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रविवार, 11 अक्टूबर 2020

ज्योतिष और विज्ञान

ज्योतिष और विज्ञान

ज्योतिष शास्त्र या विज्ञान समय के साथ बदला :- भारत की सांस्कृतिक विरासत बहुत ही सम्पन्न है। हमारे पुराने ग्रन्थ इस बात का पुख्ता सबूत देते है कि सैकड़ो वर्ष पहले भी हमारा ज्ञान कितना सम्रद्ध था। वेदों और पुराणों को पढ़ने के बाद यह जानकारी मिलती है कि आधुनिक समय में प्रचलित विज्ञान और तकनीक के अनेक सिद्धांत वर्षो पहले इन गर्न्थो में लिपिबद्ध किए जा चुके थे। वेदों की शाखाएं वेदांग कहलाती है और इन्हीं में से एक शाखा ज्योतिष हैं।


आधुनिक समय में मनुष्यों में ज्योतिष को लेकर काफी आकुल इच्छा है। वेदों में ज्योतिष के बारे में बहुत ज्यादा लिखा जा चुका है, फिर भी ज्योतिष शास्त्र के स्वरूप में थोड़ा बदलाव वर्तमान समय में आया है। ऋग्वेद में 30 श्लोक ज्योतिष से सम्बंधित है।यजुर्वेद में 44 तथा अथर्ववेद में 162 श्लोक ज्योतिष से सम्बंधित है। ज्योतिष विज्ञान या शास्त्र को पुराने जमाने में मौखिक रूप से पढ़ाया और सिखाया जाता था। । ज्योतिष विज्ञान या शास्त्र को पुराने जमाने में इसकी पढ़ाई करके जीवन यापन विशेष जाति और वर्ग के लोग करते थे। जिसके कारण इस शास्त्र का विकास और आगे की नयी जानकारी सीमित रह गए थी।


आधुनिक काल में ज्योतिष विज्ञान या शास्त्र का उपयोग अनेक जाति और वर्ग के लोग मिडिया के प्रचार-प्रसार से करने लगे है, जिससे इस विषय में रूचि लेकर अच्छी तरह से अध्ययन कर रहे है। ज्योतिष शास्त्र मनुष्यों के जीवन के अन्य क्षेत्रों में हो रहे विकास और बदलावों के साथ-साथ इसमें भी विकास की प्रक्रिया के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहा है।


पुराने जमाने या वैदिक काल के ज्योतिष शास्त्र की तुलना में आधुनिक काल के ज्योतिष शास्त्र में कितना बदलाव आया है।


ज्योतिष शास्त्र की इस विकास प्रक्रिया को जानने से पूर्व  ज्योतिष के मायने को समझने होंगे। 


ज्योतिष का अर्थ :- ग्रहों की चाल और उनके आपस में गणितीय संबन्धों को ज्योतिष कहते है।


वराह मिहिर ने :- ज्योतिष को दो भागों -गणित और भविष्यवाणी, में बांटा था।


ज्योतिष विज्ञान :- पूर्ण रूप से ग्रहों के गणित पर आधारित होता है। रवि आकाश मंडल का मुख्य बिंदु है और पृथ्वी, सोम,भौम, मन्द,बुध,भृगु और जीव आदि ग्रह विभिन्न तरह की गतियों द्वारा दिन-रात,महीना,साल आदि का निर्धारण करते है। पुराने जमाने के ये सिद्धांत आज के समय में भी मान्यता रखते है।


भविष्यवाणी के लिए रवि,सोम,भौम, मन्द,बुध,भृगु और जीव आदि ग्रहों का मानव के ऊपर प्रभाव को देखने की जरूरत होती है। इन सबके लिए पृथ्वी एक प्रयोगशाला के समान होती है,जबकि अन्य ग्रह इस पर विभिन्न तरह से अपना प्रभाव डालते है।


कुल 12 राशियाँ ज्योतिष शास्त्र में होती है। अध्ययन के बाद जानकारी प्राप्त होती है कि इन राशियों में सितारों का निश्चित समूह होता है, जिन्हें नक्षत्र कहते है।  इन नक्षत्रों पर ही ज्योतिष शास्त्र की पूरी कल्पना आधारित होती हैं। विंशोतरी दशा के द्वारा जीवन की विभिन्न घटनाओं की भविष्यवाणी की जानकारी दी जा सकती है। मनुष्यों के जीवन के विभिन्न क्षेत्रों के पहलुओं का अध्ययन की जानकारी अष्टकवर्ग के चार्ट द्वारा किया जा सकता है।


वर्तमान समय में यह धारणा जोर पकड़ती जा रही है कि ज्योतिष शास्त्र एक संपूर्ण विज्ञान है, जिसमें किसी भी तरह से बदलाव नहीं हुआ है। प्राचीन काल से ही ग्रहों की गति जस की तस बनी हुई है। यदि इन ग्रहों की स्थितियों में पिछले 500 सालों में कोई बदलाव हुआ भी है,तो वह पृथ्वी से सम्बंधित है, लेकिन उनके अन्य पहलुओं में कोई भी बदलाव नहीं हुआ है।इस दौरान नए तीन ग्रहों की खोज भी हुई है। इन नए ग्रहों में से युरेनस को राशि में आने के लिए 84 वर्ष, नेप्च्यून को 1648 वर्ष तथा प्लूटो को 2844 वर्षो का समय लगेगा। ये ग्रह बहुत ही धीमी गति से आगे बढ़ रहे हैं तथा काफी दूर हैं और इनका प्रभाव भी अभी तय नहीं है। फिर भी आजकल के जानकार ज्योतिष विज्ञानी इन ग्रहों को अपनी गणितीय संगणनाओं का भाग बना रहे है। भविष्यवाणी देश-काल पर जोर देती हैं, जिसमें व्यक्ति, स्थान और समय के आधार पर भविष्यवाणी की जाती हैं।


वैदिक ज्योतिष के सिद्धांतों के फिर से ध्यानपूर्वक अध्ययन करने की जरूरत वर्तमान समय में महसूस की जा रही है, क्योंकि अनेक आर्थिक-सामाजिक बदलाव वर्तमान समय में आ चुके हैं। पुराने जमाने में बच्चे का जन्म घर पर ही होता था और पर्याप्त सुविधाओं नहीं होने से बाल मृत्युदर अधिक थी। प्राचीन शास्त्रों में इस पर पूरा अध्याय बालारिष्ट लिखा गया है। ग्रहों की जो दशा पहले कम जीवन को दर्शाती थी,अब वही बचपन में बीमारी की दशा बताती है।


पुराने जमाने में समाज को मुख्यतय चार वर्गों में विभाजित किया था-ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य तथा शुद्र। इन चारों वर्गों के लोगों के जीवन यापन के साधन भी तय किये गये थे।


वर्तमान समय में रोजगार के हजारों साधन उपलब्ध है। अतः व्यक्ति के रोजगार की भविष्यवाणी के लिए ग्रहों के आपसी तालमेल को फिर से समझने की जरूरत होती हैं।


उदाहरण के तौर पर :- छठे और दशवें घर के स्वामियों के मंगल के साथ तालमेल व्यक्ति को डॉक्टर बना सकता है।

 

दशवें घर में सूर्य  की स्थिति व्यक्ति को आईएएस या अन्य प्रशासनिक अधिकारी बनाती हैं।


 इसी तरह छठे घर में गुरु व बुध होने पर व्यक्ति वकील बनने की सम्भावना को बताता है।


ज्योतिष शास्त्रियों को वर्तमान समय में दशवें भाव से सम्बंधित अनेक तरह के प्रोफेशन को ध्यान में रखने पड़ते है। 


आजकल शादियों के लिए भी बिलकुल जुदा प्रकार से जन्म-कुंडलियों के अध्ययन की जरूरत है।  सामाजिक बदलावों ने युवाओं की मानसिक दशा में बहुत ज्यादा बदलाव कर दिया है। अब 30 वर्ष की उम्र में युवाओं के द्वारा शादी करने पर भी शादी को देरी से नहीं मानते हैं। आजकल बिना शादी के लड़का-लड़की का साथ में रहना और तलाक की जैसी स्थितियां बन रही हैं।पुराने जमाने का गुण-मिलान का तरीका अब ज्यादा कारगर नहीं रह गया है, लेकिन तारा और योनि का मिलान आज भी महत्वपूर्ण है।


आर्थिक स्थिति से आजकल की महिलाएं आजाद होने के कारण इनकी जन्मकुंडली को पुरुषों की जन्मकुंडली की तरह अध्ययन करने की जरूरत है।


राजयोग को आज के युग में फिर से परिभाषित करने की जरूरत है।इसके लिए वर्तमान की लोकतांत्रिक व्यवस्था में ग्रहों की स्थिति पहले की तरह ही है, लेकिन उनके नतीजे में बदलाव होकर मंत्री, अफसर आदि भी हो गए हैं। अतः राजयोग भी अनेक तरह के हो गए है। अनेक नए बीमारियां,केंसर,एड्स आदि पर भी ज्योतिष को ध्यान देने की जरूरत है। छठे भाव में राहु का होना भी भयंकर बीमारी का कारण माना जाता हैं। ग्रहों की स्थिति वैसी ही है, लेकिन इनके अध्ययन में और भी अधिक गहनता की जरूरत है 


कोई भी विज्ञान यदि समय के साथ विकास करके आगे नहीं बढ़ता तो वह रुके हुए पानी के समान होता हैं। ज्योतिष शास्त्र के मूलभूत सिद्धांत आज भी पहले की तरह है, केवल मनुष्य की इनके विषय में गहराई से अध्ययन करने की जरूरत है। ज्योतिष एक दैवीय विज्ञान है, जिसका अधिकतर भाग गणितीय संगणनाओं पर आधारित है। फिर भी इसमें लगन और अनुभव महत्वपूर्ण भूमिका निभा करते है।इसके लिए निरन्तर शोध किए जा रहे है, ताकि इसके नए पहलुओं की खोज की जा सके, तभी हमारे पूर्वजों की यह धरोहर संरक्षित रह सकेगी।