Breaking

शनिवार, 10 अक्तूबर 2020

कालपुरुष की कुंडली द्वादश भावों की जानकारी

कालपुरुष की कुंडली द्वादश भावों की जानकारी

द्वादश भावों की जानकारी कालपुरुष की कुंडली से


1.शरीर भाव :- मनुष्य की जन्मकुंडली का पहला घर को जन्म भाव या लग्न भाव कहते है। इस घर से मनुष्य को जन्म होने से जिन-जिन वस्तुओं की प्राप्ति होगी उसके बारे में सोचते है जैसे-शरीर, colour,आकर,जन्म की जगह,जन्म का काल की बातें आदि।


पहले घर से मनुष्य की औकात, घर की चारदीवारी, भूमि के बारे में जानकारी को प्राप्त कर सकते है। इस घर के द्वारा मनुष्य कितनी भलाई करता है और कितना सीधे स्वभाव का अदि की जानकारी के बारे में जान सकते है। इस घर से मनुष्य की उम्र के पहले पड़ाव के बारे में ,जीवन के आरंभ का फल जो उसे सहन करना पड़ता है। पहले घर का कारक रवि होता है, जो पूर्व दिशा का कारक होता है। इस प्रकार रवि मनुष्य की जन्मकुंडली में अच्छा होगा तो उस मनुष्य के लिए पूर्व दिशा की ओर का घर अच्छा रहेगा।रवि पहले घर का कारक ग्रह होने से वह उच्च का नतीजा तथा शनि नीच का नतीजा देगा।कालपुरुष की कुंडली के अनुसार भौम ग्रह पहले घर का मालिक ग्रह होता है, अतः भौम इस घर मे अच्छा होता है। भौम मालिकग्रह होने से मनुष्य में अधिक ऊर्जा ताकत देने वाला होता है। रवि की दशा को देखकर जान सकते है कि यह किस तरह से नतीजा देगा। पहले घर से रोजी-रोटी किस तरह मिलेगी या मनुष्य के पास में रुपये-पैसे जो अपनी मेहनत कर कमाएगा की जानकारी मिल सकती है। कालपुरुष का पहला घर मनुष्य के शरीर के पहले अंग माथे का प्रतिनिधि होता है।


2.धन भाव :- मनुष्य की की कुंडली में दूसरे घर को धन भाव कहते है। धन घर से खाने-पीने के साधन,रुपये-पैसे के बारे में सोचते है। द्वितीय भाव से दूसरे शरीर अंग मुख,चेहरे की आभा,बनावट,नेत्रों आदि का कालपुरुष की कुंडली से सोचते है। धन घर का कारक गुरु ग्रह होता है, लेकिन कालपुरुष की कुंडली में दूसरे घर में वृषभ राशि होती है,वृषभ राशि का स्वामी शुक्र ग्रह एवं चन्द्रमा उच्च का होता है।शुक्र ग्रह मालिक होने से मनुष्य को भोग-विलास और एक-दुसरे की ओर आकर्षित करता है। इस घर से मनुष्य का मान-सम्मान और इकट्ठा किया हुए रुपये-पैसे के बारे में जानकारी देता है। पिता की सम्पति जो अच्छी तरह से कमाकर इकट्ठी की गई हो उसके बारे में बताता है। गुरु के कारक होने से मनुष्य की आरंभ की उम्र,रेत,कृषि एवं उड़ने वाली गैसों के बारे में जानकारी मिलती हैं। इस घर से बोली दोष,वचन शक्ति, कुमार की अवस्था,कला-संगीत की जानकारी,आंखों से नहीं दिखाई देने का,शुरुआत की पढ़ाई, मारक दशा की जानकरी मिलती है। इस घर से उत्तर-पश्चिम दिशा के बारे में बताता है।


3.भाई-बहिनों का भाव :- मनुष्य की कुंडली मे तीसरे भाव में मिथुन राशि पड़ती है और इस भाव को भातृ भाव भी कहते है।मनुष्य जब तक मेहनत नहीं करता है तब तक उसके पास नहीं रुपये-पैसे आएंगे और नहीं उसके पास बच पाएंगे। तीसरे घर से मनुष्य के ताकत,भुजा,पराक्रम,उत्साह, ताजगी और मेहनत आदि का है और मनुष्य को कर्त्तव्यौ को निभाने, दूसरों की मदद करने और जिम्मेदारी का एहसास करवाता है। मनुष्य के जीवन में उतार-चढ़ाव को बताता है।तीसरे भाव का कारक भौम ग्रह और मालिकग्रह बुध होता है। भौम ग्रह का ज्यादा हक होने से बुध इस घर में अच्छा परिणाम नहीं देते है।यह भाव दक्षिण दिशा का होता है और मेष,वृश्चिक राशि और मकर राशि का मंगल बहुत ही अच्छा होता है।  छोटे भाई-बहिनों के सम्बन्ध एवं उनकी आर्थिक दशा के बारे में इस घर से पता चलता।


स्वंय को हानि,दोस्ती, लिखने की योग्यता, उचित रुपये-पैसे के बारे में,छोटी-छोटी यात्राएं, घर के अंदर रखे समान आदि का इस भाव से पता चलता है। खराब ग्रह होने पर मनुष्य को मेहनत का पूरा नतीजा नहीं मिलता है। नेत्र की पलकों, जिगर,खून कितना है, खून में ऑक्सीजन की मात्रा और खून के विकारों की जानकारी इस भाव से मिलती है।


4.चतुर्थ भाव :- कालपुरुष की कुंडली के चतुर्थ भाव में कर्क राशि पड़ती है और इस राशि का मालिक ग्रह चन्द्रमा व कारक ग्रह भी चन्द्रमा होता है और गुरु इस घर में उच्च का नतीजा देता है। कालपुरुष के चौथे अंग वक्ष:जगह एवं ह्रदय से सम्बन्ध होता है। मनुष्य का तन,धन तथा मेहनत तब ही सफल होती है, जब मनुष्य को कोई भी काम करने की मन से सोच होती है,इन सभी सोच को चोथे घर विचारते है। इस भाव से माता के बारे में व औरतों के गर्भ के बारे में विचार करते है। मनुष्य के स्वयं के ऊपर विश्वास में कमी और माता के सेहत पर भी खराब नतीजा मिलता है ,जब इस भाव में खराब ग्रह होते है। यह भाव का उत्तर-पूर्व दिशा को बताता है। इस भाव से दुग्ध देने वाले पशु,ननिहाल वालों की धन की हालत,जीवन के दूसरे सुख अर्थात् गृहस्थी का सुख एवं जवानी का सुख और रात का भी सम्बन्ध की जानकारी मिलती है। इस भाव में अच्छे ग्रह से निंद्रा अच्छी आकर अच्छे सुख के समाचार मिलते है। इस घर से डर,मिरगी की बीमारी, माता,वाहन,कृषि, जमीन-जायदाद,दुश्मनी और अपना फायदा आदि का विचार भी होता है।


5.पांचवा भाव :- पाचवें भाव में सिंह राशि कालपुरुष की कुंडली में पड़ती है,इसका मालिकग्रह रवि और कारक ग्रह गुरु होता है। इस भाव का मालिकग्रह रवि होने से उजाला का प्रतीक होता है।घर में उजाला व हवा के बारे में रवि से जान सकते है।यह भाव पूर्व दिशा का होता है। मनुष्य के पास में  शरीर, धन,मेहनत, कामना की शक्ति सब कुछ हो,तो लेकिन उसके पास यदि सोचने की ताकत नहीं हो,तो उसका जीवन बेकार हो जाता है।इस भाव के द्वारा सन्तान का विचार करते है।कालपुरुष के शरीर अंगो में पेट एवं पीठ का विचार इस भाव से करते है।गुरु ग्रह कारक होने से मनुष्य के पढ़ाई,ज्ञान एवं मन के नतीजे को,अपने आराध्य देव,सन्तान की प्राप्ति, प्यार,हास-उल्लास, लाटरी,प्रतियोगी परीक्षाएँ, सट्टा से धन और  राजकीय सेवा का योग भी जानते है।


6.छठा भाव :- छठा भाव में कन्या राशि कालपुरुष की कुंडली में पड़ती है,इस राशि का मालिक व कारक ग्रह बुध होता है और शुक्र नीच राशि का नतीजा देता है। मनुष्य शरीर,धन,परिवार कुटुंब ,मेहनत,अपनी कामना शक्ति, सोचने की क्षमता से पूर्ण होने यदि वह बाधाओं, मुश्किलों,सामाजिक दुश्मन विरोध शक्तियों से नहीं बचता है तो उसे सफलता नहीं मिलती है। इस भाव से दुश्मनों,मुश्किलों, बाधाओं,दूसरी जाति,बाहरी वस्तुओं आदि का विचार करते है। इस भाव से किसी से कर्ज  लेने व देने का विचार,दुश्मन का विचार और मनुष्य का बीमार होने का विचार भी करते है। कालपुरुष के शरीर अंगो जैसे आँतें, कमर,पुट्ठे आदि का भी इस भाव से सोचते है।बुध त्वचा एवं बुद्धि का प्रतिनिधि होने से शरीर का रूखापन एवं लम्बी सोच के बारे में बताता है।इस भाव से विपरीत राजयोग,घाव,चोरी का योग,मामा के सम्बन्ध में एवं विभिन्न दुःखो के बारे में जानकारी मिलती है।


7.सप्तम भाव :- सातवें भाव में तुला राशि कालपुरुष की कुंडली में पड़ती है, इस राशि का मालिक एवं कारक  ग्रह शुक्र होता है और रोजगार की साझेदारी का कारक ग्रह बुध होता है।इस भाव में शनि ग्रह उच्च का एवं रवि ग्रह नीच का नतीजा देता है। इस भाव से मनुष्य के कामक्रीड़ा,वीर्य,पति-पत्नी,साझेदारी आदि का विचार करते है। इस भाव से पत्नी,पुत्री,पौत्री और बहन का सम्बन्ध का विचार करते है।इस भाव से विवाह कासुख,अच्छे परिवार में विवाह,बहुत विवाह,प्यार से विवाह,पति-पत्नी के अलग होने का,विवाह का समय,कामक्रीड़ा की रुचि और मारकेश का विचार करते है।


8.आठवां भाव :- आठवें भाव में वृश्चिक राशि कालपुरुष की कुंडली में पड़ती है, इस राशि का मालिकग्रह मंगल और मंगल भी कारक ग्रह मानते है। मनुष्य की उम्र की जानकारी इस भाव से मिलती है। इसका कारक ग्रह शनि होने से सन्यास के बारे में भी जानकारी प्राप्त होती हैं। मनुष्य का घर अच्छी या बुरी जगह है इसकी जानकारी प्राप्त होती है। पूर्वजन्म के रोगों, रोग के आरम्भ और मनुष्य की मौत किस तरह से होगी इसकी जानकारी मिलती है। जमीन में गड़े धन एवं विपरीत राजयोग,विदेश यात्रा,आत्महत्या आदि की जानकारी प्राप्त होती है।इस भाव से मनुष्य के जीवन मे आने वाली खराब दशा तथा मुश्किलों की जानकारी प्राप्त होती है।


9.नौवां भाव :- नौवां भाव में धनु राशि कालपुरुष की कुंडली में पड़ती है, इस राशि का मालिकग्रह  एवं कारक ग्रह गुरु होता है। इस भाव से धर्म का ज्ञान एवं भाग्य का होता है।यह भाव अच्छा होने पर मनुष्य के जीवन की उन्नति करवाता है। यह भाव खराब स्थिति में होने पर मनुष्य जीवन का बहुत बड़ा भाग बेकार हो जाता है और जीवन भर संघर्ष करता है। इस भाव से ईश्वर की आराधना के स्थान की जानकारी प्राप्त होती है। इस भाव से घर एवं बाहर के सभी बूढे-बुजुर्गों से सम्बंधित,मनुष्य का पिता से सम्बन्ध,फायदा और अर्थ की स्थिति आदि का पता चलता है। चिकित्सक के द्वारा उपचार किस तरह होगा इसकी जानकारी, ईश्वर का आशीर्वाद, राजकीय सेवा,लम्बी यात्रा, दूसरी पत्नी और उससे पुत्र की प्राप्ति के बारे जानकारी मिलती है।


10.दशवा भाव :- बिना अपने फायदे से भलाई का कार्य करने पर ही धर्म टिक सकता है, इसलिए कर्म की जगह को दसवाँ रखा है।इस भाव से मनुष्य के कर्म के बारे में जानकारी मिलती है। इस भाव से मनुष्य का जीवन चलाने का साधन कैसा होगा इसकी जानकारी मिलती है। इस भाव के अच्छी स्थिति में होने पर मनुष्य के जीवन को चलाने के साधन और पिता की आर्थिक स्थिति आदि की जानकारी का पता चलता है। दसवाँ भाव में मकर राशि कालपुरुष की कुंडली में पड़ती है, इस राशि का मालिकग्रह शनि,मंगल ग्रह उच्च और गुरु ग्रह नीच का नतीजा देता है और रवि ग्रह कारक ग्रह होता है।शरीर की ताजगी और मनुष्य को कितना मान-सम्मान व अपमान होगा उसकी स्थिति का पता पड़ता है। इस भाव से मनुष्य की चतुराई,राजकीय सेवा,जीवन के विकास और अच्छे-बुरे कर्मों का पता चलता है


11.ग्यारहवां भाव :- मनुष्य के द्वारा जीवन में अच्छे कार्य को अच्छे मन व  बिना स्वार्थ से करते हुए अपने जीवन में  उन्नति व विकास की पूरीतरह से प्राप्ति हो जाय,ग्यारहवां भाव या प्राप्ति की जगह का काम है।इसलिए ग्यारहवें भाव को प्राप्ति, आवक,आमदनी और मौके का बताया गया है। यदि यह भाव अच्छी दशा में हो तो मनुष्य के जीवन में अच्छे मौके मिलते है और मनुष्य अपनी मेहनत से ऊँचाई की ओर आगे बढ़ता है। मनुष्य का ज्यादा की इच्छा होने से वह दूसरों को हानि पहुंचाने से भी नहीं पीछे हटता है और अपने स्वार्थ में अंधा होकर अपना फायदा को प्राप्त करनी की कोशिश में लगा रहता है, जो इस भाव में जानकारी मिलती हैं। ग्यारहवें भाव में  कुम्भ राशि कालपुरुष की कुंडली में पड़ती है, इस राशि का मालिकग्रह शनि होता है और गुरु कारक ग्रह होता है। यह भाव रिश्तों में बड़े भाई-बहिनों का,शरीर के अंग बायें हाथ,धन का मिलना ससुराल से, राजकीय सेवा से धन का मिलना,बड़ी यात्राएं,बड़े भाई के बारे में जानकारी, माता और बहनों के सुख में कमी आदि की जानकारी मिलती है।


12.बारहवां भाव :- मनुष्य को अपने जीवन में सब कुछ मिलने के बाद अपनी गति को सुधारने के लिए ईश्वर का गुणगान करते हुए मुक्ति का मार्ग रह  जाता  है, इसलिए बारहवें भाव को मोक्ष की प्राप्ति में जगह मिली है। बारहवें भाव के द्वारा मनुष्यों को अपनी पति या पत्नी के साथ जीवन का साथ एवं गृहस्थी का सुख कितना मिलेगा इसकी जानकारी प्राप्त होती है।मनुष्य के द्वारा जीवन में किस तरह बिना मतलव या मतलब का धन-सम्पत्ति खर्च करेगा इसकी भी जानकारी इस भाव से मिलती है। बारहवें भाव में मीन राशि कालपुरुष की कुंडली में पड़ती है, इस राशि का मालिकग्रह गुरु होता है और बुध ग्रह उच्च का व शुक्र ग्रह नीच राशि का नतीजा देता है।मनुष्य के द्वारा जीवन में स्त्री के साथ कामक्रीड़ा का सुख और सभी तरह की आनन्द की चीजों का उपयोग शुक्र ग्रह  उच्च का होने से मिलता है।बारहवाँ भाव पर पैरों या पग पर कालपुरुष की कुंडली में जगह दी गई है। मनुष्य की बायीं चक्षु का सम्बन्ध होता है। सपनों को देखने व सोने की स्थिति की इस भाव से जानकारी को बताता है। घर के अंदर के माहौल व  घर के अंदर का वातावरण के बारे में इस भाव से सोचते है। यदि अच्छे ग्रह इस भाव में होने पर अच्छी और बुरे ग्रहों का प्रभाव होने पर बुरे नतीजे मिलते है। इस भाव में मनुष्य के मस्तिष्क के अंदर सोचने की क्षमता का भी सम्बन्ध होता है। इस भाव से रात को सोने  से कितना आराम मिलेगा एवं पड़ोस में रहने वाले पड़ोसी के साथ सम्बन्ध को भी बताता है। इसके अलावा चक्षु के अंदर दोष,शुक्र के द्वारा आकर्षण व धनयोग,चोट पैरों की,पानी से डरना,आदमी-औरत का दूसरे के साथ कामक्रीड़ा का सम्बन्ध और मनुष्य का जीवन में आने-जाने के चक्कर से मुक्ति का भी सम्बन्ध जान सकते है। ईश्वर की मेहर बानी से मनुष्य को मानव शरीर मिलता है, जिससे वह यदि अच्छे कर्म करता है तोजीवन के आने-जाने के चक्कर से मुक्त हो जाता है, इसलिए बारहवें भाव को मुक्ति का घर बताया है।