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शुक्रवार, 14 मई 2010

वरुथिनी एकादशी और मोहिनी एकादशी व्रत कथा



वरुथिनी एकादशी और मोहिनी एकादशी व्रत कथा







* वरुथिनी एकादशी :-





(वैशाख कृष्ण एकादशी)





वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की
एकादशी को अत्यन्त पुण्यदायिनी और सौभाग्य- प्रदायिनी
  वरुथिनी एकादशी कहा जाता है। इस दिन भक्ति भाव से
मधुसूदन की पूजा करनी चाहिए। इस व्रत को करने से भगवान् मधुसूदन की प्रसन्नता
प्राप्त होती है और समस्त पापों का नाश होता है तथा सुख-समृध्दि
 की प्राप्ति होती है ।





इस व्रत के दिन निम्नलिखित
दस वस्तुओं का त्याग कर देना चाहिए -





(1) कांसे के बर्तन में भोजन करना 





(2) मांस खाना 





(3) मसूर दाल खाना  





(4) चना 





(5) कोदों  





(6) शाक 





(7) मधु 





(8) दुसरे का अन्न 





(9) दूसरी बार भोजन करना 





(10) स्त्री प्रसंग  





व्रत वाले दिन पान खाना, दातून करना, परनिन्द्रा, क्रोध करना, असत्य बोलना, जुआ खेलना आदि भी निषेध हैं।





वरुथिनी एकादशी के व्रत से
अन्न दान तथा कन्या दान दोनों के योग के बराबर फल मिलता है । इस व्रत को करने से
स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है तथा इसके महात्म्य को पढ़ने या सुनने मात्र से एक
हजार गोदान का फल मिलता है ।





 मोहिनी एकादशी :-





(वैशाख शुक्ल एकादशी)





वैशाख शुक्ल की इस मोहिनी
एकादशी को भगवान् के पुरुषोत्तम रूप (राम) की पूजा का विधान हैं । इस व्रत को करने
से निंदित कर्मों के पाप से छुटकारा मिल जाता है। सीता जी की खोज करते समय भगवान
राम ने भी इस व्रत को किया था तथा श्री
  कृष्ण के कहने पर महाराज युधिष्ठिर ने भी यह व्रत किया था । इस दिन
भगवान् की प्रतिमा को स्नानादि करा कर उत्तम वस्त्र पहना कर उच्चासन
  पर बैठाकर आरती उतारनी चाहिए और मीठे फलों का भोग
लगाना चाहिए । रात्रि में भगवान् का कीर्तन करते हुए मूर्ति के समीप ही पृथ्वी पर
शयन करना चाहिए।





 मोहिनी एकादशी कथा :-





युधिष्ठिर ने बड़े विनीत
भाव से श्री कृष्ण से कहा -
हे नटवर नागर ! वैशाख मास
के शुक्ल पक्ष की एकादशी के बारे में कथा सहित सब बातें मुझे बताइये ।"
भगवान् कृष्ण ने कहा - हे कुन्तीपुत्र! जब सीताजी के वनवास के बाद रामचन्द्र जी
बहुत व्यथित थे तब उन्होने वशिष्ठजी से पूछा था कि गुरुदेव मुझे कोई ऐसा व्रत
बताइये जिससे समस्त दुःखो
, पापों और संतापों का क्षय
होकर मेरे हदय को शान्ति मिले। उस समय वशिष्ठ जी ने जो उत्तर दिया वह मैं तुम्हे
सुनाता हूँ - महर्षि वशिष्ठ जी ने कहा - हे राम आपने कोई पाप नहीं किया। आपका तो नाम
लेने से ही मनुष्य
 के सभी रोग-शोक मिट जाते
है। यह प्रश्न आपने लोकहित की भावना से किया है
, अतः मैं आपको बतलाता हूँ कि मानसिक शांति की प्राप्ति और संताप तथा पाप मिटाने का अमोघ अस्त्र
है
 मोहिनी एकादशी का व्रत । वैशाख मास के शुक्ल पक्ष
की एकादशी को मोहिनी एकादशी इसलिए कहा जाता है कि इसका व्रत करने से मनुष्य के पाप
तथा दुख दूर होकर वह
 मोहजाल से मुक्त हो जाता है
। अतएव दुखी मनुष्यों को यह व्रत अवश्य करना चाहिए । मैं इसकी कथा कहता
 हूँ  आप ध्यानपूर्वक सुनिए -





सरस्वती नदी के किनारे बसी
सुन्दर और सम्पन्न नगरी भद्रवती में घृतिमान नाम का चन्द्रवंशी राजा राज्य करता था
। इसी नगर में धन-धान्य से परिपूर्ण धनपाल नामक एक वैश्य रहता था । वह वैश्य
अत्यन्त धर्मात्मा एवं विष्णु भक्त था । उसने नगर में अनेकों
 भोजनालय, प्याऊ, कुएं तालाब एवं धर्मशाला आदि बनवाये। सड़कों के किनारे आम, जामुन, नीम आदि के अनेक वृक्ष
लगवाये । उस वैश्य के सुमना
, सदबुद्धि, मेधावीसुकृति और धृष्टबुद्वि नाम
के पाँच पुत्र थे । उसके चार पुत्र तो धर्मात्मा थे
, परन्तु सबसे छोटा बेटा धृष्टिबुद्धि महापापी, लमपट और दुराचारी था । वह वेश्याओं और दुराचारी मनुष्यों की संगति
में रहकर जुआ खेलता
, दूसरों की स्त्रियों के साथ
भोग-विलास करता तथा मद्य-मांस का सेवन करता था । इस प्रकार अनेक कुकर्मो
 में फंसकर वह अपने पिता के धन को नष्ट करता था।
इन्ही
  कारणों से उसके पिता, भाइयों तथा कुटुम्बियों ने उसको घर से निकाल दिया । घर से निकाल देने
के बाद सब धन नष्ट हो जाने पर वेश्याओं तथा दुष्ट संगी
 साथियों ने उसका साथ छोड़ दिया। अब वह भूख प्यास
से अयन्त दुखी रहने लगा। तब उसने रात्रि के समय चोरी करना प्रारम्भ कर दिया । एक
बार वह पकड़ा गया
, पर राज्य कर्मचारियों ने उसे वैश्य का पुत्र जानकर छोड़
दिया । परन्तु दूसरी बार पकड़े। जाने पर उन्होंने उसे राजा के सामने उपस्थित कर
दिया ।
 





कारागार में राजा ने उसको
बहुत दु:ख दिये और फिर नगर से निकाल दिया। अब तो वह वन में रहकर जानवरों के शिकार
पर अपना जीवनयापन करने
  लगा। एक दिन भूख-प्यास से
व्याकुल वह शिकार का पीछा करते-करते कौडिन्य ऋषि के आश्रम में जा पहुंचा। उस समय
वैशाख मास था और कौडिन्य ऋषि
 गंगा स्नान करके आ रहे थे।
उनके भीगे वस्त्रों के छींटे पड़ने से कुछ सद्बुद्धि प्राप्त हुई और वह मुनि के
सामने हाथ जोड़कर कहने लगा - हे मुनिश्वर! मैने अपने जीवन में बहुत पाप किये है
अतः आप उन पापों से छुटने का कोई साधारण और बिना व्यय का उपाय बतलाइये । उसके दीन
वचन सुनकर ऋषि कहने लगे कि ध्यान देकर सुनो
 । तुम वैशाख शुक्ला एकादशी का व्रत करो। इस एकादशी का नाम मोहिनी है
और इससे तुम्हारे सब पाप नष्ट हो जायेंगे । मुनि
 के वचन सुनकर वह अत्यन्त
प्रसन्न हुआ और उनके द्वारा बताई गई विधि के अनुसार उसने मोहिनी एकादशी का व्रत किया । हे राम ! इस व्रत के प्रभाव से उसके सब पाप नष्ट हो गए और अन्त में वह
गरूड़ पर चढ़कर विष्णुलोक गया । इस व्रत से मोह आदि सब नष्ट हो जाते है अतः संसार
में इस व्रत से श्रेष्ठ अन्य कोई व्रत नहीं है। इसके महात्मय को पढ़ने अथवा सुनने
से एक हजार गौ दान का फल प्राप्त होता है ।