रवि ग्रह से बनने वाले योग :- ज्योतिष शास्त्र में रवि का बहुत ही आवश्यक स्थान है। रवि को नवग्रहों का राजा माना गया है। रवि एक राशि में एक महीने तक घूमता-फिरते हुए एक वर्ष में बारह राशियों में घुमते हुए अपना चक्र को पूरा करता है अर्थात् रवि एक दिन में एक अंश चलता है। अक्षांश और देशांतर भेद से भिन्न स्थानों का उदय होने का मान और दिन का मान अलग-अलग होता है।
रवि को जीव का कारक माना जाता है। व्यक्ति के मन की इच्छाशक्ति तथा तात का सुख रवि के द्वारा ही देखा जाता है। रवि को पूर्व दिशा का स्वामी, तेज तत्व, आदमी ग्रह, क्षत्रिय जाति और सिंह राशि का स्वामी माना गया है।
रवि में मेष राशि में 10 अंश तक उच्च का और तुला राशि मे 10 अंश तक नीच राशि का माना गया है और सिंह राशि के 20 अंश तक रवि मूलत्रिकोने तथा उसके बाद स्वराशि का माना जाता है। जीव, भौम व सोम रवि के मित्र ग्रह है। सौम्य तथा भृगु, यम को दुश्मन ग्रह माना गया है। रवि की महादशा 6 साल की होती है।
रवि से दूसरे ग्रहों के साथ युति व दृष्टि से बनने वाले प्रमुख योग एवं दूसरे योगों से होने वाले प्रभावों पर विचार:- निम्नलिखित है:
1.वेशियोग :- जन्मकुंडली में रवि से दूसरे घर में सोम ग्रह को छोड़कर अन्य कोई दूसरे ग्रह कुज,सौम्य, जीव,भृगु और मन्द आदि में से कोई भी ग्रह होने पर रवि से बनने वाले योग को वेशियोग कहते है।
वेशियोग के भाग :- दो भागों में बाट सकते है
(क) शुभ ग्रह से शुभ वेशियोग :- जन्मकुंडली में रवि से दूसरे घर में सोम ग्रह को छोड़कर अन्य कोई दूसरे ग्रह सौम्य, जीव,भृगु आदि में से कोई भी ग्रह होने पर रवि से बनने वाले योग को शुभ ग्रह से शुभ वेशियोग कहते है।
(ख) पापग्रह से पापवेशि योग :-जन्मकुंडली में रवि से दूसरे घर में सोम ग्रह को छोड़कर अन्य कोई दूसरे ग्रह कुज,मन्द आदि में से कोई भी ग्रह होने पर रवि से बनने वाले योग को पाप ग्रह से पाप वेशियोग कहते है।
फल योगों का :-
(क) शुभग्रह से शुभवेशि योग का फल :- इस योग में जन्म लेने वाले लोग धन से सम्पन्न, वे अच्छे बोलने वाले, ये लोगों को अच्छा मार्गदर्शन देने वाले और शौहरत पाने वाले होते है।
(ख) पापग्रह से पापवेशि योग का फल :- इस योग में जन्म लेने वाले व्यक्ति जीवनभर आजीविका के लिए हमेशा प्रयत्नशील व बुरे लोगों के साथ में रहकर बदनाम होते है।
2. वाशियोग :- सोम के अलावा जन्मकुंडली में रवि से पहले द्वादश घर में अन्य दूसर ग्रह (जैसे कुज,सौम्य, जीव,भृगु और मन्द आदि) होने से जो योग बनता हैं उस योग को वाशियोग कहते है।
वाशियोग के भाग :- दो भागों में बाट सकते है:
(क) शुभ ग्रह से शुभ वाशियोग :- जन्मकुंडली में रवि से द्वादश घर में सोम ग्रह को छोड़कर अन्य कोई दूसरे ग्रह सौम्य, जीव,भृगु आदि में से कोई भी ग्रह होने पर रवि से बनने वाले योग को शुभ ग्रह से शुभ वाशियोग कहते है।
(ख) पापग्रह से पापवाशि योग :- जन्मकुंडली में रवि से द्वादश घर में सोम ग्रह को छोड़कर अन्य कोई दूसरे ग्रह कुज,मन्द आदि में से कोई भी ग्रह होने पर रवि से बनने वाले योग को पाप ग्रह से पाप वाशियोग कहते है।
फल योगों का :-
(क) शुभग्रह से शुभवाशि योग का फल :- इस योग में जन्म लेने वाले लोग गुण से युक्त, कुशल और किसी विद्या को जानने वाले होते है।
(ख) पापग्रह से पापवाशि योग का फल :- इस योग में जन्म लेने वाले व्यक्ति जीवनभर दुःखो को सहन करने वाला, बहुत अधिक गुस्सा करने वाला और अपने जन्मस्थान से दूर रहने वाला होता है।
3.उभयचरी योग :- जन्मकुंडली में रवि के आगे-पीछे सोम के अलावा कोई ग्रह (कुज,सौम्य, जीव,भृगु और मन्द आदि) होने से बनने वाले योग को उभयचरी योग कहते है।
उभयचरीयोग के भाग :- दो भागों में बाट सकते है:
(क) शुभ ग्रह से शुभ उभयचरीयोग :- जन्मकुंडली में रवि के आगे-पीछे सोम ग्रह को छोड़कर अन्य कोई दूसरे ग्रह सौम्य, जीव,भृगु आदि में से कोई भी ग्रह होने पर रवि से बनने वाले योग को शुभ ग्रह से शुभ उभयचरीयोग कहते है।
(ख) पापग्रह से उभयचरीवाशि योग :- जन्मकुंडली में रवि के आगे-पीछे सोम ग्रह को छोड़कर अन्य कोई दूसरे ग्रह कुज,मन्द आदि में से कोई भी ग्रह होने पर रवि से बनने वाले योग को पाप ग्रह से पाप उभयचरीयोग कहते है।
फल योगों का :-
(क) शुभग्रह से शुभउभयचरी योग का फल :- इस योग में जन्म लेने वाले लोग न्याय को पसंद करने वाले एवं मुश्किलों को शांत मन से समाधान करने वाले होते है।
(ख) पापग्रह से पापउभयचरी योग का फल :- इस योग में जन्म लेने वाले लोग कपट पूर्ण एवं दूसरे पर आश्रित रहने वाले होते है।
4.बुधादित्य योग :- जन्मकुंडली में किसी भी घर में रवि-सौम्य के साथ होने पर यह योग बनता है।
फल :- इस योग में जन्म लेने वाले लोग समझदार, अपने मतलब को निकालने वाले और मशहूर होते है।
अन्य दूसरे योग :-
●कर्क लग्न में सोम लग्न में हो और रवि नवें घर(मीन राशि) में हो,तो प्रबल राजयोग कारक होता है।
फल :- इस योग में जन्म लेने वाले लोग अधिक धन से युक्त होकर सुख से जीवन जीने वाले होते है।
●कर्क लग्न हो और रवि दशवें घर में मेष(उच्च) का होने पर योग बनता हैं।
फल :- इस योग में जन्म लेने वाले कोराजकीय सेवा का पूरा सुख मिलता है।
●सिंह लग्न में रवि लग्न में हो।
फल :- इस योग में जन्म लेने वाले लोग प्रशासन में कुशल और उच्च पद का अधिकारी बनता है।
●मिथुन लग्न में रवि दशवें या ग्यारहवें घर में हो।
फल :- इस योग में जन्म लेने वाले लोग बहुत ही महत्वकांक्षा वाले और बड़े लोगो से सम्पर्क रखने वाले होते है।
●मेष लग्न की कुण्डली में रवि-सोम एक साथ होने पर राजयोग कारक होता है।
●यदि सिंह लग्न हो और चतुर्थ घर(वृश्चिक) में रवि-मन्द एक साथ होने पर योग बनता है।
फल :- इस प्रकार के योग में जन्में लोग को वाहन का सुख अच्छा मिलता है।
●यदि रवि,भौम की राशि वृश्चिक में हो और भृगु, रवि की राशि सिंह में में होने पर यह योग बनता है।
फल :- इस योग में जन्में लोग को ससुराल से अच्छा धन मिलता है।
●धनु लग्न हो और रवि ग्यारहवा घर(तुला) में नीच का हो और साथ ही दशमे एवं बारहवें घर में अन्य ग्रह नहीं होने पर योग बनता है।
फल :- इस योग जन्में लोग जीवन भर गरीबी से जीवन जीने वाले होते है।