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रविवार, 11 अक्तूबर 2020

ग्रहों का स्वरुप

ग्रहों का स्वरुप
ग्रहों का स्वरुप (Planetary pattern) :- ज्योतिष महान ज्ञान शास्त्र है, जिसमे समस्त सृष्टि की रचना से लेकर भूत, भविष्य और वर्तमान काल की जानकारी मिल जाती है और पुराने जमाने में हमारे ऋषि-मुनियों ने आकाशीय घूमने वाले तारे-सितारों के बारे में विशेष जानकारी प्राप्त की थी। इन आकाशीय तारे-सितारों से मनुष्य के जीवन में घटने वाली घटनाओं के साथ सम्बंध बताये और उनका विश्लेषण किया। फिर  ऋषि-मुनियों ने भूत, भविष्य व वर्तमान काल के बारे में पहले से ही जानकारी मिल जाती थी। इस आधार पर नियम बताये जो आज के युग में चल रहे है। ग्रहों की संख्या नौ बताई और इन नौ ग्रहों के गणितीय आधार पर ज्योतिष में घटनाओं की जानकारी मिलती है और ग्रह का मानव जीवन पर जुदा-जुदा नतीजा मिलता है।

सूर्य की ओर सभी ग्रह अपनी-अपनी चाल से आगे बढ़ रहे होते है और मुख सूर्य की तरफ उन सभी ग्रहों का होता है। इन सभी ग्रहों का सम्बन्ध पृथ्वी से होता है।

रवि :- कश्यप गोत का क्षत्रिय जाती एवं कलिंग देश का रवि मालिक है,रवि ग्रहों का सम्राट है।कमल को एकैक हाथ में लिये है। देवी फूल समान खून के रंग का है।कपड़े का रंग सिंदूर के समान,जेवर को पहने हुए और हार को धारण किये हुए हैं। हीरे के समान चमकते हुए, सोम और अग्नि को रोशनी देने वाले तेज और अंधेरे को अपनी रोशनी से तीनों लोक में उजाला करने में समर्थ है। सात घोड़ों से जुते रथ पर बैठकर सुमेरु पर्वत के चारों ओर चक्कर लगाते है।इस उजाले रूपी भास्कर देव की उपासना करनी चाहिए।अधिदेवता  शिव शंकर और प्रत्यधिदेवता अग्नि देव रवि के होते है।

पृथ्वी से सूर्य 110 गुना बड़ा होता है और नौ करोड़  सत्तर लाख मील सूर्य की दूरी होती है। सूर्य की किरणें पृथ्वी पर पहुचने में 8 मिनट का समय लगता है। एक राशि में एक महीने तक रवि रहता है। 365 दिन छह घण्टे का समय आकाश मण्डल में रवि को घूमने में लगता है। कालपुरुष की आत्मा होने से सूर्य ग्रह को आत्मा का कारक माना है,सिंह राशि का मालिकग्रह सूर्य होता है।पुरुष प्रधान ग्रह है जो जाति से क्षत्रिय होता है।रवि पूर्व दिशा का मालिक है।सूर्य का रंग लाल का होता है। पिता के सम्बन्ध के बारे में जानकारी देता है,सूर्य का निवास स्थान देवालय,पर्वत,वन,उजाले वाला बाहर की तरफ खुली जगह  माना जाता है।शरीर में आदमी का दाँया और औरत का बायाँ नेत्र का, बाल,सिर,मस्तिष्क,चेहरा,मुख,ह्रदय,प्लीहा,पेट,
खून और हड्डी का होता है और लू लगना, आंखों की बीमारी,अधिक दस्ते लगना, सिर में दुखावा,बालो का झड़ना,मिर्गी के दौरे पड़ना,पित्त दोष,जहर की पीड़ा और शरीर में जलन होना आदि का होना। सूर्य का मौसम गर्मी होता है। गर्भ के दसवें माह का भी स्वामी होता है। उम्र में 50 साल का,मोटे लाल कपड़े का,पक्षी प्राणीजातीय का और बड़े-बड़े मजबूत पेड़ो पर भी हक होता है। सूर्य को सोना,तांबा धातु का भी होता है। ग्रहों में सूर्य को सब ग्रहों में राजा का पद दिया गया है। गुड़,मसूर की दाल,घृत,शिला,ओषधि और माणिक्य  आदि वस्तुओं पर सूर्य ग्रह का असर होता है।अधिदेवता  शिव शंकर और प्रत्यधिदेवता अग्नि देव रवि के होते है।

सोम :- अत्रि गोत के यामुन वतन के मालिक सोम भगवान है। अमृत के समान देह है और दुग्ध रूपी सफेद देह पर सफेद कपड़ा पहनकर,गले में मोती का हार,माल्य को पहने हुए और शरीर पर लेप किया हुआ है।  एक हाथ से आशीर्वाद देते हुए व दूसरे हाथ में गदा को धारण किये हुए है। अपनी शीतल किरनो से तीनों लोक में शीतलता देते है। सफेद दश घोड़ो से जुते तीन चक्र रथ पर सवार होकर सुमेरु पर्वत के चारों ओर रात को चक्कर लगाते हैअधिदेवता  देवी उमा और प्रत्यधिदेवता जल देव सोम के होते है। अत्रि ऋषि व ऋषि कर्दम की पुत्री अनुसुइया के पुत्र सोम होते है,इन सोम को ही चन्द्रमा कहते है, जो सुंदर,गोरे रंग के सात्विक गुण से युक्त आकर्षक जवानी से पूर्ण होते है। चन्द्रमा ग्रह माता,मन और राजपद में रानी पद के कारक होते है।चाँदनी रात के समय में जो ओस की बूंदे गिरती है उनका सम्बन्ध चन्द्रमा से होने के कारण उनको निशाधिपति कहा जाता है। जन्म देने से सम्बन्ध चन्द्रमा ग्रह का होता है।

भौम :- गोत भारद्वाज के क्षत्रिय भौम स्वामी अवंति वतन के होते है। अग्नि के समान खून के रंग की आकृति होती है।शरीर पर खून के रंग के कपड़े पहने हुए,माल्य को धारण करके और भेड़ की सवारी होती है। चार भुजाओं वाले जिनमें एक हाथ में शक्ति, दूसरे हाथ से आशीर्वाद, तीसरे हाथ से अभय और चोथे हाथ में गदा को लिए है।  इनकी चमक प्रत्येक अंग-अंग से दिख रही है। भेड़ के रथ पर बैठकर सुमेरु पर्वत के चारों तरफ चक्रकर लगाते हुए अपने अधिदेवता कार्तिकेय और प्रत्यधिदेवता पृथ्वी के साथ रवि के सामने जा रहे है। भौम ग्रह को अग्नि के समान तेजवान होने के कारण इनका रंग खून के समान लाल होने से इनको अंगारक भी कहते है और इनमें तामसिक गुण का स्वभाव होने से ज्यादा घमण्ड,अभिमान,अधिक स्वयं पर विश्वास वाले,किसी काम को अपनी क्षमता से पूरी ऊर्जा से करने वाले और जल्दी गुस्सा करने से युद्ध करने के लिए तत्पर रहने वाले ब्रह्मचारी बुध ग्रह होते है। माता भूमि की सन्तान होते है।मेष और वृश्चिक राशि के मालिक ग्रह मंगल को मानते है।

बुध :- गोत अत्रि के शुद्र जाति का बुध मगध वतन का मालिक है। देह का रंग हरा होता है। एक हाथ में ढाल, दूसरे हाथ में गदा या मुदगरतीसरे हाथ से आशीर्वाद देते हुए और चोथे हाथ में तलवार होती है। बड़ी सौम्य आकर का हरे रंग के कपड़े पहनकर मंदिर रामगर एक  पंख वाले सिंह के रथ पर सवार होते है। नारायण अधिदेवता और विष्णु जी प्रत्यधिदेवता होते है। सूर्य ग्रह को बुध ग्रह सबसे प्यारा होता है।व्यापार के कारक और व्यापारियों की रक्षा करने वाले रजोगुण से युक्त बुध ग्रह होते है। बुधवार के दिन अधिक नतीजा देने वाले होते है और शान्ति से अच्छे तरह वाणी से बोलने वाला बुध ग्रह होता है।माता तारा और पिता चन्द्रमा की बेटा बुध ग्रह है

बृहस्पति :- गोत अंगिरा के ब्राह्मण जाति के बृहस्पति सिंधु वतन के मालिक है। देह से पीले है। कमल पर पीताम्बर पहन कर बैठे है। एक हाथ में रुद्राक्ष, दूसरे हाथ से आशीर्वाद देते हुए,तीसरे हाथ मेंं पत्थर और चोथे हाथ में लकड़ी लिए है। ब्रह्मा अधिदेवता और इन्द्र प्रत्यधिदेवता बृहस्पति के होते है। बृहस्पति ग्रह को देवताओं में गुरु पद की पदवी दी गयी है,सब ग्रहों में बृहस्पति ग्रह को अपने धर्म के ज्ञान,शीलवान और सात्विक गुण के कारण उच्च पद दिया गया है। जो अपना सब कुछ धर्म की रक्षा के लिए कुर्बान करने के लिए तैयार रहते है, इसलिए इनको देवताओं के दरबार में राजपुरोहित का पद दिया है। राक्षसों के गुरु जो एक आंख से काने शुक्राचार्य है,उनसे देव गुरु बृहस्पति की दुश्मनी बहुत ही ज्यादा होती है। 

शुक्र :- गोत भृगु के ब्राह्मण जाति के शुक्र भोजकट वतन के मालिक है।साफ व अच्छे चेहरे वाले सफेद रंग की देह वाले सफेद कपड़े पहनकर कमल पर बैठे हुए है,एक हाथ में रुद्राक्ष, दूसरे हाथ से आशीर्वाद देते हुए, तीसरे हाथ में पत्थर और चोथे हाथ में लकड़ी लिए घोड़े या मगरमच्छ सवार दिखते है। शुक्र के इन्द्र अधिदेवता और चन्द्रमा प्रत्यधिदेवता होते है। भृगु ऋषि और ख्याति की सन्तान में धाता और विधाता पुत्र,एक कन्या श्री नाम की और एक पुत्र कवि नाम का जो शुक्राचार्य के नाम से जाना जाते है। पढ़ाई के बाद इनको देवताओं का गुरु नहीं बनाने पर देवताओं से नाराज होकर ये राक्षसों के गुरु बने थे। शुक्र ग्रह  राजसिक प्रकृति के कामक्रीड़ा,वीर्य,पत्नी और ऐश्वर्य के प्रतीक है। शुक्र ग्रह की महादशा 20 साल की होती है,जो शुक्र अच्छी हालत में होने पर सुख-सम्प्रदा,भोग-विलास और जीवन में सब तरह से आराम देता है।

शनि :- गोत कश्यप के शुद्र जाति के शनि सौराष्ट्र के मालिक है। काले रंग  की देह पर काले कपड़े को पहन कर एक हाथ में बाण, दूसरे हाथ से आशीर्वाद देते हुए, तीसरे हाथ में कांटा और चोथे हाथ में धनुष लिए गिद्ध या कौए पक्षी की सवारी करते हुए है। शनि के यमराज अधिदेवता और प्रजापति प्रत्यधिदेवता होते है। शनि ग्रह के पिता सूर्य और माता छाया है,जन्म होने पर सूर्य पिता पर इनकी नजर दृष्टि पड़ने से पिता को इनका असर भोगना पड़ा इसलिए पिता व पुत्र के बीच हमेशा मतभेद रहता है, अपनी तामसिक स्वभाव से जिस पर इनका असर होता है, वह असर लंबे समय तक चलता है, क्योंकि शनि ग्रह पैर से लँगड़े होने से इनके चलने की चाल बहुत ही धीमी होती है।शनि ग्रह को ढाई साल का समय एक राशि को पार करने में लगता है और तीस साल का समय बारह राशियों को पार करने में लगता है। शनि ग्रह मनुष्य को धीरे-धीरे नतीजा देते है और देते है तो  छप्पर फाड़कर देते है। ये सब नतीजों को न्याय से देते है।

राहु :- गोत पैठीनस के शुद्र जाति के राहु मलय राष्ट्र के मालिक है।राहु काले रंग की देह पर काले कपड़े पहनकर एक हाथ में तलवार,दूसरे हाथ से आशीर्वाद देते हुए, तीसरे हाथ में कांटा लिए और चोथे हाथ में ढाल लिये सिंह की सवारी करते हुए है। काल अधिदेवता और सर्प प्रत्यधिदेवता राहु के होते है।राहु राक्षस कुल में देवी सिंहिका व प्रेषित पिता के पुत्र है। राहु का सिर अमर होने से इसे ग्रह में स्थान दिया गया है। क्योंकि धर्म की रक्षा के लिए समुद्र मंथन से अमृत कलश मिलने पर राहु ने धोखे से अमृत कलश को देवताओं से छीन लेने पर विष्णु जी मोहनी रूपी ओरत का रूप लेकर कलश को छीन लिया लेकिन थोड़े अमृत की बूंदे राहु ने चाटने से अमर हो गये, विष्णु जी अपने चक्र से राहु के दो भाग कर दिये, जिनमे सिर का भाग राहु और धड़ का भाग केतु बन गया,जो और राहु समय-समय पर अपनी दुश्मनी सूर्य और चन्द्रमा से निकालने के लिए उनको अपनी तरह उनको निगल कर ग्रहण लगाता है। राहु ग्रह के सिर को सापों में प्रमुख जगह दी गयी है। राहु पांखण्ड करने वाला, दूसरे की बुराई करने वाला और झूठ बोलने वाला वायु प्रकृति का होता है।

केतु :- गोत जैमिनी के शुद्र जाति के केतु कुशद्वीप के मालिक है। केतु खण्डित मुँह वाला और धुँए के रंग के देह पर धुँए के समान रंग के कपड़े पहनकर एक हाथ में गदा और दूसरे हाथ से आशीर्वाद देते हुए गिद्ध की सवारी करते हुए है। चित्रगुप्त अधिदेवता और ब्रह्मा प्रत्यधिदेवता केतु के होते है। अमरता के कारण केतु को छाया ग्रह के रूप में मानते है। क्योंकि केतु राहु का धड़ है और साँप की पूंछ मानते है।ये सूर्य व चन्द्रमा की चेतना को कमजोर कर तामसिक केतु की काली परछाई से ढक जाती है,उस समय यह लगता है कि केतु ने सूर्य व चन्द्रमा को गले मे निगल लिया है। रवि व सोम जब आकाश में घूमते है तब केतु की काली परछाईं उनको अपने अंदर समावेश कर लेती है और केतु धरती और चन्द्रमा के पात बिंदु होते है। केतु को अवरोही या चन्द्र आसंधि दक्षिण के देवता माना जाता है। केतु ग्रह वन में घूमने वाले,जिसको देख कर डर लगने लगे और गुस्से से भरी आंखो वाले होते है।