WhatsApp Group
Join Now
विवाह मुहूर्त तिथि
प्रातः 08:51 से सायं 05:05
सायं 05:58 से रात्रि 09:27
रात्रि 11:15 से प्रातः 05:51 (19 अप्रैल)
18 अप्रैल 2024
(गुरुवार)
प्रातः 05:51 से प्रातः 06:46
19 अप्रैल 2024
(शुक्रवार)
दोपहर 02:04 से रात्रि 10:38
रात्रि 12:00 से रात्रि 02:48 (21 अप्रैल)
20 अप्रैल 2024
(शनिवार)
प्रातः 06:32 से रात्रि 01:11
प्रातः 04:21 (22 अप्रैल) से प्रातः 05:19
21 अप्रैल 2024
(रविवार)
नौकरी और व्यापार शुरू करने का शुभ मुहूर्त
अमृतसिद्धि योग
प्रातः 07:32 से प्रातः 05:06 (10 अप्रैल)
09 अप्रैल 2024
(मंगलवार)
सायं 05:08 से प्रातः 05:48 (22 अप्रैल)
21 अप्रैल 2024
(रविवार)
मकान वाहन आभूषण खरीदने का शुभ मुहूर्त
त्रिपुष्कर योग
रात्रि 01:35 से प्रातः 05:55
15 अप्रैल 2024
(सोमवार)
दोपहर 02:04 से रात्रि 10:41
20 अप्रैल 2024
(शनिवार)
प्रातः 07:05 से प्रातः 04:09 (01 मई)
30 अप्रैल 2024
(मंगलवार)
मकान दुकान ऑफिस का उद्घाटन और सगाई का शुभ मुहूर्त
सर्वार्थ सिध्दि योग
दोपहर 12:58 से प्रातः 06:03 (08 अप्रैल)
07 अप्रैल 2024
(रविवार)
प्रातः 07:32 से प्रातः 05:06 (10 अप्रैल)
09 अप्रैल 2024
(मंगलवार)
प्रातः 03:05 से प्रातः 06:00
11 अप्रैल 2024
(गुरुवार)
प्रातः 03:05 से प्रातः 05:54
16 अप्रैल 2024
(मंगलवार)
प्रातः 05:16 से प्रातः 05:33
17 अप्रैल 2024
(बुधवार)
प्रातः 05:49 से प्रातः 05:48 (22 अप्रैल)
21 अप्रैल 2024
(रविवार)
रात्रि 02:24 से प्रातः 05:45
प्रातः 05:45 से प्रातः 03:40 (27 अप्रैल)
26 अप्रैल 2024
(शुक्रवार)
प्रातः 05:43 से प्रातः 04:49 (29 अप्रैल)
28 अप्रैल 2024
(रविवार)
पापमोचिनी एकादशी
05 अप्रैल 2024
(शुक्रवार)
पापमोचनी एकादशी
(चैत्र कृष्ण एकादशी)
महाराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से चैत्र मास के कृष्णपक्ष की एकादशी के बारे में जानने की इच्छा प्रकट की तो वे बोले : 'राजेन्द्र । मैं तुम्हें इस विषय में एक पापनाशक उपाख्यान सुनाऊँगा, जिसे चक्रवर्ती नरेश मान्धाता के पूछने पर महर्षि लोमश ने कहा था
मान्धाता ने पूछा : भगवन् । मैं लोगों के हित की इच्छा से यह सुनना चाहता हूँ कि चैत्र मास के कृष्णपक्ष में किस नाम की एकादशी होती है, उसकी क्या विधि है तथा उससे किस फल की प्राप्ति होती है? कृपया ये सब बातें मुझे
बताइये ।
लोमशजी ने कहा : नृपश्रेष्ठ । पूर्वकाल की बात है । अप्सराओं से सेवित चैत्ररथ नामक वन में, जहाँ गन्धर्वो की कन्याएँ अपने किंकरो के साथ बाजे बजाती हुई विहार करती हैं, मंजुघोषा नामक अप्सरा मुनिवर मेघावी को मोहित करने के लिए गयी । वे महर्षि चैत्ररथ वन में रहकर ब्रह्मचर्य का पालन करते थे । मंजुघोषा मुनि के भय से आश्रम से एक कोस दूर ही ठहर गयी और सुन्दर ढंग से वीणा बजाती हुई मधुर गीत गाने लगी ।
मुनिश्रेष्ठ मेघावी घूमते हुए उधर जा निकले और उस सुन्दर अप्सरा को इस प्रकार गान करते देख बरबस ही मोह के वशीभूत हो गये । मुनि की ऐसी अवस्था देख मंजुघोषा उनके समीप आयी और वीणा नीचे रखकर उनका आलिंगन करने लगी । मेघावी भी उसके साथ रमण करने लगे । रात और दिन का भी उन्हें भान न रहा । इस प्रकार उन्हें बहुत दिन व्यतीत हो गये । मंजुघोषा देवलोक में जाने को तैयार हुई । जाते समय उसने मुनिश्रेष्ठ मेघावी से कहा: 'ब्रह्मन् । अब मुझे अपने देश जाने की आज्ञा दीजिये ।'
मेघावी बोले : देवी । जब तक सवेरे की संध्या न हो जाय तब तक मेरे ही पास ठहरो ।
अप्सरा ने कहा : विप्रवर । अब तक न जाने कितनी ही संध्याँए चली गयीं । मुझ पर कृपा करके बीते हुए समय का विचार तो कीजिये ।
लोमशजी ने कहा : राजन् । अप्सरा की बात सुनकर मेघावी चकित हो उठे । उस समय उन्होंने बीते हुए समय का हिसाब लगाया तो मालूम हुआ कि उसके साथ रहते हुए उन्हें सत्तावन वर्ष हो गये । उसे अपनी तपस्या का विनाश करनेवाली जानकर मुनि को उस पर बड़ा क्रोध आया ।
उन्होंने शाप देते हुए कहा: 'पापिनी । तू पिशाची हो जा ।' मुनि के शाप से दग्ध होकर वह विनय से नतमस्तक हो बोली : 'विप्रवर । मेरे शाप का उद्धार कीजिये । सात वाक्य बोलने या सात पद साथ साथ चलनेमात्र से ही सत्पुरुषों के साथ मैत्री हो जाती है। ब्रह्मन् । मैं तो आपके साथ अनेक वर्ष व्यतीत किये हैं, अतः स्वामिन् । मुझ पर कृपा कीजिये ।
मुनि बोले : भद्रे । क्या करूँ ? तुमने मेरी बहुत बड़ी तपस्या नष्ट कर डाली है । फिर भी सुनो । चैत्र कृष्णपक्ष में जो एकादशी आती है उसका नाम है पापमोचनी ।' वह शाप से उद्धार करनेवाली तथा सब पापों का क्षय करनेवाली है सुन्दरी । उसीका व्रत करने पर तुम्हारी पिशाचता दूर होगी ।
ऐसा कहकर मेघावी अपने पिता मुनिवर च्यवन के आश्रम पर गये । उन्हें आया देख च्यवन ने पूछा : 'बेटा । यह क्या किया ? तुमने तो अपने पुण्य का नाश कर डाला !
मेघावी बोले : पिताजी । मैंने अप्सरा के साथ रमण करने का पातक किया है। अब आप ही कोई ऐसा प्रायश्चित बताइये, जिससे पातक का नाश हो जाय ।
च्यवन ने कहा : बेटा । चैत्र कृष्णपक्ष में जो 'पापमोचनी एकादशी' आती है. उसका व्रत करने पर पापराशि का विनाश हो जायेगा । पिता का यह कथन सुनकर मेघावी ने उस व्रत का अनुष्ठान किया । इससे उनका पाप नष्ट हो गया और वे पुनः तपस्या से परिपूर्ण हो गये । इसी प्रकार मंजुघोषा ने भी इस उत्तम व्रत का पालन किया | ‘पापमोचनी' का व्रत करने के कारण वह पिशाचयोनि से मुक्त हुई और दिव्य रुपधारिणी श्रेष्ठ अप्सरा होकर स्वर्गलोक में चली गयी ।
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं : राजन् । जो श्रेष्ठ मनुष्य 'पापमोचनी एकादशी' का व्रत करते हैं उनके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं । इसको पढ़ने और सुनने से सहस गौदान का फल मिलता है । ब्रह्महत्या, सुवर्ण की चोरी, सुरापान और गुरुपत्नीगमन करनेवाले महापातकी भी इस व्रत को करने से पापमुक्त हो जाते हैं यह व्रत बहुत पुण्यमय है।
कामदा एकादशी
19 अप्रैल 2024
(शुक्रवार)
कामदा एकादशी
(चैत्र शुक्ल एकादशी)
युधिष्ठिर ने पूछा : वासुदेव । आपको नमस्कार है ! कृपया आप यह बताइये कि चैत्र शुक्लपक्ष में किस नाम की एकादशी होती है?
भगवान श्रीकृष्ण बोले : राजन् । एकाग्रचित्त होकर यह पुरातन कथा सुनो, जिसे वशिष्ठजी ने राजा दिलीप के पूछने पर कहा था ।
वशिष्ठजी बोले : राजन् । चैत्र शुक्लपक्ष में 'कामदा' नाम की एकादशी होती है । वह परम पुण्यमयी है । पापरुपी ईंधन के लिए तो वह दावानल ही है ।
प्राचीन काल की बात है नागपुर नाम का एक सुन्दर नगर था, जहाँ सोने के महल बने हुए थे । उस नगर में पुण्डरीक आदि महा भयंकर नाग निवास करते थे । पुण्डरीक नाम का नाग उन दिनों वहाँ राज्य करता था । गन्धर्व, किन्नर और अप्सराएँ भी उस नगरी का सेवन करती थीं । वहाँ एक श्रेष्ठ अप्सरा थी, जिसका नाम ललिता था । उसके साथ ललित नामवाला गन्धर्व भी था । वे दोनों पति पत्नी के रुप में रहते थे । दोनों ही परस्पर काम से पीड़ित रहा करते थे । ललिता के हृदय में सदा पति की ही मूर्ति बसी रहती थी और ललित के हृदय में सुन्दरी ललिता का नित्य निवास था ।
एक दिन की बात है । नागराज पुण्डरीक राजसभा में बैठकर मनोरंजन कर रहा था । उस समय ललित का गान हो रहा था किन्तु उसके साथ उसकी प्यारी ललिता नहीं थी । गाते गाते उसे ललिता का स्मरण हो आया । अतः उसके पैरों की गति रुक गयी और जीभ लड़खड़ाने लगी। नागों में श्रेष्ठ कर्कोटक को ललित के मन का सन्ताप ज्ञात हो गया, अत: उसने राजा पुण्डरीक को उसके पैरों की गति रुकने और गान में त्रुटि होने की बात बता दी । कर्कोटक की बात सुनकर नागराज पुण्डरीक की आँखे क्रोध से लाल हो गयीं | उसने गाते हुए कामातुर ललित को शाप दिया : 'दुर्बुद्धे । तू मेरे सामने गान करते समय भी पत्नी के वशीभूत हो गया, इसलिए राक्षस हो जा ।'
महाराज पुण्डरीक के इतना कहते ही वह गन्धर्व राक्षस हो गया । भयंकर मुख, विकराल आँखें और देखनेमात्र से भय उपजानेवाला रुप - ऐसा राक्षस होकर वह कर्म का फल भोगने लगा । ललिता अपने पति की विकराल आकृति देख मन ही मन बहुत चिन्तित हुई भारी दुःख से वह कष्ट पाने लगी । सोचने लगी: ‘क्या करूँ? कहाँ जाऊँ? मेरे पति पाप से कष्ट पा रहे हैं वह रोती हुई घने जंगलों में पति के पीछे पीछे घूमने लगी । वन में उसे एक सुन्दर आश्रम दिखायी दिया, जहाँ एक मुनि शान्त बैठे हुए थे | किसी भी प्राणी के साथ उनका वैर विरोध नहीं था । ललिता शीघ्रता के साथ वहाँ गयी और मुनि को प्रणाम करके उनके सामने खड़ी हुई । मुनि बड़े दयालु थे । उस दुःखिनी को देखकर वे इस प्रकार बोले : 'शुभे ! तुम कौन हो ? कहाँ से यहाँ आयी हो? मेरे सामने सच सच बताओ ।'
ललिता ने कहा : महामुने । वीरधन्वा नामवाले एक गन्धर्व हैं । मैं उन्हीं महात्मा की पुत्री हूँ । मेरा नाम ललिता है । मेरे स्वामी अपने पाप दोष के कारण राक्षस हो गये हैं । उनकी यह अवस्था देखकर मुझे चैन नहीं है । ब्रह्मन् ! इस समय मेरा जो कर्तव्य हो, वह बताइये । विप्रवर! जिस पुण्य के द्वारा मेरे पति राक्षसभाव से छुटकारा पा जायें, उसका उपदेश कीजिये ।
ऋषि बोले : भद्रे । इस समय चैत्र मास के शुक्लपक्ष की 'कामदा' नामक एकादशी तिथि है, जो सब पापों को हरनेवाली और उत्तम है | तुम उसीका विधिपूर्वक व्रत करो और इस व्रत का जो पुण्य हो, उसे अपने स्वामी को दे डालो पुण्य देने पर क्षणभर में ही उसके शाप का दोष दूर हो जायेगा |
राजन् ! मुनि का यह वचन सुनकर ललिता को बड़ा हर्ष हुआ । उसने एकादशी को उपवास करके द्वादशी के दिन उन ब्रह्मर्षि के समीप ही भगवान वासुदेव के (श्रीविग्रह के) समक्ष अपने पति के उद्धार के लिए यह वचन कहा: मैंने जो यह ‘कामदा एकादशी' का उपवास व्रत किया है, उसके पुण्य के प्रभाव से मेरे पति का राक्षसभाव दूर हो जाय ।'
वशिष्ठजी कहते हैं : ललिता के इतना कहते ही उसी क्षण ललित का पाप दूर हो गया । उसने दिव्य देह धारण कर लिया | राक्षसभाव चला गया और पुन: गन्धर्वत्व की प्राप्ति हुई।
नृपश्रेष्ठ ! वे दोनों पति पत्नी 'कामदा' के प्रभाव से पहले की अपेक्षा भी अधिक सुन्दर रुप धारण करके विमान पर आरुढ़ होकर अत्यन्त शोभा पाने लगे यह जानकर इस एकादशी के व्रत का यत्नपूर्वक पालन करना चाहिए ।
मैंने लोगों के हित के लिए तुम्हारे सामने इस व्रत का वर्णन किया है । कामदा एकादशी' ब्रह्महत्या आदि पापों तथा पिशाचत्व आदि दोषों का नाश करनेवाली है । राजन् ! इसके पढ़ने और सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है