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सोमवार, 9 सितंबर 2019

होली की कथा और होली - पूजन विधि एवं सामग्री



होली की कथा और होली - पूजन विधि एवं सामग्री




* होली की कथा :-





'बहुत पुरानी बात है- हिरण्यकश्यप नाम का एक राक्षस
था । उसके पुत्र का नाम प्रहलाद था । प्रहलाद भगवान् का परम् भक्त था । परन्तु
उसका पिता भगवान् को अपना शत्रु मानता था । वह अपने राज्य में किसी को भी ईश्वर का
नाम नही लेने देता था। हिरण्यकश्यप ने घोर तपस्या से विपुल शक्ति का संग्रहकर
देवताओं को कष्ट देना प्रारंभ किया । इंन्द्रासन पर भी अपना अधिकार कर लिया और
आनंद पूर्वक जीवन व्यतीत करने लगा। विष्णु से विशेष विद्वेष था । सम्भवत: इसी की
प्रतिक्रिया स्वरूप उसके पुत्र प्रहलाद में विष्णु के प्रति भक्ति की भावना जाग्रत
हुई । एक बार हिरण्यकयप जब अपने पुत्र की शिक्षा के संबंध में जानने के लिए उसके
गुरू के पास गया तप उस अपने पुत्र की भक्ति भावना का ज्ञान हुआ। उसने अपने पुत्र
को ईश्वर का नाम लेने से मना किया परन्तु प्रहलाद को ईश्वर भजन से न रोक सका ।
 





इस पर क्रोधित होकर उसने
प्रहलाद को सर्पो
 की कोठरी में बंद करवाया, पहाड़ से गिरवाया,
हाथी के सामने डलवाया, परन्तु वह उस भक्त का कुछ ना बिगाड़ पाया। अंत में उसने आदेश दिया कि
मेरी बहन होलिका को बुलाओ और उससे कहा कि वह प्रहलाद को अग्नि मे लेकर बैठ जाए
, जिससे प्रहलाद जल कर मर जाएगा। होलिका को ऐसा वरदान मिला हुआ था कि
अग्नि उसको जला नही सकती । अत: भाई की आज्ञा से वह भक्त प्रहलाद को गोद में लेकर
आग के ऊपर बैठ गई
, लेकिन प्रहलाद का बाल भी
बांका न हुआ और होलिका जल कर भस्म हो गई ।भगवान् की कृपा से अग्नि प्रहलाद
 के लिए बर्फ के सामान शीतल हो गई। तभी से होलिका
जलाई जाती है।
 





इधर जब हिरण्यकश्यप को पता
लगा कि प्रहलाद तो बच गया और होलिका जलकर भस्म हो गई है तो अंत में निराश
हिरण्यकश्यप ने क्रोधित होकर प्रहलाद को एक लोहे के खम्भे से बांध दिया और पूछा -
'बोल, कहां है तेरा भगवान्, जिसकी तू हमेशा रट लगाए रहता है ?' प्रहलाद ने निडर होकर जवाब दिया - 'सभी जगह तो है भगवान्।' उसके पिता ने कहा- 'क्या इस खम्भे में भी है ? यदि है तो मैं अभी तलवार से
तुम्हारे दो टुकड़े करता हूं
, देखें वह तुम्हे कैसे बचाता
है
?' यह कहकर जैसे ही हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को मारने
के लिए तलवार उठाई भगवान विष्णु ने खम्भे को फाड़ नृसिंह रूप में अवतरित हो अपनी
जांघो पर बैठाकर हिरण्यकश्यप का नखों से पेट फाड़कर वध कर दिया और प्रहलाद के
प्राणो की रक्षा की ।





*  होली - पूजन विधि एवं
सामग्री :-





होलिका दहन तो रात्रि में
होता है
, परन्तु महिलाओं द्वारा
सामूहिक होली की पूजा दिन में दोपहर से लेकर शाम तक की जाती है। पहले जमीन पर गोबर
और जल से चौका लगाया जाता है। चौका लगाने के बाद एक सीधी लकड़ी (डण्डा) के चारों
तरफ बड़कला (गुलरी) की माला लगा दें। उन मालाओं के आसपास गोबर की ढाल. तलवार
, खिलौना अदि रख दें। फिर जो पूजन का समय निश्चत हो उस समय जल, रोली, मौली, चावल, ढाल, फूल, गुलाल, गुड़, नारियल, कच्चे सूत की पिण्डी आदि से पूजन करने के बाद ढाल, तलवार अपने घर में रख लें। 





चार जेलमाला (गुलेरी की
माला) अपने घर में पितर जी
, हनुमान जी, शीतला माता तथा घर के नाम को उठाकर अलग रख दें। यदि आपके घर में होली
न जलती हो तो सब ओर यदि जलती हो तो एक माला
, ऊख, पूजा की समस्त सामग्री, कच्चे सूत की कुकड़ी, जल का लोटा, नारियल, बूटे (हरे चने की डाली), पापड़ आदि सब सामान, जिस स्थान पर होली जलती हो वहां ले जाएं । वहां जाकर डंडी होली का
पूजन करें । जेलमाला
, नारियल आदि चढ़ा दें। फिर
परिक्रमा देकर पापड़
, बूटे आदि होली जलने पर भून
लें और बांट कर खा लें ।
 





ऊख घर पर वापस ले आएं । यदि
घर पर होली जलाएं तो गांव या शहर वाली होली में से ही अग्नि लाकर घर होली जलाएं ।
घर की होली में अग्नि लगाते ही उस लकड़ी को बहार निकाल लें । इस डंडे को भक्त
प्रहलाद मानते हैं। स्त्रियां होली जलते ही एक लोटे से सात बार जल का अर्घ्य देकर
रोली अक्षत चढायें । फिर होली के गीत तथा बधाई गाएं । पुरुष घर की होली में बूटे
और जौ के बाल
, पापड़ आदि भूनकर तथा उन्हे
सबमें बांटकर खा लें । पूजन के बाद बच्चे और पुरूष रोली से तिलक लगाएं तथा छोटे
अपने से बड़ो के पांव छूकर
 आशीर्वाद लें।





इसके पूर्व सर्वप्रथम होली
के दिन स्नान आदि से निवृत होकर पहले हनुमानजी भैरोंजी आदि देवताओं की पूजा करें ।
फिर उन पर जल
, रोली, मौली, चावल, फल, प्रसाद, गुलाल, नारियल, चंदन आदि चढ़ाए। दीपक से आरती करके सबको दण्डवत प्रणाम करें। फिर
सबके रोली से तिलक लगा दें ओर जिन देवताओं को आप मानते हों उनकी पूजा करें। फिर
थोड़े से तेल को सब बच्चों का हाथ लगाकर किसी चौराहे पर भैरोजी के नाम से एक ईंट
पर चढ़ा दें।