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गुरुवार, 7 अक्टूबर 2021

Aaj Ka Panchang 08 October 2021: शुक्रवार पंचांग से जानिए आज की तिथि, शुभ मुहूर्त; योग और राहुकाल

Aaj Ka Panchang 08 October 2021: शुक्रवार पंचांग से जानिए आज की तिथि, शुभ मुहूर्त; योग और राहुकाल


दिनांक :  08 अक्टूबर 2021

आज का पंचांग   


सूर्योदय का समय : प्रातः 06:18

सूर्यास्त का समय : सायं 05:59

 

चंद्रोदय का समय : प्रातः 08:03

चंद्रास्त का समय : सायं 07:29


तिथि संवत :-

दिनांक - 08 अक्टूबर 2021

मास -  आश्विन

पक्ष - शुक्ल पक्ष

तिथि - द्वितीया शुक्रवार प्रातः 10:48 तक रहेगी

अयन -  सूर्य दक्षिणायन

ऋतु -  शरद ऋतु

विक्रम संवत - 2078

शाके संवत - 1943
 

सूर्यादय कालीन नक्षत्र :-

नक्षत्र - स्वाती नक्षत्र सायं 06:59 तक रहेगा इसके बाद विशाखा नक्षत्र  रहेगा

योग - विष्कुम्भक योग रात्रि 10:04 तक रहेगा इसके बाद प्रीति योग  रहेगा

करण - कौलव करण प्रातः 10:48 तक रहेगा इसके बाद तैतिल करण रहेगा

ग्रह विचार :-

सूर्यग्रह - कन्या

चंद्रग्रह - तुला 

मंगलग्रह - कन्या

बुधग्रह - कन्या

गुरूग्रह - मकर

शुक्रग्रह - वृश्चिक

शनिग्रह - मकर

राहु - वृषभ

केतु - वृश्चिकराशि में स्थित है

* शुभ समय *

अभिजित मुहूर्त :-

प्रातः 11:45 से दोपहर 12:32 तक  रहेगा

विजय मुहूर्त :-

दोपहर 02:05 से दोपहर 02:52 तक  रहेगा

गोधूलि मुहूर्त :-

सायं 05:47 से सायं 06:11 तक  रहेगा

निशिता मुहूर्त :-

रात्रि 11:44 से रात्रि 12:33 तक  रहेगा

ब्रह्म मुहूर्त :-

प्रातः 04:40 (09 अक्टूबर) से प्रातः 05:29 तक  रहेगा


* अशुभ समय * 

राहुकाल :-

प्रातः 10:41 से दोपहर 12:08 तक  रहेगा

गुलिक काल :-

प्रातः 07:45 से प्रातः 09:13 तक  रहेगा

यमगण्ड :-

दोपहर 03:04 से सायं 04:31 तक  रहेगा

दूमुहूर्त :-

प्रातः 08:38 से प्रातः 09:25 तक  रहेगा

दोपहर 12:32 से दोपहर 01:19 तक  रहेगा

वर्ज्य :-

रात्रि 12:04 से रात्रि 01:32 तक  रहेगा

दिशाशूल :-

पश्चिम दिशा की तरफ रहेगा यदि जरुरी हो तो चॉकलेट खाकर यात्रा कर सकते है

चौघड़िया मुहूर्त :-

दिन का चौघड़िया 

प्रातः 06:18 से 07:45 तक चर का

प्रातः 07:45 से 09:13 तक लाभ का

प्रातः 09:13 से 10:41 तक अमृत का

प्रातः 10:41 से 12:08 तक काल का

दोपहर 12:08 से 01:36 तक शुभ का

दोपहर 01:36 से 03:04 तक रोग का

दोपहर बाद 03:04 से 04:31 तक उद्वेग का

सायं 04:31 से 05:59 तक चर का चौघड़िया  रहेगा


रात का चौघड़िया

सायं 05:59 से 07:31 तक रोग का

रात्रि 07:31 से 09:04 तक काल का

रात्रि 09:04 से 10:36 तक लाभ का

रात्रि 10:36 से 12:09 तक उद्वेग का

अधोरात्रि 12:09 से 01:41 तक शुभ का

रात्रि 01:41 से 03:13 तक अमृत का

प्रातः (कल) 03:13 से 04:46 तक चर का

प्रातः (कल) 04:46 से 06:18 तक रोग का चौघड़िया रहेगा

आज जन्मे बच्चों का नामाक्षर :-  

समय
  पाया  
  नक्षत्र  
  राशि  
जन्माक्षर

02:41 am
से
08:06 am

रजतस्वाती
2
चरण
तुलारे

08:07 am
से
01:33 pm

रजतस्वाती
3
चरण
तुलारो
 
01:34 pm 
से
 06:59 pm
 
रजत स्वाती
4
चरण
 तुलाता

07:00 pm 
से
12:26 pm

ताम्रविशाखा
1
चरण
तुलाती

12:27 pm
से
05:52 am
(09 
अक्टूबर)

ताम्रविशाखा
2
चरण
तुलातू


आज विशेष :-

आज विष्कुंभक योग में घी दान करना शुभ फलदायी होता है शुक्रवार को शुक्र देवता की मूर्ति को चांदी या कांसे के पात्र में स्थापित करके सफ़ेद पुष्पादि से पूजन करें खीर का भोग लगाएं ब्राह्मणों को खीर का भोजन कराएं स्वयं भी खीर का भोजन करें तो शुक्र जनित व्याधियां दूर होती है स्वाती नक्षत्र में वायु देवता की उत्तम प्रकार के गंध फल फूल धूप दूध दही नैवेघ व दीप आदि से पूजा कर व्रत करें तो समस्त परेशानियों से छुटकारा एवं इच्छित फल मिलता है और सुख समृध्दि बढ़ती है


* शुक्रवार  व्रत की कथा *

पूजा विधि :-

इस व्रत को करने वाले कथा के पूर्व कलश को पूर्ण भरेउसके ऊपर गुड़ व चने से भरी कटोरी रखेकथा कहते व सुनते समय हाथ मे भुने चने व गुड़ रखे सुनने वाले सन्तोषी माता की जयइस प्रकार जय-जयकार से बोलते जाएँ। कथा समाप्त होने पर हाथ का गुड़ और चना गौ माता को खिलाएँ । कलश मे रखा हुआ गुड़ व चना सबको प्रसाद के रूप में बाँट दे । कथा समाप्त होने और आरती के बाद कलश के जल को घर में सब जगह छिड़केबचा हुआ जल तुलसी की क्यारी मे डाले। माता भावना की भखी है कम ज्यादा का कोई विचार नहीअतएव जितना भी बन पड़े प्रसाद अर्पण कर श्रद्धा और प्रेम से प्रसन्न मन से व्रत करना चाहिए। 

व्रत के उद्यापन मे अढाई सेर खाजाचने का शाकमोएनदार पूड़ी खीरनैवेद्य रखे। घी का दीपक जला संतोषी माता की जय-जयकार बोल नारियल फोड़े। इस दिन ८ लड़को को भोजन कराए। देवरजेठघर के ही लड़के हो तो दुसरो को बुलाना नही अगर कुटूम्ब मे न मिले तो ब्राह्मणो केरिश्तेदारो के या पड़ोसी के लड़के बुलाए। उन्हें खटाई की कोई वस्तु न दे तथा भोजन करा यथाशक्ति दक्षिणा दे।

कथा प्रारम्भ :-

एक समय की बात है कि एक नगर मै कायस्थब्राह्मण और वैश्य जाति के तीनो लड़को मे परस्पर मित्रता थी। उन तीनोका विवाह हो गया था। ब्राह्मण और कायस्थ के लड़को का गौना भी हो गया थापरन्तु वैय के लड़के का गौना नही हुआ था। एक दिन कायस्थ के लड़के ने कहा- "हे मित्र ! तुम मुकलावा करके अपनी स्त्री को घर क्यो नही लातेस्त्री के बिना घर कैसा बुरा लगता है।" 

यह बात वैश्य के लड़के को जंच गई। वह कहने लगा कि मैं अभी जाकर मुकलावा लेकर आता है। ब्राह्मण के लड़के ने कहा अभी मत जाओ क्योकि शुक्र अस्त हो रहा हैजब उदय हो तब जा कर ले आना। परन्तु वैश्य के लड़के को ऐसी जिद हो गई कि किसी प्रकार से नही माना। जब उसके घरवालो ने सुना तो उन्होने बहुत समझाया परन्तु वह किसी प्रकार से नही माना और अपने ससुराल चला गया। उसको आया देखकर ससुराल वाले भी चकराए। जमाता का स्वागत सत्कार करने के बाद उन्होंने पुछा आपका आना कैसे हुआ 

वैश्य पुत्र कहने लगा कि मैं अपनी पत्नी को विदा कराने के लिए आया है। सुसराल वालो ने भी उसे बहुत समझाया कि इन दिनो शुक्र अस्त हैउदय होने पर ले जानापरन्तु उसने एक न सुनी और अपनी पत्नी को ले जाने का आग्रह करता रहा। जब वह किसी प्रकार न माना तो उन्होने लाचार होकर अपनी पुत्री को विदा कर दिया। वैश्य पुत्र अपनी पत्नी को एक रथ मे बिठा कर अपने घर की ओर चल पड़ा। थोड़ी दूर जाने के बाद मार्ग मे उसके रथ का पहिया टूटकर गिर गया और बैल का पैर टूट गया। उसकी पत्नी भी गिर पड़ी और घायल हो गई। जब आगे चले तो रास्ते मे डाकू मिले। उसके पास जो धनवत्र तथा आभूषण थे वह सब उन्होंने छीन लिए । 

इस प्रकार अनेक कष्टों का सामना कर जब पति पत्नि अपने घर पहुंचे तो आते ही वैश्य के लड़के को सर्प ने काट लियावह मूर्छित होकर गिर पड़ा। तब उसकी स्त्री अत्यन्त विलाप कर रोने लगी। वैश्य ने अपने पुत्र को वैद्यो को दिखलाया तो वैद्य कहने लगे-यह तीन दिन में मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा। जब उसके मित्र ब्राह्मण को पता लगा तो उसने कहा- "सनातन धर्म की प्रथा है कि जिस समय शुक्र के अस्त हो कोई अपनी स्त्री को नही लाता। परन्तु यह शुक्र के अस्त के समय स्त्री को विदा कराके ले आया है 

इस कारण सारे विध्न उपस्थित हुए है। यदि यह दोनो सुसराल वापिस चले जाएं और शुक्र के उदय होने पर पुनः आवे तो निश्चय ही विध्न टल सकता है। सेठ ने अपने पुत्र और उसकी स्त्री को शीघ्र ही उसके सुसराल वापिस पहुंचा दिया। वहां पहुंचते ही वैश्य पुत्र की मूर्छा दूर हो गई और साधारण उपचार से ही वह सर्प विष से मुक्त हो गया। अपने दामाद को स्वास्थ्य लाभ करता रहा और जब शुक्र का उदय हुआ तब हर्ष पूर्वक उसकी सुसराल वालो ने उसको अपनी पुत्री के साथ विदा किया। इस के पश्चात् पति पत्नि दोनो घर आकर आनन्द से रहने लगे। इस व्रत के करने से अनेक विघ्न दूर होते है।