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गुरुवार, 22 अक्टूबर 2020

कालपुरुष में राशियों की जगह

कालपुरुष में राशियों की जगह

राशियों का कालपुरुष के शरीर में जगह :- सृष्टि की रचियता ब्रह्मा जी ने की है और सृष्टि की रचना करके मानव जाति को उत्पन्न किया है। मानव के शरीर के अंगों में अलग-अलग राशियों का स्थान दिया है और उन अलग-अलग अंगों पर जुदा-जुदा राशियों को स्वामी बनाया गया था। उन राशियों को उन अंगों पर स्वामित्व देकर उस अंग विशेष से सम्बंधित कमजोरी को दूर कैसे करे और कौन से अंग विशेष में विकार या दोष है उसका समाधान करके उस अंग विशेष को मजबूत कर सके। इसलिए कालपुरुष की उतपत्ति की जिससे मानव का शरीर में किस जगह पर विकार है,उसका निराकरण करके मानव को उस विशेष अंग को मजबूत बना सके। कालपुरुष दो शब्दों के मेल से बना है,जिसमें काल का अर्थ समय और पुरुष का अर्थ  मानव होता है। जिसका अर्थ यह है कि बड़ा स्वरूप वाला होता है। मानव जन्म के समय मानव शरीर के अंगों में बदलाव बतलाया गया। कालपुरुष को बारह राशियों में अलग-अलग राशियों का स्वामित्व दिया गया है


सम्पूर्ण जन्मपत्रिका को एक कालपुरुष माना जाता है और प्रत्येक राशि का ग्रह उस कालपुरुष के अंग पर हक रखते है।


1.मेष राशि :- कालपुरुष की पहली राशि मेष होती है, उसका स्वामी ग्रह मंगल होता है। कालपुरुष के अंग में इस राशि  की जगह सिर व उससे ऊपर की जगह पर माना जाता है।सिर से सम्बंधित जितनी बीमारियां जैसे-सिर का दुखावा,नींद का न आना, सोचने की शक्ति का नष्ट होना,मन के अंदर तनाव आदि इसी राशि से ही सोचते है। मेष राशि आग की तरह तेज जलने वाली,पित स्वभाव की और रात को बलवान होती है।


2.वृषभ राशि :- कालपुरुष की दूसरी राशि वृषभ होती है,इस राशि का स्वामीग्रह शुक्र होता है,जो काम क्रीड़ा का प्रतीक होता है। कालपुरुष के अंग में इस राशि की जगह मुख से लेकर कण्ठ तक होता है। मुख व कण्ठ,कपोलों से सम्बंधित बीमारियों,वायु एवं नेत्र बीमारी आदि के बारे में सोचते है।यह ठंडे स्वभाव की,वायु प्रकृति और रात को बलवान  होती है।


3.मिथुन राशि :- कालपुरुष की तीसरी राशि मिथुन होती हैं, इस राशि का स्वामीग्रह बुध होता है। इस राशि का हक स्कंध से हाथों तक होता है। इसके द्वारा मनुष्य के स्कंध,बाहु और हाथ के सम्बंध की बीमारी, शरीर मे गर्मी आदि बीमारी के बारे में सोचते है। यह राशि हवा तत्व की गर्म स्वभाव की दिन को मजबूत रहनी वाली होती है।


4.कर्क राशि :- कालपुरुष की चौथी राशि कर्क है, इस राशि का स्वामीग्रह चन्द्रमा होता है।इस राशि का हक वक्ष जगह पर मानते है और इसके द्वारा मनुष्य के उदर,वक्ष और गुर्दो आदि बीमारी के सम्बन्ध में सोचते है। यह राशि पानी की प्रधानता वाली,कफ की प्रकृति और रात के काल में मजबूत होती है।


5.सिंह राशि :- कालपुरुष की पांचवी राशि सिंह है, इस राशि का स्वामीग्रह सूर्य होता है। इस राशि का हक मानव शरीर के ह्रदय पर होता है यह राशि आग के समान गर्म स्वभाव की और पित की अधिकता वाली होती है। इस राशि में मनुष्य के ह्रदय,अस्थि और फेफड़ों आदि बीमारी के बारे में सोचते है।


6.कन्या राशि :- कालपुरुष की छठी राशि कन्या होती है, इस राशि का स्वामीग्रह बुध होता है। इस राशि का हक उदर या पेट पर होता है, जिससे हवा वाली ठंडे स्वभाव की व भूमि तत्व और रात के समय में मजबूत होती है। इससे उदर विकार से सम्बंधित बीमारियों के बारे में सोचते है।


7.तुला राशि :- कालपुरुष की सातवीं राशि तुला होती है, इस राशि का स्वामीग्रह शुक्र को माना जाता है। इस राशि का हक नाभि से बस्ति तक अंग कि जगह पर  कालपुरुष के शरीर में होता है। यह राशि हवा प्रधान होकर दिन के समय में मजबूत होती है।  इसके द्वारा मनुष्य के नाभि और उससे नीचे के अंगों के सम्बन्ध की बीमारी के बारे में सोचते है।


8.वृश्चिक राशि :- कालपुरुष के शरीर में आठवीं राशि वृश्चिक होती है,इस राशि का स्वामीग्रह मंगल होता है। इस राशि का हक गुप्त अंगों की जगह पर मानव शरीर में होता है। यह राशि पानी की अधिकता वाली कफ स्वभाव की और रात के काल मे मजबूत होती है। इसके द्वारा मनुष्य  शरीर की लम्बाई, जननेन्द्रिय आदि के सम्बन्ध की बीमारी के बारे में सोचते है।


9.धनु राशि :- कालपुरुष के शरीर के स्थान में नौवीं  राशि धनु राशि होती है, इस राशि का मालिकग्रह गुरु होता है। इस राशि का हक मानव शरीर के जांघो पर माना जाता है। यह राशि मानव शरीर मे आग के समान शीघ्र फैलने वाली,पित स्वभाव की और दिन के काल में मजबूत होती है। इसके द्वारा मानव शरीर के जांघो से सम्बंधित बीमारी के बारे में सोचते है।


10.मकर राशि :- कालपुरुष के शरीर के स्थान में दशवीं राशि मकर राशि होती है, इस राशि का मालिकग्रह शनि या मन्द होता है। इस राशि का हक मनुष्य के शरीर में घुटनों पर होता है। यह हवा के स्वभाव की भूमि पर संचार वाली और रात के काल में ज्यादा प्रभाव वाली होती है।  इसके द्वारा मानव शरीर के घुटनों के सम्बंध की बीमारी के बारे में सोचते हैं।


11.कुम्भ राशि :- कालपुरुष के शरीर के जगह में ग्यारहवीं राशि कुम्भ होती है, इस राशि का मालिकग्रह शनि या मन्द होता है। इस राशि का हक मानव शरीर के पिण्डलियों पर होता है। यह ठंडे स्वभाव की हवा के समान सब जगह पर स्थित और रात के काल मे प्रभाव वाली होती है। इससे मानव शरीर के आंत के सम्बन्ध में,पिण्डलियों में दुखावा आदि बीमारी के बारे में सोचते है।


12.मीन राशि :- कालपुरुष के शरीर के स्थान में बारहवीं राशिं मीन राशि होती है, इस राशि का मालिकग्रह गुरु होता है। इस राशि का हक मानव शरीर के पैरों पर होता है।बीह जल के प्रवाह वाली,कफ की प्रकृति की और रात के काल में जल्दी प्रभाव डालने वाली होती है। इससे मानव शरीर के पैर के सम्बन्ध की बीमारी के बारे में सोचते है।


राशियों का कालपुरुष के शरीर के अंगों होने का उपयोग :- अमुक राशि में अच्छा ग्रह होने पर और देखने पर उस अमुक राशि से सम्बंधित अंग ठीक और अच्छा होगा।


अमुख राशि में बुरे ग्रहों के होने पर और बुरे ग्रहों से देखने पर अमुख राशि से सम्बंधित अंग कमजोर व विकृत होगा।