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बुधवार, 7 अक्तूबर 2020

आध्यात्मिक ज्योतिषीय साधन

आध्यात्मिक ज्योतिषीय साधन


घर की अंदर की ऊर्जा को दूषित होने से बचाने के ज्योतिषीय उपाय :- सभी वस्तु का बनना परमाणुओं, अणुओं व विभिन्न योगिकों के एक निश्चित अनुपात में मिलने पर होता है। इस वजह से सभी वस्तु के अंदर एक ऊर्जा शक्ति बनी रहती है। इस ऊर्जा शक्ति को  तीन भागों -सकारात्मक, नकारात्मक व तटस्थ में बांटा जा सकता है। जीवन के विकास के लिए समुचित मात्रा में सकारात्मक ऊर्जा को प्राप्त करना जरूरी है। हमारे सामाजिक, आर्थिक,भौतिक व आध्यात्मिक उन्नति में हमारी आंतरिक व बाह्य ऊर्जा का महत्वपूर्ण योगदान होता है। हमारी कार्य क्षमता, स्फूर्ति, सोच-विचार आदि हमारे इर्द-गिर्द स्थित दृश्य-अदृश्य ऊर्जा तरंगों द्वारा ही संचालित होते है।


आखिर ऐसा क्यों होता है कि जुदा-जुदा मनुष्यों का अपने दैनिक क्रियाकलापों एवं उसके कारण प्राप्त होने वाले उत्थान के प्रति दृष्टिकोण, प्रयास एवं उपलब्धियां जुदा-जुदा होती है? लेकिन यह प्रक्रिया अनेक प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष कारकों के अधीन चलती है, परन्तु वास्तुशास्त्र के अनुसार हमारे जीवन में विभिन्न तरह के सुख-दुःख, उत्थान-पतन,उन्नति-अवनति,सफलता-असफलता, बौद्धिक व मानसिक क्षमता आदि का निर्धारण एवं इनके वांछित दिशा में बदलाव के पीछे प्रायः वे सभी शक्तियां विद्यमान रहती है,जिन्हें हम सकारात्मक व नकारात्मक ऊर्जा कहते है।


यदि हम अपना चारो ओर का विकास करने के प्रति जागरूक है तो हमे अपने चारों तरफ ऐसा वातावरण व माहौल को बनाना होगा, जो हमारे शरीर के सभी अंग-प्रत्यंग की मुख्य जरूरी सबसे छोटी इकाई जो कोशिका होती है।उस छोटी इकाई कोशिका को नियमित रूप से सकारात्मकता ऊर्जा मिलती रहे। जैसे-प्रातः काल धर्म-कर्म स्नान-ध्यान, पूजा-पाठ,सत्संग आदि करने से उस छोटी इकाई कोशिका को सकारात्मकता मिलती रहती है।


विभिन्न अधिक आधुनिक व वैज्ञानिक उपकरणों से सिद्ध हो चुका है कि भवन के अंदर उपयोग किए जाने वाले आध्यात्मिक साधन जैसे-ऊँ,स्वस्तिक, मंगल कलश,गायत्री मंत्र,श्री-यन्त्र आदि जो विशेष लक्षणों से युक्त सकारात्मक व निर्माणकारी ऊर्जा से पूरी तरह से पूरे होते है। इसलिए व्यावसायिक व आवासीय भवनों में इनका उपयोग करना बेहद फायदेमंद होता है, क्योंकि यह सब आध्यात्मिक साधन व्यावसायिक व आवासीय भवनों में शुभ ऊर्जा का संचार करके उन्हें पूर्णतया सकारात्मक बनाते है।


आज के युग के मनुष्य अधिक रोमांटिक, डरावने कार्यक्रमों को देखते है जिससे वें मानसिक रूप दूषित हो रहे है और घर का माहौल क्लेश से परिपूर्ण हो जाता है।उनके घर के अंदर नकारात्मक ऊर्जा का संचार बढ़ जाता है। जिसके कारण से घर के अंदर की सुख-शांति खत्म होकर उनके जीवन में अशांति प्रवेश कर जाती है। घर का माहौल नारकीय हो जाता है।


बहुत से मनुष्य खाना खाते समय टीवी को चालू करके टीवी पर विभिन्न तरह के सीरियल देखते-देखते खाना खाते है, जो कि ठीक नहीं होता है, जिसके कारण से मनुष्य को पेट से सम्बंधित बीमारियों, सिरदर्द आदि बीमारियों का शिकार होना पड़ता है।फिर डॉक्टरों के आगे-पीछे घूमना पड़ता है।


आयुर्वेद शास्त्र के अनुसार भोजन को अपनी पांच ज्ञानेन्द्रियों द्वारा अनुभव करते हुए भोजन को ग्रहण करना चाहिए। जिससे भोजन मानव शरीर को उचित तरह से मिलता है और मानव का पाचन तंत्र उचित तरह काम करता है। जिससे मानव पाचन तंत्र सम्बन्धी बीमारियों से बच सकते है।पाचन तंत्र ठीक तरह से काम करने पर शरीर के दूसरे हिस्से भी सही तरह से काम करेंगे।


पढ़ाई व अध्यापन में भी रोमांटिक दृश्यों को देखने से भी तालमेल नहीं बैठता है, क्योंकि पवित्र और सात्विक भावना से माँ सरस्वती की पूजा से एक तरफ मानव के आस-पास शक्तिशाली सकारात्मक क्षेत्र बनता है जिससे पढ़ाई व अध्यापन में सकारात्मक विचार धारा बनने से मानव का मन स्थिर हो जाता है और मन लगता है।


शरीर की अंदर की ऊर्जा को सकारात्मक बनाने के उद्देश्य से जो कोई मनुष्य 'कुंडलिनी जागरण' की पवित्र क्रिया करता है, उनको अनुभव होता है कि मूलाधार से ब्रह्म-रन्ध्र के बीच बहने वाली ऊर्जा उपरोक्त 'कुंडलिनी जागरण' की पवित्र क्रिया नकारात्मकताओं से बेहद बाधित हो जाती है, जिससे एकाग्रता, ध्यान व योग जैसी क्रियाओं में बाधा पहुचती है। अतः यह जरूरी है कि मनुष्य अपने आस-पास एक पवित्र,सकारात्मक व निर्माणकारी क्षेत्र को बनाए रखें।


वास्तुशास्त्र के मुताबिक कोई भी मनुष्य आसपास के वातावरण व अपनी स्थिति को एक पवित्र,सकारात्मक व निर्माणकारी क्षेत्र को बनाए रखता है, तो उसे जीवन में उत्तरोतर सफलता व स्थायित्व की प्राप्ति होती है