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रविवार, 11 अक्टूबर 2020

हस्तरेखा से जानें उम्र का राज



हस्तरेखा से जानें उम्र का राज 

हस्तरेखा में छिपा है उम्र का राज :- हस्त रेखाऐं मनुष्य की उम्र के बारे में बताती हैं और उससे शतश: सही जन्म-कुंडली भी बनाई जा सकती हैं। हस्तरेखा से जन्मकुंडली को बनाना थोड़ा कठिन हैं, लेकिन असंभव नहीं है।


मनुष्य का हाथ ही एक ऐसी जन्म पत्रिका है, जो कभी भी नहीं नष्ट नहीं होती है। दक्षिण भारत मे कुछ भविष्य वक्ता मात्र हाथ देखकर  ही मनुष्य की जन्मकुंडली बना देते है। यदि हस्तरेखा और जन्मकुंडली का मिलान कर भविष्य के बारे में बताया जाए तो, वह शत प्रतिशत सही जानकारी मिलेगी।


गुरु की,शनि की सहायता से जन्मवर्ष, सूर्य चिन्ह से जन्म मास, चंद राशि से जन्मदिन के बारे में पता लगाया जा सकता हैं।


कैसे-क्या :- इसके निर्धारण के लिए हस्तरेखा में गुरु क्षेत्र और शनि क्षेत्र में सभी लम्बवत रेखाओं का योग करते है। यह सभी रेखाएं बिना टूटी हुई या दोषरहित होनी चाहिए। ये रेखाएं, अंगुलियों के मूल में अंतिम पर्व  से निकलती हुई मिलनी चाहिए। शनि क्षेत्र से निकलने वाली रेखाओं को ढाई  से और गुरू क्षेत्र से निकलने वाली रेखाओं को डेढ़ से गुणा करके आपस में जोड़ना चाहिए। इस जोड़ में मंगल पर्वत की रेखाओं का जोड़ को भी सम्मिलित करते है, तो मनुष्य की वर्तमान उम्र आ जाती हैं।


जन्म महीना व राशि :-


1.दोनों हाथों की तर्जनी अंगुलियों के तीजे और दूजे पोर में सीधी खड़ी रेखाओं को 23 से गुणा करते है फिर उस योग में 12 का भाग देते है और भाग देने के बाद जो संख्या शेष बचती है, वह संख्या ही मनुष्य का जन्म महीना और राशि होती हैं। यदि शेष भाग के बाद 1 बचता है तो वैशाख महीना व मेष राशि होगी। इसी प्रकार से राशि व महीना शेष के आधार पर क्रमशः होगा।


2.अनामिका अंगुली के नीचे सूर्य क्षेत्र में जो भी राशि का स्पष्ट चिन्ह होता है उस राशि के चिन्ह के आधार पर जन्ममहिना को गिनकर जन्म महीने का निर्धारण करते है।


पक्ष,दिन और रात का निर्धारण :-


यदि यव या जौ का निशान या आकृति दाहिने हाथ के अंगूठे में हो तो मनुष्य का जन्म शुक्ल पक्ष का होता हैं।


यदि यव या जौ का निशान या आकृति बाएं अंगूठे में हो तो मनुष्य का जन्म कृष्ण पक्ष का जाना जाता हैं।


जैन सामुद्रिक शास्त्र के मतानुसार :-


यदि यव या जौ का निशान या आकृति दाहिने हाथ के अंगूठे में हो तो मनुष्य का जन्म शुक्ल पक्ष दिन का होता हैं।


यदि यव या जौ का निशान या आकृति बाएं अंगूठे में हो तो मनुष्य का जन्म कृष्ण पक्ष रात का जाना जाता है।


जन्मतिथि की गणना :-


1.जितनी सीधी खड़ी रेखा मध्यमा अंगुली के दूजे और तीजे पर्व में होती हैं, उन सब रेखा को गिनते है फिर उन सब रेखा को जोड़ते है जोड़ने के बादमे उनमें 32 को जोड़ते है। सब जोड़कर उन योग को 5 से गुणा करते है, गुणा करने के बाद में उस योग में 15 का भाग देते है भाग देने के बाद में जो शेष संख्या बचती है वही संख्या जन्म तारीख होती हैं।


2.शुक्र क्षेत्र जो अंगूठे के नीचे  स्थित होता है, उस शुक्र क्षेत्र में सीधी खड़ी रेखाओं को गिनते है लेकिन टूटी या कटि हुई रेखाओं को नहीं गिनते है। उन रेखाओं को गिनकर 6 से गुणा करते है, फिर 15 का भाग देते है और शेष बची हुई रेखाएं तिथि के बारे में जानकारी देती हैं। यदि शेष जीरो बचता है तो पूर्णिमा तिथि को जन्म तिथि मानते है। 15 के पश्चात 30 के अंदर का क्रम होता है तो कृष्ण पक्ष का जन्म मानते है।


जन्म वार की गणना :-


जितनी सीधी खड़ी रेखाएं अनामिका अंगुली के दूजे और तीजे पर्व पर होती है, उन सब रेखाओं को 517 में जोड़ते है,फिर जोड़ने के बाद प्राप्त योग को 5 से गुणा करते है। उस गुणनफल में 7 का भाग देते है भाग देने के बाद में जो शेष बचता है, वही बची शेष संख्या जन्म वार होती है। यदि 1 संख्या से रविवार,2 संख्या से सोमवार,3 संख्या से मंगलवार,4 संख्या से बुधवार,5 संख्या से गुरुवार,6 संख्या से शुक्रवार और 7 संख्या से शनिवार को समझना चाहिए।


जन्म समय(लग्न) की गणना :- सूर्य पर्वत पर तथा अनामिका पर्वत व गुरु पर्वत पर मध्यमा पर जितनी खड़ी रेखाएं होती है, उनको गिनते है,गिनने के बाद में उसमें 811 को जोड़ते है। फिर जोड़ को 124 से गुणा करते है और उस योग में 60 का भाग देते है, भाग देने के बाद जो भागफल जन्म का समय घण्टे व मिनट में प्राप्त होता है। यदि योगफल 24 से अधिक होता है तो फिर से 24 का भाग देते है। फिर जो संख्या मिलती उसको पञ्चाङ्ग में देकर लग्न का निर्धारण करते है।