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बुधवार, 9 अक्टूबर 2019

प्रबोधिनी एकादशी



प्रबोधिनी एकादशी

प्रबोधिनी एकादशी

(कार्तिक शुक्ल एकादशी)

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा : हे अर्जुन । मैं तुम्हें मुक्ति देनेवाली कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की 'प्रबोधिनी एकादशीके सम्बन्ध में नारद और ब्रह्माजी के बीच हुए वार्तालाप को सुनाता हूँ । एक बार नारादजी ने ब्रह्माजी से पूछा : 'हे पिता । प्रबोधिनी एकादशीके व्रत का क्या फल होता हैआप कृपा करके मुझे यह सब विस्तारपूर्वक बतायें ।'

ब्राह्माजी बोले : हे पुत्र । जिस वस्तु का त्रिलोक में मिलना दुष्कर हैवह वस्तु भी कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की प्रबोधिनी एकादशी के व्रत से मिल जाती है । इस व्रत के प्रभाव से पूर्व जन्म के किये हुए अनेक बुरे कर्म क्षणभर में नष्ट हो जाते है । हे पुत्र । जो मनुष्य श्रद्धापूर्वक इस दिन थोड़ा भी पुण्य करते हैंउनका वह पुण्य पर्वत के समान अटल हो जाता है । उनके पितृ विष्णुलोक में जाते हैं 

ब्रह्महत्या आदि महान पाप भी 'प्रबोधिनी एकादशी के दिन रात्रि को जागरण करने से नष्ट हो जाते हैं। हे नारद । मनुष्य को भगवान की प्रसन्नता के लिए कार्तिक मास की इस एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए । जो मनुष्य इस एकादशी व्रत को करता हैवह धनवानयोगीतपस्वी तथा इन्द्रियों को जीतनेवाला होता हैक्योंकि एकादशी भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है। 

इस एकादशी के दिन जो मनुष्य भगवान की प्राप्ति के लिए दानतपहोमयज्ञ (भगवान्नामजप भी परम यज्ञ है। 'यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि। यज्ञों में जपयज्ञ मेरा ही स्वरुप है।' - श्रीमद्भगवदगीता ) आदि करते हैंउन्हें अक्षय पुण्य मिलता है। इसलिए हे नारद । तुमको भी विधिपूर्वक विष्णु भगवान की पूजा करनी चाहिए । 

इस एकादशी के दिन मनुष्य को ब्रह्ममुहूर्त में उठकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए और पूजा करनी चाहिए । रात्रि को भगवान के समीप गीतनृत्यकथा कीर्तन करते हुए रात्रि व्यतीत करनी चाहिए । प्रबोधिनी एकादशी के दिन पुष्पअगरधूप आदि से भगवान की आराधना करनी चाहिएभगवान को अर्घ्य देना चाहिए । इसका फल तीर्थ और दान आदि से करोड़ गुना अधिक होता है । 

जो गुलाब के पुष्प सेबकुल और अशोक के फूलों सेसफेद और लाल कनेर के फूलों सेदूर्वादल सेशमीपत्र सेचम्पकपुष्प से भगवान विष्णु की पूजा करते हैंवे आवागमन के चक्र से छूट जाते हैं । इस प्रकार रात्रि में भगवान की पूजा करके प्रात:काल स्नान के पश्चात् भगवान की प्रार्थना करते हुए गुरु की पूजा करनी चाहिए और सदाचारी व पवित्र ब्राह्मणों को दक्षिणा देकर अपने व्रत को छोड़ना चाहिए ।

जो मनुष्य चातुर्मास्य व्रत में किसी वस्तु को त्याग देते हैंउन्हें इस दिन से पुनः ग्रहण करनी चाहिए । जो मनुष्य 'प्रबोधिनी एकादशी के दिन विधिपूर्वक व्रत करते हैंउन्हें अनन्त सुख मिलता है और अंत में स्वर्ग को जाते हैं ।