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गुरुवार, 13 मई 2010

षट्तिला एकादशी व्रत कथा


षट्तिला एकादशी व्रत कथा

* षट्तिला एकादशी :-

(माघ कृष्ण - एकादशी)

इस दिन काली गाय तथा काले तिलों को दान का माहात्म्य है । शरीर पर तिल - तेल, गर्दन, तिल-जल स्नान, तिल-जल-पान तथा तिल पकवान इस व्रत के विशिष्ट उपादान है। इस दिन तिलों का हवन करके श्री कृष्ण ने नारद जी को बताया था।

* षट्तिला एकादशी व्रत कथा :-

एक ब्राह्मणी थी। उसने तपस्या करके अपना शरीर सुखा डाला। उसके तप से प्रसन्न होकर प्रभु भिखारी के रूप में उसके द्वार पर भीख माँगने गये । ब्राह्मणी ने आक्रोश में आकर उनके भिक्षा पात्र में मिट्टी का ढेला डाल दिया । मरणोपरांत, बैकुण्ड में उसे रहने के लिए मिट्टी का स्वच्छ एवं आलीशान मकान दिया गया । उसके लिए खाने-पीने की कोई व्यवस्था नहीं थी। यह सब देखकर उसे दुःख हुआ। उसने सोचा मैनें इतना कठोर तप भी किया पर फिर भी मुझे यहाँ खाने-पीने के लिए कुछ भी क्यों उपलब्ध नहीं है  उसने प्रभु से इसका कारण पूछा। प्रभु ने कहा  इसका कारण देवांगन से पूछो देवांगनाओ ने उसे बताया - "तुमने षट्तिला एकादशी का व्रत नहीं किया है ब्राह्मणी ने पुनः षट्तिला का व्रत किया और स्वर्ग के सारे सुखों का उपभोग किया ।