करना भी आ गया। बसंतराज शकुन अद्भुत सागर जैसे शकुन गर्न्थो की रचना हुई।यही कारण हैं की आधुनिक समय में सभी कार्य शुभ मुहूर्त देखकर ही प्रारम्भ किए जाते हैं।


ज्योतिष का महत्व एवं उपयोगिता -: निम्नानुसार हैं


●मनुष्य के समस्त कार्य ज्योतिष के द्वारा ही चलते हैं। 


●व्यवहार में अत्यंत महत्वपूर्ण एवं उपयोगी दिवस, समय, तिथि,वार, सप्ताह, पक्ष,मास, ऋतु, वर्ष, अयन, गोल,, नक्षत्र, योग, करण, चंद्र संचार, सूर्य स्थिति आदि का ज्ञान ज्योतिष से ही होता है।


● और इस जानकारी के लिये प्रतिवर्ष अनेकानेक स्थान और नाम आधारित पंचांग बनाये जाते हैं। इसमें धार्मिक उत्सव दिवस, सामाजिक त्यौहारों के दिवस, महापुरुषों के जन्म दिवस, राष्ट्रीय पर्व दिवस, महत्वपूर्ण घटनाओं के दिवस एवं उनके उपयुक्त समय दिये  होते हैं। साधारण मनुष्य भी सुनकर या पढ़कर उन्हें समय पर मना सकते हैं।


●इसी प्रकार बहुत सी ऐतिहासिक तिथियों का भी पता लग जाता है। उन पर भी हम मिल बैठकर विचार कर सकते हैं और अपने सुझाव दे सकते हैं तथा सही निर्णय ले सकते हैं। 


● जलचर राशि या जलचर नक्षत्रों में अच्छी वर्षा के आसार होते हैं। 


●अनपढ़ देहाती किसान आकाश मंडल की स्थिति देखकर इसका आसानी से अनुमान लगा लेता है, फसल बोने का समय भांप लेते है, ताकि अच्छी पैदावार हो।


● समुंद्री जहाज के कप्तान भी समुंद्री यात्रा के दौरान सूर्य, चंद्र की गति, स्थिति देखकर समुंद्री मौसम का अनुमान या अंदाज लगा लेते हैं और ठीक समय पर समुचित एवं निरापद मार्ग का अनुसरण करते हैं, इससे हानी की संभावना समाप्त हो जाती है ।


●ज्योतिष की शाखा रेखा गणित से पर्वतों ऊंचाई एवं समुंद्र समुद्रों की गहराई मापी जा सकती हैं।


● सूर्य ग्रहण एवं चंद्र ग्रहण के आधार पर प्राचीनतम  ऐतिहासिक तिथियों की जानकारी हो जाती हैं।


●भूगर्भ से प्राप्त पुरातत्व की वस्तुओं के समय व उनकी आयु का पता भी लग जाता है।


●अक्षांश एवं रेखांश रेखाये दिशा ज्ञान कराती हैं, इस दिशा ज्ञान के आधार पर विश्व के किसी भी भूभाग या स्थान पर पहुंचना सरल और सुविधाजनक हो जाता है।

 

● सृष्टि के अनेकानेक रहस्य यथा योगों की जानकारी सूर्य ग्रहण व चंद्रग्रहण तिथि व समय, ज्वार भाटा की तीव्रता का ठीक समय आदि ज्योतिष द्वारा जान लेते हैं।


● गुणकारी दवाइयों के बनाने के स्थान व समय का ज्ञान हो जाता है,रोगों के उपचार हेतु रोगों समयानुसार उचित दवाई देने से अवगत होते हैं।


● विभिन्न प्रकार के शुभ मुहूर्तों का ज्ञान होता है। इस प्रकार ज्योतिष विज्ञान प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से हम पृथ्वीवाशी मनुष्यों, जीवधारी पशुओं, पक्षियों और जड़ वस्तुओं के लिए सर्वथा उपयोगी एवं लाभकारी हैं।


● अज्ञानता के अंधकार को हटाने वाला 'ज्योति दीप' हैं दूसरे शब्दों में 'ज्योति र्विज्ञान' हैं।


अक्टूबर 26, 2020

कुण्डली मे नपुंसकता योग

कुण्डली मे नपुंसकता योग


लड़को की कुण्डली के योग (नपुंसकता योग)


नपुंसकता का अर्थ :- आदमी और लड़कों में वीर्य धातु का नष्ट होना होता है,जिससे वह औरत या लड़की के साथ मैथुन नहीं कर पाता है व औरत या लड़की को सम्भोग क्रिया से संतुष्ट नहीं कर सकता है, उस बीमारी को नपुंसकता कहते है।


मनोवैज्ञानिक नपुंसकता :- आदमी या लड़को में चिंता या आशंका के कारण  यौनक्रिया को सफलतापूर्वक पुुरा न् कर पाते है,तो उस तरह की नपुंसकता को मनोवैज्ञानिक नपुंसकता कहते है। जो आदमी या लड़के इरेक्शन प्राप्त करने को लेकर चिंतित होते है वह इस मामले में कभी भी सुकून से नहीं रह सकता और शायद इरेक्शन हासिल भी नहीं कर पाते है।


मनोवैज्ञानिक नपुंसकता के कारण :- आदमी या लड़कों के द्वारा अधिक दारू पीने, शरीर में वसा के अधिक इकट्ठा होने मोटापा का होना,बहुत गुस्सा करने से, मन के अंदर तनाव का होना,चिंता,अपराध बोध से ग्रस्त होने और अन्य कई तरह के भावनात्मक कारणों की वजह से मनोवैज्ञानिक नपुंसकता  होती है।


शारिरिक नपुंसकता :- आदमी या लड़को में जब उनकी माता के गर्भ में उनका निर्माण होता है,तब उनकी माता गर्भ में किसी तरह का गर्भ निर्माण के समय किसी तरह का शरीर का पूर्ण तरह से विकास नहीं हो पाता है जिससे उन आदमी या लड़कों के शरीर के अंग में कमी रह जाती है और वह युवावस्था में नपुंसकता का शिकार हो जाते है।


शारीरिक नपुंसकता के कारण :- आदमी या लड़कों के शरीर में किसी तरह की चोट लगने,बीमारी,हार्मोन के ठीक नहीं होने से,मधुमेह, उच्च रक्तचाप या नशीली दवाओं की वजह से शारिरिक नपुंसकता हो सकती है।


ज्योतिषीय योग के द्वारा नपुंसकता :- आदमी या लड़कों  में नपुंसकता के दोष को जन्मकुंडली को देखकर जान सकते है, की नपुंसकता जन्मजात है या किसी दूसरे शारिरिक या मानसिक वजह से है।नपुंसकता को जानकर विवाह करवाते है तो उन मानवों का वैवाहिक जीवन खुशहाली से बीतता है। कुछ ज्योतिषीय योग निम्न तरह के है,इन योगों से जान सकते कि अमुक आदमी या लड़के में नपुंसकता गुण है।


यदि बुध+शनि का सयोंग सातवें व आठवें घर में होनें पर आदमी या लड़के नपुंसक होता हैं।


यदि मंगल या शनि या इन दोनों की दृष्टि आठवें घर में स्थित शुक्र पर हो, तो आदमी या लड़के को धातु या वीर्य सम्बन्धी बीमारी या हस्तमैथून खराब रुचि होती हैं।


यदि शनि की दृष्टि आठवें घर में स्थित शुक्र+मंगल के सयोंग पर हो, तो आदमी या लड़के को धातु या वीर्य सम्बन्धी बीमारी या हस्तमैथून और अण्डकोषों से सम्बन्धी बीमारी हो सकती है।


यदि शनि की दृष्टि सातवें घर में स्थित शुक्र+मंगल के सयोंग पर हो, तो आदमी या लड़के को मैथुन से मैथुन सम्बन्धी बीमारी हो सकती है।


यदि जन्मकुंडली के आठवे घर में शुक्र के साथ शनि या राहु स्थित हो, तो आदमी या लड़कों को वीर्य सम्बन्धी बीमारी और हस्तमैथून की खराब रुचि हो सकती हैं।


आठवें घर में बुध हो और पहले घर में शनि के साथ राहु का सयोंग हो, तो आदमी या लड़कों में पुरुषत्व से कमजोर या नपुंसक होता हैं।


यदि शनि या राहु या केतु में से कोई एक भी ग्रह शुक्र व चन्द्रमा के साथ में हो, तो आदमी या लड़को में पुरुषत्व से कमजोर या नपुंसक होते है।


यदि मंगल या राहु या केतु में से कोई एक भी ग्रह चन्द्रमा व शनि के साथ में हो, तो आदमी या लड़को में पुरुषत्व से कमजोर या नपुंसक होते है।


आठवें घर में शनि के साथ में राहु या केतु वृश्चिक या कुम्भ लग्न की कुंडली में हो, तो आदमी या लड़कों में पुरुषत्व से कमजोर या नपुंसक होते है।


यदि शुक्र अस्त हो या नीच राशिगत हो और पहले घर में शनि+राहु का सयोंग होनें पर भी आदमी या लड़कों में पुरुषत्व से कमजोर या नपुंसक होते है।


यदि बुध एवं शनि का सयोंग किसी भी घर में हो और शुक्र अस्त होकर साथ में हो, तो आदमी या लड़कों को पुरुषत्व की कमी या नपुंसकता बीमारी होती हैं।


आठवें घर में पापग्रह बैठे हो और उन पर पापग्रहों की दृष्टी होने पर भी आदमी या लड़कों में पुरुषत्व से कमजोर या नपुंसकता या गुप्त बीमारी हो सकती हैं।


आठवें घर और आठवें घर के स्वामी पर पापग्रह और शनि के द्वारा देखा जाये सिंह या कन्या लग्न की कुंडली में हो, तो आदमी या लड़कों में पुरुषत्व से कमजोर या नपुंसक होते है।


यदि गुरु छठवें घर में स्थित हो वृषभ या सिंह लग्न की कुण्डली में तो आदमी या लड़को को कोई गुप्तांग बीमारी हो सकती हैं  

गुरुवार, 22 अक्टूबर 2020

अक्टूबर 22, 2020

राशियों का बारह लग्नो में फल

राशियों का बारह लग्नो में फल

बारह लग्नो और राशियों का फल 


मेष राशि या मेष लग्न :- मेष लग्न या मेष राशि के मनुष्य का कद ठीक-ठाक,देह पतली  पूरी तरह से गठीत,मुह आकार में लंबा और उनकी तेज नजर होती है।मंगल मालिकग्रह होने से मेष लग्न के मनुष्य का मिजाज तीखा व तेज होने से जल्दी जोश में आ जाते है। ये अपने को दूसरे से अच्छा दिखाने के लिए कोई भी कार्य फुर्ती से फटाफट करने वाले होते है। यदि मेष लग्न पर खराब असर पड़ने पर मनुष्य स्वयं के ऊपर जोश से अधिक विश्वास करने वाला दयालु ह्र्दयी का ऊंची इच्छा रखने वाले होते है। मेष लग्न के मनुष्य अपने को दूसरे से ऊपर समझने वाले अपनी सादगी से अपनी सोच पर अड़ा रहकर अपनी परेशानीयों को किसी भी तरीके से खुद समाधान करते है और अपना काम भी निकाल लेते है। मेष लग्न में चर राशि होने से लड़ाई-झगड़े या तर्क-वितर्क में अपनी ही सोच पर ही अड़े रहने वाले और अपनी रहन-सहन की शैली में बदलाव  करते है। मेष लग्न के मनुष्य में कोई भी काम को अपने हाथ मे लेते है,उस काम को पूरी मेहनत से जल्दी पूरा करने में रुचि रखने वाले होते है,क्योंकि मेष लग्न में अग्नि तत्व की राशि होने से मनुष्य को आग की तरह तपाकर उसे पकाते है। मेष लग्न पर अच्छा दबदबा होतो मनुष्य झगड़े करना वाला अपनी सोच पर अड़ने वाला हो जाता है। मेष लग्न के मनुष्य में अधिक अच्छे फल में विश्वास रखने से किसी एक काम पूरा नहीं पर भी दूसरा काम को शुरू कर देते है और अपने रोजी-रोटी के धंधे में बदलाव करते रहने वे रुपये-पैसे की इकट्ठा नहीं कर पाते है। मेष लग्न के मनुष्य में प्यार में अधिक कामयाब होने से औरतें इनकी ओर खुद ही आकर्षित होकर जुड़ती जाती है। खराब असर मेष लग्न पर हो तो मनुष्य प्यार के मैटर में  दूसरों को देखकर जलने लग जाते है। मेष लग्न के मनुष्य पुलिस, सेना,फ़ौज में अधिक विकास करते है,क्योंकि इनमें आग की तरह तेज जलने के आदत होने से इनमें हिम्मत कुटकुट भरी होंने जोश से इन कामों में कामयाब होते है। ये अच्छे सर्जरी करने वाले, मैकेनिक, इंजीनियर और पहलवान बन सकते है।


वृषभ लग्न या वृषभ राशि :-


मनुष्य का कद बीच का कुछ मोटे देह के होते है। मस्तिष्क थोड़ा चौड़ापन लिये,गर्दन में तालमेल और मन को आकर्षित करने वाली आंखे होती है। उज्ज्वल रंग के व काले लहराते बाल वाले, ऊंचे उठे कंधे वाले अच्छी तरह से गठित बहुत ही वजन का शरीर वाले इस लग्न के मनुष्य होते है।वृषभ लग्न में वृषभ राशि स्थिर व पृथ्वी तत्व की होती है। 


वृषभ लग्न के मनुष्य में बहुत ही गम खाने की ताकत होती है। इनको अधिक छेड़ना पर बैल की तरह आवेश में आ जाते है और फिर आसानी से किसी भी के वश में नहीं हो पाते है। वे धीरे-धीरे कोई भी काम को पूरी लगन से करते है और  अपनी ताकत को बिना मतलब के खत्म नहीं करते है। 


इस लग्न के मनुष्य में सोचने की ताकत बहुत अधिक होने से वे कोई भी काम बिना जोश में आकर नहीं करने वाले और पुरानी सोच को मानते है। फिर समय अपना आने पर मौके का फायदा उठाने वाले होते है। 


वृषभ लग्न पर खराब असर होने पर वे कुछ भी काम नहीं करने वाले और सब तरह सूख की इच्छा रखने वाले होते है।वृषभ लग्न के मनुष्य को अलग-अलग तरह के अच्छे स्वादिष्ट भोजन में रुचि रखते है।


इस लग्न के मनुष्य को जीवन मे भोग-विलास में प्यार होता है व रूपये-पैसे को कमाने का लक्ष्य जीवन मे होता है।  


वृषभ लग्न या वृषभ राशि का मालिकग्रह शुक्र होता है,जिससे ये मन में अधिक कामना होने से खुश रहते है,जीवन के सभी भोग-विलास को पाने के लिए उत्सुक होते है,इस लग्न के मनुष्य अधिक कामक्रीड़ा के प्रति अधिक सचेत होने से इनका प्यार हमेशा बना रहता है और इस लग्न पर खराब ग्रहों का असर होने पर मनुष्य दूसरे पुरुष-स्त्री से सम्बन्ध बना लेने वाले होता है। 


वृषभ लग्न के मनुष्य बीमार होने पर ठीक होने में अधिक समय लगता है,ऐसे तो ये तंदुरुस्त होते है और गाने,नाचने में,सिनेमा,ड्रामा में अधिक लालसा होती है। वृषभ लग्न के मनुष्य रुपये-पैसा कमाने में कोई संकट को मोल नहीं लेते है,रुपये-पैसे को इकट्ठा करने में लगे रहते है और खर्च के नाम पर अठन्नी भी खर्च नहीं करते है।


वृषभ लग्न का मालिक ग्रह शुक्र होने से मनुष्य भोग-विलास की चीजों- क्रीम-पाउडर,सेंट,जेवर,रत्न आदि का धंधा करते है।


वृषभ लग्न एक पृथ्वी तत्व की राशि होने  से इस लग्न के मनुष्य भूमि को जोतकर कृषि काम को पसंद करते है।


वृषभ लग्न के मनुष्य अच्छे अभिनेता,संगीत को गाने वाले,फिल्म को बनाने वाले,सिनेमा-थियेटर के मालिक बन सकते है। 


वृषभ लग्न के मनुष्य जिंदगी में अपने पति-पत्नी के साथ अच्छी तरह से जीवन का यापन करने वाले और अपनी मातृभूमि से बहुत ही प्यार करने वाले होते है।


मिथुन लग्न या मिथुन राशि :-


मिथुन लग्न के मनुष्य लम्बे कद के शरीर बिल्कुल ठीक-ठाक होता है,शरीर के हिसाब से भुजा कुछ लम्बी और मुख का रंग गेंहू के समान स्यामल होता है।


मिथुन लग्न वायु तत्व प्रधान राशि के होने से मनुष्य अपने मन के गुलाम होने से ज्यादा ध्यान नहीं देने से वे हमेशा खुश रहते है। रहन-सहन में समय-समय बदलाव करते रहते है। मिथुन लग्न का मालिकग्रह बुध के होने मनुष्य हर परिस्थिति में ढल कर अच्छी पढ़ाई और लिखाई करने के लिए सजर्ग होते है। 


मिथुन लग्न  दो स्वभाव की राशि होने से मनुष्य दो तरह से मन में सोचते हुए जल्दी से फैसला नहीं कर पाते है और अनेक तरह के जुदा-जुदा धन्धे करते है,क्योंकि उनके मन में तरह-तरह की सोच होने के कारण कोई भी काम को समय पर पूरा नहीं कर पाते है। 


मिथुन लग्न के मनुष्य में तीव्र बुद्धि होने से भले-बुरे की जानकारी होती है जिससे वे पूरी तरह से छानबीन करने की योग्यता रखते है


मिथुन लग्न के मनुष्य तरह-तरह की जानकारी के प्रति जागरूक होते हुए दूसरी जगहों में घूमते रहते है।


मिथुन लग्न के मनुष्य अच्छी तरह अपना पति-पत्नी धर्म निभाते है और एक-दूसरे के स्वभाव में बदलाव को सहन नहीं करते है।


मिथुन लग्न के मनुष्य दक्ष गुप्तचर,रिसर्च स्कॉलर,सम्पादक,एकाउंटेट,वकील और ब्रोकर आदि  बन सकते है


मिथुन लग्न के मनुष्य को दूसरे अधिकारी या आदमियों के नीचे काम करने पर ही सफलता मिलती है।


कर्क लग्न या कर्क राशि:-


कर्क लग्न के मनुष्य के शरीर का वजन अधिक होने उनके अंग कोमल होते है,लेकिन हाथ की पकड़ पक्की होती है। लेकिन इन लग्न के मनुष्य का पेट बीच की उम्र में बाहर की तरफ निकल जाता है,देह का आकार स्माल होने से चलते समय इनकी चाल से खुश होकर चलते है। कर्क लग्न में कर्क राशि का मालिकग्रह चन्द्रमा होने से वह हमेशा अलग-अलग तरह के आकार में बदलता रहता है। इस लग्न के मनुष्य के जीवन में भी तरह-तरह से बदलाव होते रहने के कारण से ये कभी आगे बढ़ते हुए व कभी पीछे की तरफ बढ़ते हुए विकास करते है।


कर्क लग्न के मनुष्य की मन के अंदर उपज की ताकत ज्यादा होने से ये बात-बात पर नाराज होकर अधिक जोश में आ जाने होते है।


कर्क लग्न के मनुष्य कभी हिम्मती बन जाते है,तो कभी कायर बन जाते है। इस लग्न के मनुष्य सामाजिक जीवन के मामलों में अधिक रुपये-पैसे कमाकर मान-सम्मान को पाने में कामयाब होते है। ये जल्दी आक्रोश में आकर तुरन्त ठंडे हो जाते है।


कर्क लग्न के मनुष्य पारिवारिक जिंदगी में अच्छी तरह से खुशी से जिंदगी को जीने वाले होते है, ये अपनी जिंदगी के प्रत्यक्ष ज्ञान को अपने बेटे-पोतो को अपनी याद रखने की क्षमता से उनको सुनाते हैं और उन पर अमल करने की शिक्षा देते है।


कर्क लग्न के मनुष्य अधिक सम्पन्नता को बीच की उम्र में पाते है,पूर्वोजो के रुपये-पैसे व जायदाद को बड़ी मुसीबतों एवं रुकावटों से पाते है।


कर्क लग्न चर राशि की होने से मनुष्य एक जगह ठहरने वाले नहीं होकर जगह-जगह पर फिरने के शौकीन होते है।


कर्क लग्न के सातवें घर का मालिक शनि ग्रह होने से मनुष्य बिना छल-कपट से जीवन को जीने वाले होते है,सातवें घर पर खराब असर होने पर इनका गृहस्थी जीवन में दुःखो के सागर की तरह हो जाता है।


कर्क लग्न के मनुष्य रुपये-पैसे से ज्यादा लगाव रखते हुए इनको इकट्ठा करने में लगे रहते है और खर्च करने में मक्खी चूस होते है।


कर्क लग्न के मनुष्य में बात-बात पर नाराज होकर अधिक जोश में आने का मिजाज होने से हिस्टिरिया,मन के अंदर किसी बात का डर रहनऔर खाने का नहीं पचना आदि बीमारी मुमकिन हो सकती है


कर्क लग्न के मनुष्य राजकीय सेवा,बहने वाले प्रदार्थों का धंधा,रत्न आदि के धंधे में अधिक कामयाबी मिलती है।


कर्क लग्न में गुरु ग्रह उच्च का होने से ये योग्य न्यायाधीश, मंत्री बन सकते है।

अक्टूबर 22, 2020

कालपुरुष में राशियों की जगह

कालपुरुष में राशियों की जगह

राशियों का कालपुरुष के शरीर में जगह :- सृष्टि की रचियता ब्रह्मा जी ने की है और सृष्टि की रचना करके मानव जाति को उत्पन्न किया है। मानव के शरीर के अंगों में अलग-अलग राशियों का स्थान दिया है और उन अलग-अलग अंगों पर जुदा-जुदा राशियों को स्वामी बनाया गया था। उन राशियों को उन अंगों पर स्वामित्व देकर उस अंग विशेष से सम्बंधित कमजोरी को दूर कैसे करे और कौन से अंग विशेष में विकार या दोष है उसका समाधान करके उस अंग विशेष को मजबूत कर सके। इसलिए कालपुरुष की उतपत्ति की जिससे मानव का शरीर में किस जगह पर विकार है,उसका निराकरण करके मानव को उस विशेष अंग को मजबूत बना सके। कालपुरुष दो शब्दों के मेल से बना है,जिसमें काल का अर्थ समय और पुरुष का अर्थ  मानव होता है। जिसका अर्थ यह है कि बड़ा स्वरूप वाला होता है। मानव जन्म के समय मानव शरीर के अंगों में बदलाव बतलाया गया। कालपुरुष को बारह राशियों में अलग-अलग राशियों का स्वामित्व दिया गया है


सम्पूर्ण जन्मपत्रिका को एक कालपुरुष माना जाता है और प्रत्येक राशि का ग्रह उस कालपुरुष के अंग पर हक रखते है।


1.मेष राशि :- कालपुरुष की पहली राशि मेष होती है, उसका स्वामी ग्रह मंगल होता है। कालपुरुष के अंग में इस राशि  की जगह सिर व उससे ऊपर की जगह पर माना जाता है।सिर से सम्बंधित जितनी बीमारियां जैसे-सिर का दुखावा,नींद का न आना, सोचने की शक्ति का नष्ट होना,मन के अंदर तनाव आदि इसी राशि से ही सोचते है। मेष राशि आग की तरह तेज जलने वाली,पित स्वभाव की और रात को बलवान होती है।


2.वृषभ राशि :- कालपुरुष की दूसरी राशि वृषभ होती है,इस राशि का स्वामीग्रह शुक्र होता है,जो काम क्रीड़ा का प्रतीक होता है। कालपुरुष के अंग में इस राशि की जगह मुख से लेकर कण्ठ तक होता है। मुख व कण्ठ,कपोलों से सम्बंधित बीमारियों,वायु एवं नेत्र बीमारी आदि के बारे में सोचते है।यह ठंडे स्वभाव की,वायु प्रकृति और रात को बलवान  होती है।


3.मिथुन राशि :- कालपुरुष की तीसरी राशि मिथुन होती हैं, इस राशि का स्वामीग्रह बुध होता है। इस राशि का हक स्कंध से हाथों तक होता है। इसके द्वारा मनुष्य के स्कंध,बाहु और हाथ के सम्बंध की बीमारी, शरीर मे गर्मी आदि बीमारी के बारे में सोचते है। यह राशि हवा तत्व की गर्म स्वभाव की दिन को मजबूत रहनी वाली होती है।


4.कर्क राशि :- कालपुरुष की चौथी राशि कर्क है, इस राशि का स्वामीग्रह चन्द्रमा होता है।इस राशि का हक वक्ष जगह पर मानते है और इसके द्वारा मनुष्य के उदर,वक्ष और गुर्दो आदि बीमारी के सम्बन्ध में सोचते है। यह राशि पानी की प्रधानता वाली,कफ की प्रकृति और रात के काल में मजबूत होती है।


5.सिंह राशि :- कालपुरुष की पांचवी राशि सिंह है, इस राशि का स्वामीग्रह सूर्य होता है। इस राशि का हक मानव शरीर के ह्रदय पर होता है यह राशि आग के समान गर्म स्वभाव की और पित की अधिकता वाली होती है। इस राशि में मनुष्य के ह्रदय,अस्थि और फेफड़ों आदि बीमारी के बारे में सोचते है।


6.कन्या राशि :- कालपुरुष की छठी राशि कन्या होती है, इस राशि का स्वामीग्रह बुध होता है। इस राशि का हक उदर या पेट पर होता है, जिससे हवा वाली ठंडे स्वभाव की व भूमि तत्व और रात के समय में मजबूत होती है। इससे उदर विकार से सम्बंधित बीमारियों के बारे में सोचते है।


7.तुला राशि :- कालपुरुष की सातवीं राशि तुला होती है, इस राशि का स्वामीग्रह शुक्र को माना जाता है। इस राशि का हक नाभि से बस्ति तक अंग कि जगह पर  कालपुरुष के शरीर में होता है। यह राशि हवा प्रधान होकर दिन के समय में मजबूत होती है।  इसके द्वारा मनुष्य के नाभि और उससे नीचे के अंगों के सम्बन्ध की बीमारी के बारे में सोचते है।


8.वृश्चिक राशि :- कालपुरुष के शरीर में आठवीं राशि वृश्चिक होती है,इस राशि का स्वामीग्रह मंगल होता है। इस राशि का हक गुप्त अंगों की जगह पर मानव शरीर में होता है। यह राशि पानी की अधिकता वाली कफ स्वभाव की और रात के काल मे मजबूत होती है। इसके द्वारा मनुष्य  शरीर की लम्बाई, जननेन्द्रिय आदि के सम्बन्ध की बीमारी के बारे में सोचते है।


9.धनु राशि :- कालपुरुष के शरीर के स्थान में नौवीं  राशि धनु राशि होती है, इस राशि का मालिकग्रह गुरु होता है। इस राशि का हक मानव शरीर के जांघो पर माना जाता है। यह राशि मानव शरीर मे आग के समान शीघ्र फैलने वाली,पित स्वभाव की और दिन के काल में मजबूत होती है। इसके द्वारा मानव शरीर के जांघो से सम्बंधित बीमारी के बारे में सोचते है।


10.मकर राशि :- कालपुरुष के शरीर के स्थान में दशवीं राशि मकर राशि होती है, इस राशि का मालिकग्रह शनि या मन्द होता है। इस राशि का हक मनुष्य के शरीर में घुटनों पर होता है। यह हवा के स्वभाव की भूमि पर संचार वाली और रात के काल में ज्यादा प्रभाव वाली होती है।  इसके द्वारा मानव शरीर के घुटनों के सम्बंध की बीमारी के बारे में सोचते हैं।


11.कुम्भ राशि :- कालपुरुष के शरीर के जगह में ग्यारहवीं राशि कुम्भ होती है, इस राशि का मालिकग्रह शनि या मन्द होता है। इस राशि का हक मानव शरीर के पिण्डलियों पर होता है। यह ठंडे स्वभाव की हवा के समान सब जगह पर स्थित और रात के काल मे प्रभाव वाली होती है। इससे मानव शरीर के आंत के सम्बन्ध में,पिण्डलियों में दुखावा आदि बीमारी के बारे में सोचते है।


12.मीन राशि :- कालपुरुष के शरीर के स्थान में बारहवीं राशिं मीन राशि होती है, इस राशि का मालिकग्रह गुरु होता है। इस राशि का हक मानव शरीर के पैरों पर होता है।बीह जल के प्रवाह वाली,कफ की प्रकृति की और रात के काल में जल्दी प्रभाव डालने वाली होती है। इससे मानव शरीर के पैर के सम्बन्ध की बीमारी के बारे में सोचते है।


राशियों का कालपुरुष के शरीर के अंगों होने का उपयोग :- अमुक राशि में अच्छा ग्रह होने पर और देखने पर उस अमुक राशि से सम्बंधित अंग ठीक और अच्छा होगा।


अमुख राशि में बुरे ग्रहों के होने पर और बुरे ग्रहों से देखने पर अमुख राशि से सम्बंधित अंग कमजोर व विकृत होगा।

रविवार, 11 अक्टूबर 2020

अक्टूबर 11, 2020

कुण्डली में कुयोग

कुण्डली में कुयोग

कुण्डली में कुयोग :- मनुष्य की जन्मकुंडली में ऐसे कुछ कुयोग होते है, जिनकी वजह से कठिनाइयों जैसे-पढ़ाई में मन नहीं लगना व मुश्किल होना,नौकरी-धंधे में कामयाबी नहीं मिलना,शादी में देरी या मुश्किल से शादी का होना और पति-पत्नी के सुख का नहीं मिलना या कमी होना। मेहनत करने पर भी रुपये-पैसे की स्थिति में परिवर्तन नहीं हो पाता है। मकान बनाने का योग नहीं बन पाते है। बीमारी का लम्बे समय तक पीछा नहीं छोड़ना आदि मुसीबतों का कारण जन्मकुंडली में कुयोगों के बनने से होता है।


कुयोगों के कारण एवं निवारण के उपाय :-ज्योतिष शास्त्र में कई तरह के कुयोगों के बारे में बताया गया है, जिनमें से कुछ के कारण एवं निवारण के उपाय निम्नलिखित है


(क) पढ़ाई में परेशानी :- कुंडली का पांचवा घर,पांचवे घर का स्वामी, दशवा घर,दशवें घर का स्वामी, बुध-जीव, बलवान होने पर और इन पर शुभ ग्रहों का प्रभाव पड़ने से  पढ़ाई में सफलता मिलकर अच्छी रहती है।


यदि पाचवें घर का स्वामी अशुभ घर में पाप ग्रह की राशि में या पाप ग्रह के द्वारा देखा जाता है, तो पढ़ाई में मुश्किल आती हैं।


यदि पाचवें घर का स्वामी नीच राशि में हो,पापग्रह के साथ हो, पाप ग्रह की राशि में या पाप ग्रह के द्वारा देखा जाता है, तो पढ़ाई में मुश्किल आती हैं।


पांचवे घर एवं दशवें घर में पापग्रह हो और इनके स्वामी कमजोर हो,तो पढ़ाई में मुश्किल आती है।


पांचवे घर का स्वामी या दशवें घर का स्वामी से छठे घर के स्वामी से या आठवें घर के स्वामी के साथ परिवर्तन योग हो,तो व्यक्ति अपनी मनपसंद विद्या के ज्ञान को प्राप्त नहीं कर पाता है।


बुध-जीव कमजोर होकर खराब घर में बैठे हो,तो भी इंसान अपने मनपसंद विषय की पढ़ाई करने में सफल नहीं हो पाता है।


निवारण के उपाय :- पढ़ाई की परेशानी को खत्म करने के लिए एवं पढ़ाई सम्बन्धी कुयोगों के निवारण के लिए कुयोग सम्बंधी ग्रह का पुखराज या पन्ना रत्न को धारण करना चाहिए ।


 मन्त्र :- 


ऊँ बुं बुधाय नमः।

ऊँ ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः।

ऊँ ह्रीं क्लीं हूं बृहस्पते नमः। 


आदि मंत्रो का जाप करवाना चाहिए।


(ख) धंधे या व्यवसाय में मुश्किलें :- धंधे में एक जगह पर नहीं टिक पाना,कई धंधे-नौकरी का बार-बार बदलाव का होना या धंधे-नौकरी में मन का नहीं लगना, उन्नति के अवसर का नहीं मिलना अथवा नौकरी का बहुत मेहनत करने पर भी मुश्किल से मिलना आदि कारणों की वजह जन्मकुंडली में कुयोगों के निशान होते है।


दशवें घर ,दशवें घर के स्वामी का कमजोर होना और 6-8-12 वें घर के स्वामियों से पीड़ित होने से धंधे-नौकरी में बार-बार उत्पन्न करते है


धंधे की बाधा निवारण के उपाय :- के लिए हीरा या माणिक्य रत्न को पहनना चाहिए।


मंत्रो का जाप :-


ऊँ ह्रीं श्रीं शुक्राय नमः।

ऊँ द्रां द्रीं द्रौं सःशुक्राय नमः।

ऊँ ह्रीं ह्रौं सुर्याय नमः। 


आदि मंत्रो का जाप करने से धंधे सम्बन्धी मुसीबत का समाधान हो जाता है।


भगवान गणेश जी की पूजा करनी चाहिए।


(ग) जायदाद की मुसीबत :- दूसरे,बारहवे और चोथे घर के स्वामी पाप ग्रह से सयोंग होकर आठवें घर मे स्थित हो,तो व्यक्ति सर्वदा किराये के मकान में रहता है।


दुश्मन जगह में पापग्रह होने पर या पापग्रह चौथे या सुख घर को देखने पर  व्यक्ति को घर का सुख नहीं मिलता है।


नीच राशि या दुश्मन राशि में भौम अथवा रवि के स्थित होने पर भी मनुष्य को घर का सुख नहीं मिलता है।


चोथे घर का स्वामी बारहवें घर में हो तो इंसान दूसरे के घर मे निवास करता है। आठवें घर में होने पर घर का अभाव होता है।


जायदाद की मुसीबत के निवारण के उपाय :- जन्मकुंडली में सम्बंधित ग्रह के साथ-साथ भूमिकारक ग्रह मंगल का रत्न मूंगा को पहनना चाहिए।


मन्त्र :-


ऊँ अंगारकाय नमः।

ऊँ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः।


मंगल ग्रह से सम्बंधित मंत्रो का जप और दान देने पर घर आवास बाधा का निवारण होता है।


पवनपुत्र हनुमान जी की पूजा व आराधना करने से घर,जमीन-जायदाद से सम्बंधित विवाद से मुक्ति मिल जाती है।


(घ) आर्थिक या रुपये-पैसे सम्बन्धी परेशानी :- रुपये-पैसे सम्बन्धी परेशानी की स्थिति के लिए जन्मकुंडली में दूसरा घर,दूसरे घर के स्वामी, ग्यारहवा घर, ग्यारहवें घर के स्वामी, जीव,भृगु से विचार किया जाता है।


यदि जन्मकुंडली में दूसरा घर,दूसरे घर के स्वामी, ग्यारहवा घर, ग्यारहवें घर के स्वामी, जीव,भृगु  कारक ग्रह कमजोर, शत्रु एवं नीच राशि में होने से रुपये-पैसे सम्बन्धी स्थिति खराब हो जाती है।


आर्थिक या रुपये-पैसे सम्बन्धी परेशानी का निवारण:-आर्थिक, उन्नति,धन समृद्धि के लिए सम्बन्धित ग्रह का रत्न नीलम या पन्ना को पहनना चाहिए।


मन्त्र :-


ऊँ ऐं ह्रिं श्रीं शनैश्चराय नमः।।

ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।।

ऊँ बुं बुधाय नमः।।

ऊँ ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुध्याय नमः।। 


आदि मंत्रो का जप करने आर्थिक, उन्नति,धन समृद्धि में बढ़ोतरी होगी।


आर्थिक, उन्नति,धन समृद्धि के लिए सम्बन्धित ग्रह से सम्बन्धित वस्तुओं का दान करना चाहिए।


माता लक्ष्मी जी की कृपा पाने के लिए उनके मन्त्र का जाप करना चाहिए और वैभव लक्ष्मी जी का शुक्रवार को व्रत करने से लाभ की प्राप्ति होगी।


(च) कालसर्प योग :- जन्मकुंडली में कालसर्प योग एक कुयोग होता है। कालसर्प दोष के अंतर्गत राहु व केतु के बीच में सभी ग्रह आ जाते है। कालसर्प के जीवन मुसीबतों वाला हो जाता है और जीवन में सुखों को कमी आ जाती है या जगह का बदलाव होना ,दुश्मनों द्वारा षड्यंत्र की योजना बनाना,विचारों में टकराव होना,रुपये-पैसे की कमी आना, बीमारियों से घिर जाना और बिना मतलब की मुसीबतें आदि का आना ये सभी इस योग के लक्षण है।


कालसर्प योग के निवारण के लिए :- सम्बन्धित ग्रह का रत्न गोमेद को धारण करना चाहिए।


मन्त्र :-


ऊँ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः।। 


आदि का जाप करना व दान देने से अशुभ प्रभाव कम होता है।