गोचर एवं भविष्य :- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भविष्य को जानने की अनेक विधा है-जन्मकुंडली, चन्द्र या राशि कुंडली, सूर्य कुंडली,महादशा, अष्टक वर्ग,मुहूर्त इत्यादि किन्तु इन सब विधाओं में गोचर की अनुकूलता जरूरी होती है। जिस तरह ग्रहों के मैत्री चक्र में ग्रहों की नैसर्गिक और तात्कालिक मैत्री प्रभावित करती है, उसी तरह जन्मकुंडली, महादशा इत्यादि समस्त विधाओं को भी ग्रहों की गोचर स्थिति प्रभावित करती है।
जन्मकुंडली में उत्तम स्थिति में विद्यमान ग्रह अनुकूल गोचर स्थिति में बहुत अच्छा फल देते है।
अशुभ गोचर स्थिति में बहुत मध्यम फल देते है।
इसके विपरीत अशुभ ग्रह भी गोचर स्थिति अनुकूल होने पर उसका अशुभ प्रभाव कम हो जाता है।
फलित की दृष्टि से तीन तरह की कुंडलियों पर विचार किया जाता है-लग्न कुंडली, चन्द्र कुंडली और सूर्य कुंडली। इन सब तरह कुंडलियों में से लग्न कुंडली का महत्व सबसे ऊपर है तथापि चन्द्र कुंडली या राशि चक्र को भी जन्म लग्न से कम महत्व नहीं दिया जाता है।
ज्योतिष शास्त्र के जानकार जिस तरह जन्म लग्न से फलादेश करते है। उसी तरह चन्द्र लग्न या राशि कुंडली से भी फलादेश करना चाहिए।
विशेष गोचर के अनुसार फलादेश करने में चन्द्र राशि या जन्म कालिक चन्द्र लग्न से ही गणना करना ज्योतिष परम्परा से मान्य है।
गोचर का अर्थ:-गोचर दो शब्दों से मिलकर बना है गो और चर।
व्याकरण के अनुसार गच्छति इति गो इस तरह गो शब्द के अनेक मतलब होते है। उनमें से एक तारा या आकाशीय पिण्ड अर्थात् ग्रह(क्योंकि जो गतिशील होता है उसे गो कहा जाता है)तथा चर का अर्थ संचरण। इस तरह गोचर आकाशीय पिण्ड या ग्रहों का संचरण होता है।
शब्द शास्त्र के अनुसार गोचर का मतलब:-इन्द्रियों का विषय बनना होता है।
गोचर ग्रहों की आकाश में राशि अंश कला विकलात्मक स्थिति बताता है। ग्रहों के इस तरह संचरण से चराचर जगत किस प्रकार प्रभावित होता है। उसका नाम गोचर पद्धति है।
फलित की दृष्टि से तीन प्रकार के लग्नों को आधार मानकर फलादेश किया जाता है। जन्म लग्न,चन्द्रलग्न और सूर्य लग्न।
ज्योतिष शास्त्र में चन्द्र लग्न को शरीर बताया गया है और जन्म लग्न को आत्मा बताया गया है। यदि शरीर स्वस्थ नहीं तो जीवन देने वाली कोई क्रिया सम्भव नहीं होती है। इस तरह से ज्योतिष में भी चन्द्र लग्न से फलित विचार करने पर सही फल को पाने के लिए जरुरी होता है। वैज्ञानिक दृष्टि से विचार करते है तो चन्द्रमा पृथ्वी का उपग्रह है इसी से चन्द्र मास बनते है। चन्द्रमा का परिक्रमण पृथ्वी निवासी,चराचर जगत को अत्यधिक प्रभावित करता है। ज्योतिष में चन्द्रमा का सम्बन्ध मन से बताया गया है। पूर्णिमा के चन्द्रमा को देखकर सुखी ज्यादा सुख का अनुभव करता है तो दु:खी अधिक दुःख का अनुभव करता है। इसलिए चन्द्रमा को केवल ग्रह नहीं मानकर लग्न के समान महत्व दिया जाता है।
जन्मपत्री में भले ही छोटी से छोटी जन्म पत्री अर्थात् टेवा क्यों न हो, चन्द्र लग्न या राशि चक्र का अलग से उल्लेख जरूर किया जाता है। वेद में तो 'मनसोअअजायत' कहकर चन्द्रमा को मन का प्रतिनिधि बताया गया है। ज्योतिष में स्पष्ट शब्दों में कहा गया है कि जन्म लग्न,सूर्य लग्न,चन्द्र लग्न इत्यादि तीन-तीन लग्न होते हुए भी प्रधानता चन्द्र लग्न को ही गोचर के अनुसार फलों का आकलन करते हुए दी जाती है।
गोचर और दशाफल:-सभी ग्रह अपनी दशा या अन्तर्दशा में अपने भाव स्थिति के अनुसार फल देते है। दशा या अन्तर्दशा के अन्तराल कभी-कभी बहुत लम्बे होते है।इस दशा में यह विचार करना मुश्किल हो जाता है कि किस समय बिन्दु पर फल मिलेगा।
इस प्रश्न के समाधान में उस ग्रह विशेष गोचर भ्रमण अपना विशेष जगह रखता है। गोचर में यदि ग्रह स्वराशि,उच्च राशि,मूल त्रिकोण राशि, मित्र राशि मे संचरण कर रहा है तो अनुकूल फल देगा तथा नीच या शत्रु राशि मे स्थिति में अथवा अस्तगत ग्रह प्रतिकूल फल देता है। इस तरह दशा फल भी ग्रह के गोचर भ्रमण से प्रभावित होता है।
गोचर और अष्टक वर्ग:- अष्टक वर्ग पद्धति पूरी तरह से गोचर स्थिति पर आधारित है। अष्टक वर्ग पद्धति में राहु-केतु को छोड़कर केवल सात ग्रहों को शामिल किया गया है तथा आठवां लग्न को लिया जाता है।इन आठों का एक दूसरे से किस-किस जगह से अच्छा एवं किस-किस जगह में खराब फल मिलता है। ग्रह के बारह भावों में किस-किस भाव राशि को कितने बिंदु मिले है इसी आधार पर उस ग्रह विशेष का प्रत्येक राशि में गोचर भ्रमण के आधार पर शुभ-अशुभ फल की जानकारी प्राप्त कर सकते है। जन्मकुंडली के जिस भाव में अष्टक वर्ग प्रद्धति से 5 अथवा उससे अधिक बिंदु प्राप्त हुए उस भाव या राशि गोचर में ग्रह आता है तो शुभफल देता है। इस तरह से अष्टक वर्ग में आठ बिंदु में से जिस राशि में ग्रह को चार से कम बिंदु मिलने पर उस राशि में जब ग्रह-गोचर में विचरण करता है तो अनिष्टकारी फल प्राप्त होता है। चार बिंदु मिलने पर मध्यम फल मिलता है। पांच बिंदु मिलने पर अच्छा फल प्राप्त होता है। छह बिंदु मिलने पर बहुत अच्छा फल प्राप्त होता है। सात बिंदु होने पर उत्तम फल और आठ बिंदु मिलने पर सबसे से उत्तम फल प्राप्त होता है।
गोचर और मुहूर्त:- मुहूर्त विचार में गोचर का विशेष ध्यान रखा जाता है। अच्छे से अच्छे मुहूर्त भी हो तो भी यदि 4-8-12 वां चन्द्रमा हो तो मुहूर्त नहीं किया जा सकता है। गोचर के अनुसार चन्द्र शुद्धि मुहूर्त की पहली शर्त होती है।उपनयन संस्कार में बटुक की गोचर के अनुसार गुरु चन्द्र की अनुकूलता जरूरी है। विवाह में गोचर के अनुसार कन्या का गुरु बल और चन्द्र बल मिलना भी जरूरी होता है। वर के लिए सूर्य बल तथा चन्द्र बल जरूरी होता है। यदि गुरु अथवा शुक्र अस्त है तो विवाह, उपनयन,देवप्रतिष्ठा, यज्ञ,उद्यापन नहीं किए जा सकते है। सभी शुभ कार्य वर्जित हो जाते है।
गोचर और प्रश्न लग्न:-प्रश्न लग्न का आधार ही ग्रहों का गोचर भ्रमण है। ग्रहों का राशि बदलाव फलादेश को बहुत प्रभावित करता है। प्रश्न कुण्डली भी तात्कालिक फलित बताने की एक उत्तम विधि है। जन्म पत्री के आधार पर बनाई जाने वाली वर्ष कुण्डली पर गोचर स्थिति को लेकर चलती है। वर्ष भर के फल जानने की एक अच्छी पद्धति हैं।
गोचर और शनि की साढ़े साती:-जब मनुष्य की जन्म राशि से बारहवें, प्रथम एवं द्वितीय भाव में गोचर के अनुसार शनि भ्रमण करता है तो शनि की साढ़े साती होती है। शनि यदि जन्म राशि से चोथे अथवा आठवें भाव में हो तो शनि की ढैय्या होती है। इसी तरह गुरु का जन्म राशि से अनुकूल भ्रमण शुभ फल तथा प्रतिकूल स्थिति में अशुभ फल देता है।
दैनिक गोचर फल:-यह पूरी तरह ग्रहों के गोचर पर आधरित होता है। इसका सही फायदा लेने के विषय में जन्म लग्न व चन्द्र राशि दोनों के फल को मिलाकर यदि व्यक्तिगत फल माना जाय तो अधिक ठीक रहेगा।