अक्षय तृतीया या आखा तीज के बारे में जानकारी :- वैशाख मास शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को 'अक्षय तृतीया' या आखा तीज कहते है। वैशाख सौर मास का पहला महीना हैं,क्योंकि इस महीने में रवि मेष राशि में स्थित होता है। चूंकि वैशाख की पूर्णिमा विशाखा नक्षत्र में होती है। इसलिए चन्द्र मास के अनुसार इसका नाम वैशाख है। इस तिथि से सत्य युग का प्रादुर्भाव होने के कारण इस तिथि को सत्य युग की आद्या तिथि कहा जाता है।
तिथ्यादित्य के अनुसार :- वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की कृतिका या रोहिणी नक्षत्र से युक्त तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया कहा जाता है।
'नास्ति क्षयो यस्याः सा अक्षया' के अनुसार :- जिस तिथि का या जिस तिथि को किए गए कार्य या कर्म का क्षय या समाप्त नहीं होता है, उसे अक्षया कहा जाता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार :- वार व तिथि द्वारा घटने वाले योग विशेष को अक्षय तृतीया कहते है।
भविष्य पुराण के अनुसार:-सोमवार को अमावस्या, रविवार को सप्तमी,मंगलवार को चतुर्थी तिथि होने पर जो योग बनता है। परंतु इनके सत्य युग के प्रारंभ की तिथियां न होने के कारण अक्षय तृतीया का महत्व ज्यादा बढ़ जाता है।
व्युत्पत्ति की दृष्टि से 'अ' शब्द का अर्थ 'वासुदेव' व 'क्षय' शब्द का अर्थ 'निवास' है अर्थात 'वासुदेव में 'निवास' अक्षय कहलाता है। अक्षय का अर्थ 'ब्रह्मनिष्ठ' भी होता है। अतः समस्त शास्त्रों में इस दिन पुण्य कर्म करने को कहा गया है, क्योंकि इस दिन किए गए कर्म या कार्य का फल 60 जन्म तक मनुष्य के साथ रहता है। इस तिथि के रोहिणी नक्षत्र से युक्त होने की मान्यता अधिक है क्योंकि कृतिका एक पाद या चरण मेष व शेष तीनों वृषभ राशि के होते है। वृषभ में चंद्रमा व मेष में रवि उच्च राशि के होते है। अतः मेष राशि के रवि वाले मास में रवि का चंद्रमा के उच्च में रहने का अवसर आमतौर पर अक्षय तृतीया के आसपास ही मिलता है।
अक्षय तृतीया को यदि रोहिणी नक्षत्र मिल रहा हो तो तीनों नक्षत्रों-अश्विनी, भरणी व कृतिका गत मान ली जाती है, जिनकी तिथि क्रमशः द्वितीया, प्रतिपदा व अमावस्या हो सकती हैं। द्वितीया को भद्रा,प्रतिपदा को नन्दा व अमावस्या को पूर्णा कहा गया है।
यदि वृषभ राशि में मृगशिरा के दो चरण वृषभ राशि के होते है, परन्तु रोहिणी के तृतीया में होने से मृगशिरा चतुर्थी तिथि में आ जाती है, ज्योतिष में इसे भी रिक्ता तिथि माना गया है।
तृतीया तिथि को ही जया तिथि भी कहते है, अर्थात वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में जया तिथि व रोहिणी नक्षत्र के अद्भुत संयोग से इसमें अक्ष्यत्व आ जाता है। अक्षय तृतीया का सम्बंध चन्द्रमा से होने के कारण इस दिन सबसे पहले पितृकर्म करने को कहा गया है। कहा जाता है कि इस दिन पितृ से सम्बंधित कर्म का फल सहस्त्र गुना होकर पितरों को प्राप्त होता है।
ब्रह्मपुराण के अनुसार वैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया सत्ययुग की, कार्तिक शुक्ल पक्ष नवमी त्रेतायुग की,भाद्रपद शुक्ल पक्ष त्रयोदशी द्वापरयुग की तथा माघ पूर्णमासी कलियुग की युगादि तिथियां हैं। इन तिथियों को किए गए कर्म अक्षय होते है। चूंकि सत्ययुग समस्त युगों में श्रेष्ठ है। अतः अक्षय तृतीया समस्त युगादि की तिथियों में श्रेष्ठ मानी गई है। चूंकि चन्द्रमा का सम्बंध जल से है। अतः इस दिन जलदान का काफी महत्व है।
अक्षय तृतीया तिथि के दिन जल सम्बंधी काम जैसे-प्याऊ लगवाने,कुएं खुदवाने,तालाब बनवाने, बगीचा आदि लगवाने तथा इन्हें आमजन को समर्पित करने से अक्षय फल मिलता है।
लोगों के द्वारा ऐसी मान्यता है कि इस दिन किया गया जलदान चन्द्रलोक में सुरक्षित रहता है।
जो दान करने वाले व उसके वंशजो को जल सम्बन्धी समस्याओं से छुटकारा दिलाता है।
यह जल में डूबने या जल के अभाव में मरे हुए पितरों को तृप्त कर मोक्ष प्रदान करता है।
इस दिन सुप दान भी किया जाता है।
अनेक लोग इस दिन नए कार्य,व्यापार आदि का आरंभ करते है। इस दिन प्रारंभ किए गए कार्य,