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रविवार, 11 अक्टूबर 2020

ज्योतिष शास्त्र मे सर्वार्थ सिद्धि योग

ज्योतिष शास्त्र मे सर्वार्थ सिद्धि योग



सर्वार्थ सिद्धि योग :- ज्योतिष शास्त्र में महत्वपूर्ण व प्रख्यात योग माना जाता है।


सर्वार्थ सिद्धि योग का अर्थ :- सब तरह के अर्थों और प्रयोजनों की प्राप्ति  का होना होता है। पृथक-पृथक योगों का विवरण ज्योतिष शास्त्र में प्रत्येक कार्य के लिए मिलता है, लेकिन यही एक ऐसा योग है जो सभी तरह के कामों की सिद्धि के लिए प्रयुक्त होता है।


योग का निर्धारण :- नक्षत्रों और वारों के सयोंग से इस योग का निर्धारण किया जाता है।


सर्वाणि विघ्नानि हरन्ति पुष्य :- इस वचन के अनुसार सभी तरह की मुसीबतों को हरने करने वाला पुष्य नक्षत्र होता है। 


परन्तु गुर्रोपुष्यं विवर्जयेत् के अनुसार शादी में गुरुवार या बीरवार को यदि पुष्य नक्षत्र होने पर उसको छोड़ देते है। अंयत्र पुष्य नक्षत्र के सयोंग को बहुत अच्छा माना जाता है,परन्तु सर्वार्थ सिद्धि योग सभी तरह के कामों को सिद्ध करता है।


मुहूर्त चिन्तामणि ग्रन्थ में सर्वार्थसिद्धि योग बनने का सूत्र


सूर्योअर्क मूलोत्तरपुष्यदास्नं 

चन्द्रे श्रुतिब्राह्म्यशशीज्यमैत्रम् 

भौमे अश्व्यहीर्बुध्न्य कृशानु सार्प 

ज्ञे ब्राह्म्यमैत्रार्ककृशानुचान्द्रम्।जीवेन्त्यमैत्राश्व्यदितीज्यधिष्ण्यं

शुक्रेन्त्यमैत्राश्व्यदितीश्रवोभम्।

  शनौ श्रुतिब्राह्यसमीरभानि 

सर्वार्थसिद्धयै कथितानिपूर्वै:।।


मानव जीवन में कोई भी मुख्य कामों को करने के लिए अलग-अलग मुहूर्तों होते है, लेकिन मानव जीवन में इतने अधिक कार्य होने से इन सभी कार्यों के लिए पञ्चाङ्ग में अलग-अलग मुहूर्त लिखना सम्भव नहीं होता है। इसलिए ज्योतिष शास्त्र में कुछ मुहूर्तो व योगों के द्वारा उन सब कामों को सफल करने आसानी हो सके। उन्हीं योगों में सभी में उत्तम योग सर्वार्थसिद्धि योग होता है। यह योग दूसरे योगों की तुलना में आसानी से मिल जाता है। हमेशा तो नहीं होकर,लेकिन अधिक से अधिक बार इसकी पुनरावृत्ति होती रहती है। शुभ दिन के निर्धारण में परेशानी होती है कि शुभ दिन के साथ-साथ सुयोग और कुयोग भी साथ-साथ लगा रहता है। इस प्रकार की स्थिति में केवल सुयोग पर चर्चा करने से मुहूर्त मिलना कठिन हो जाता है।


सुयोग और कुयोग के बारे में शास्त्रकार ने विस्तारपूर्वक बताया है कि:-


अयोगोसुयोगोअपि चेत् स्यात्

तदानीं अयोगं निहत्येष सिद्धीं तनोति।

परे लग्न शुद्धया कुयोगादिनाशं

दिनार्द्धोत्तरं विष्टपुर्वं च शस्तम्।।


अर्थात् अयोग और सुयोग एक ही दिन होने पर गणना के आधार पर सुयोगों की संख्या अधिक होने से अयोग की कमी हो जाती है तथा काम के सही होने पर फैलाव ज्यादा हो जाता है,परन्तु सर्वार्थसिद्धि योग से कई तरह के कुयोगों समाप्त हो जाते है।


कुछ आचार्यों गणों के मतानुसार जिस लग्न में कार्य को करना होता है, वह लग्न शुद्ध होता है तो कुयोगादि समाप्त हो जाते है। सर्वार्थ सिद्धि योग कुयोगों को नष्ट करके सुयोगों की बढ़ोतरी करने वाला होता है।


सर्वार्थ सिद्धि योग का महत्व :- के बारे में शास्त्रों बताया गया है कि


◆इस योग में सर्वागींण रूप से सभी काम सफल होते है।


◆बहुत से योग ऐसे है जो केवल एकाकी विचार करते है, परन्तु यह योग सभी तरह के कामों को सफल करने वाला एक विशिष्ट योग होता है।


◆ज्योतिष शास्त्र के सर्वार्थसिद्धि योग के बनने में वैज्ञानिक रहस्य छिपा हुआ है। किस दिन का सम्बन्ध किस नक्षत्र से हो कि उस समय कार्यारम्भ करने वाले कि मानसिक शारीरिक क्षमता उस कार्य के अनुरूप हो।


◆किसी भी कार्य को करने वाला जिस तरह से करना चाहता है उसके अनुरूप संजोग बने। इस तरह महर्षियों ने दिन की प्रकृति एवं नक्षत्रों की प्रकृति का अध्ययन किया तथा किन नक्षत्रों की प्रकृति किस दिन के साथ मिलकर उत्तमता प्रदान करती है।


◆सर्वार्थसिद्धि योग के बारे में बताया गया है कि इस योग में जो यात्रा करते है वह यात्रा सफल होती है।


◆कोई भी अटका हुआ काम को फिर शुरू इस योग में करने से सफलता मिलती है।


◆किसी भी अभीष्ठ देवी-देवता की आराधना की शुरुआत भी इस योग में करना चाहिए।


◆किसी भी कार्य को समाप्त भी इसी योग में ही करना उत्तम रहता है। क्योंकि फल की प्राप्ति कार्य की पूर्णता पर निर्भर करती है। सर्वार्थ सिद्धि योग में कार्य के समाप्त से यह फायदा  होता है कि काम के शूरुआत से लेकर समाप्ति तक जितनी कमियों से काम हुवा है, वे सभी काम कमियों से रहित हो जाता है।


◆यह योग कभी भी समाप्त नहीं होता है।


◆सर्वार्थसिद्धि योग मनुष्य के जीवन के कल्याण के लिए अत्यंत उत्तम योग होता है जिसके द्वारा मानव अपने जीवन के रास्ते को सफलता की ओर सवार सकता है।