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रविवार, 4 अक्टूबर 2020

कन्या या लड़की सन्तान योग

कन्या या लड़की सन्तान योग

कन्या या लड़की सन्तान योग :- लड़की सन्तान उन्हीं लोगों के होती है जो बहुत ही भाग्यवान या भाग्यशाली होते है, साथ ही अगले जन्म में कन्यादान के महापुण्य के कारण पुण्यलोक को प्राप्त कर खुश रहते है। हिन्दुस्तान संस्कृति में बताया गया है कि "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता" जहां पर औरतों की पूजा होती हैं, वहा पर देवता रहते है।  पुराने जमाने में लोग लड़की के जन्म को महाभिशाप मानते थे। आज के जमाने में स्थिति ऐसी बन चुकी है, की लड़की के गर्भ में आते ही उसकी हत्या कर दी जाती है।


धर्मशास्त्र में भ्रूणहत्या और मुख्यतया कन्या भ्रूण हत्या को महापाप माना जाता है और महापाप करने वाला जीवन में कभी भी सुखी एवं खुश नहीं रह सकता है। चाहे उसके पास में कितने भी धन-सम्पति व सभी सुख-सुविधाओं के साधन क्यों न हो।


ग्रह :- भानु,भौम,गुरु आदमी ग्रह है, तो सोम,भृगु ,शनि औरत ग्रह है। बुध नपुंसक ग्रह है तथा जिसके साथ बैठ जाता हैं, वैसे ही फल देने लग जाता है। 


राशियां :- राशियां भी छह औरत और राशियां भी छह आदमी होती है।


प्रकृति एवं ब्रह्मांड में सब जगह पर दो शक्तियों का संतुलन रहता है। यही सन्तुलन ही आनन्द या खुशी देता है, असन्तुलन होने पर दुःखी और अशान्ति देता है। 


शनि का बारह राशियों में एक घूमने पूरा चक्र 30 वर्ष में होता है और दो घूमने का चक्र 60 वर्षों में पूरा होता है। भानु शनि के पिता है, लेकिन शनि अपने पिता भानु से दुश्मनी का भाव रखता है। इसलिए जब भी शनि भानु की राशि पर दूसरे चक्र में  घूमने आता है तो औरत-आदमी का अनुपात बड़े पैमाने पर बिगड़ने लगता है।


ज्योतिष शास्त्र में भी औरत ग्रह का सम्बन्ध आदमी ग्रह से होने पर ही औरत ग्रह बलवान माने जाते है। चाहे जगह सम्बन्ध,दृष्टि सम्बन्ध या दूसरे एक-दूसरे के सम्बन्ध हों।


उसी प्रकार समाज मे भी परिवार एवं व्यक्ति की आभा या चमक तब तक ही होती है, जब तक दाम्पत्य जीवन में खुशहाली हो और गृहलक्ष्मी ज्यादा खुश हो।


ग्रह,नक्षत्र एवं राशियों के सम्बन्ध भी हमारे पारिवारिक एवं सामाजिक रिश्तों की तरह कोमल होते हैं। जैसे हमारे ग्रहयोग होते हैं, वैसे ही मन की प्रवृत्ति बन जाती है। यही कारण है कि आजकल रिश्तों की मधुरता एवं मर्यादा में धर्मशास्त्र, ज्योतिष शास्त्र, व्यवहारिक शास्त्र आदि की उपयोगिता को हमे खत्म कर दिया है।


शास्त्रों के वचनों में कहा गया है कि दस कुएं बनाने पर जो हमें पूण्य का फल मिलता है वही पर एक बाबड़ी बनाने पर मिल जाता हैं। दस बाबड़ी बनाने पर जो पूण्य मिलता है वही पर एक तालाब बनाने पर मिल जाता है और दस तालाब बनाने पर जो पूण्य मिलता है वही एक लड़की या कन्यादान करने से मिल जाता हैं।


पूण्य कोई सुंगधित या सुंदर दिखने वाला प्रदर्थ नहीं होता है। यह परम आनन्द का अनुभव कराने की पराकाष्ठा होती है। उसकी  लगातार होते रहने की अवस्था तब ही संभव हो पाती जब दानपुण्य चलते रहते हैं। 


कन्या या लड़की दान भी वही भाग्यशाली औरत-आदमी कर पाते हैं जिनके सन्तान स्थान पर  तीसरे स्थान, ग्यारहवा या खर्च जगह के स्वामी के द्वारा देखा जाये अर्थात् दान स्थान के स्वामी एवं सन्तान स्थान या भाव में सम्बन्ध बन रहा हो। तीसरा व ग्यारहवा घर दान के कारक स्थान होते है और उनका सम्बन्ध पाचवें घर के स्वामी से, नवें घर के स्वामी से होने पर कन्यादान के महापुण्य की ज्यादा सम्भावना बन जाती हैं। इसीलिए कन्या सन्तान ही जन्म-जन्मांतर से मोक्ष या मुक्ति दिलाने वाली होती है।


धर्मशास्त्रों में बताया गया है कि:-


"श्रुत्वा कन्या प्रदातारं पितर: स पितामहाः।

विमुक्तवा सर्वपापेभ्यो ब्रह्मलोकं ब्रजन्ति ते।।"


अर्थात् पितामहों सहित पितर लोग कन्यादान देने वाले से अपने वंश को सुनकर सब पापों से मुक्त होकर ब्रह्मलोक को जाते है।


पुत्र की इच्छा वाले दहेज लालच के साथ लड़की को लाते हैं। इस प्रकार के लोग दोहरा दान लेने से पाप के समूह में आ जाते है और कन्यादान से उस पाप के कर्ज से मुक्ति संभव हो पाती है। इसीलिए लड़के की प्राप्ति से अधिक श्रेष्ठयोग लड़की प्राप्ति का होता है।


पाचवें, सातवें एवं नवें घर पर आदमी ग्रहों की स्थिति लड़की सन्तान देती हैं और औरत ग्रहों की युति आदमी या लड़के सन्तान  देती हैं।


कन्या या लड़की प्राप्ति के बिना मोक्ष संभव नहीं है।  लड़के या पुत्र सन्तान की अपेक्षा लड़की या कन्या अधिक पूण्य फल देने वाले होती हैं।


जिन लोगों की आदमी राशियां बलवान होती है उन्हें लड़की सन्तान की प्राप्ति होती है। यह विपरीत हुआ करता है। इस प्रकार की स्थिति में मानसिक शांति एवं समृद्धि लड़की योग में होती है।


लड़की ही देवी का रूप है, लक्ष्मी जी का रूप है, सरस्वती जी का रूप है और उसके नष्ट करने की कोशिश उसे महाकाली के रूप में पैदा करने का निमंत्रण देता है