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शुक्रवार, 3 मई 2019

मकर संक्रांति का महत्व और कथा

मकर संक्रांति का महत्व और कथा
* मकर संक्रांति की पौराणिक व्रत कथा और इसका विशेष महत्व :-

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परिचय :-

इसका महत्त्व जाने बिना इस व्रत को करते हैं तो इस व्रत को करना बेकार होता है मकर संक्रांति का जो पर्व है प्रत्येक वर्ष जनवरी माह में आता है यह जो पर्व है विशेष रूप से प्रकाश के देवता सूर्य देवता को समर्पित होता है संपूर्ण वर्ष में छठ पूजा और मकर संक्रांति जिनका सीधा संबंध सूर्य देव से होता है तो  इन दोनों ही पर्व पर सूर्य देव को आराधना करना, दान करना, स्नान करना और पूजन आदि कार्य करना शुभ माना जाता है सूर्य देव को प्रसन्न करके आराधक इन दिनों अपनी मनोकामनाओं को पूरी करते हैं वास्तव में इस दिन को शरद ऋतु में बदलाव होना शुरु हो जाता है इसे मौसम में परिवर्तन के रूप में देखा जाता है तो दिन के वातावरण में तापमान इसमें बढ़ना आरंभ हो जाता है और सर्दियां इसमें कम होने लगती है
 

मकर संक्रांति का जो सापतिक अर्थ है मकर राशि में सूर्य के प्रवेश से होता है तो 12 महीनों में सूर्य 12 राशियों में भ्रमण करते हैं इस प्रकार सूर्य 1 महीने में एक राशि में रहते है सूर्य का यह जो राशि भ्रमण है राशि परिवर्तन है  जो अप्रेल माह में मेष राशि से आरंभ होता है सूर्य का राशि बदलना ही संक्रांति कहलाता है मकर राशि सूर्य के पुत्र शनि की राशि है इसलिए जब सूर्य का मिलन अपने पुत्र से होता है तो वह विशेष हो जाता है मकर शंक्रांति इस लिए भी विशेष मानी जाती है क्योंकि इस दिन सूर्य देव दक्षिणायन से निकल कर के उत्तरायन में आ जाते हैं सूर्य का उत्तरायन आना धार्मिक शुभ कार्यों के लिए शुभता की सूचना देता है तो इस दिन के साथ ही शुभ कार्य मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाता है शुभ मुहूर्त आरंभ हो जाते है तो संक्रांति की तिथि सूर्य के राशि बदलने से निर्धारित होती है मकर संक्रांति को श्रद्धा विश्वास और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है सामान्यतः सभी पर्व, व्रत, चंद्र गोचर, तिथि, नक्षत्र, योग, और कर्ण अर्थात पंचांग के आधार पर तय किए जाते हैं यही वजह है कि कभी-कभी मकर संक्रांति 14 जनवरी पर कभी-कभी 15 जनवरी को मनाई जाती है 

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धार्मिक महत्व क्या है :-

धार्मिक रूप से इस दिन भगवान सूर्य के लिए व्रत करके पवित्र नदियां और सरोवर ओर संगम स्थल पर स्नान करना दान करना पुननीय काम करना बड़ा ही शुभ माना जाता है सूर्य नमस्कार सूर्य देवता को अर्घ्य देना सूर्य देवता के मंत्र का जाप करना सूर्य की प्रार्थना करना और उस दिन सूर्य देवता के आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करना शुभ माना जाता है इससे सूर्यदेव अति प्रसन्न होते हैं और शांति के कार्य की इस अवसर पर करने से शुभ और मंगलकारी माने जाते हैं तो मकर संक्रांति के दिन ही दक्षिण भारत का पोंगल पर्व भी इसी दिन मनाया जाता है  उत्तर भारत में से मकर संक्रांति के नाम से, कर्नाटक में संक्रांति के नाम से, केरल में पोंगल के नाम से और पंजाब और हरियाणा में मार्गमाह संक्रांति के नाम से एवं राजस्थान में इस पर्व को उत्तरायण और उत्तराखंड में जो यह पर्व है उत्तरायणी के नाम से मनाया जाता है 

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मकर संक्रांति की पौराणिक कथा इस प्रकार :-  

१. पौराणिक कथा को सुनने के कई लाभ हम को प्राप्त होते हैं तो मकर संक्रांति का स्वामीत्व शनि ग्रह के पास है तो मकर संक्रांति से जुड़े पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र से मिलने उनके घर जाते हैं वैसे सभी को ज्ञान है सूर्य भगवान शनि के पिता और पिता और पुत्र दोनों में शत्रु और संबंध भी है वैदिक ज्योतिष के अनुसार सूर्य और शनि का एक साथ होना भाव की शुभता और विशेषताओं मे कमी करता है फिर भी सूर्य का शनि ग्रह की राशि में जाने पर पुत्र को पिता का सम्मान और आदर भाव करने का अवसर मिलता है और सूर्य शनि से संबंधित अशुभ योगो में कमी करने के लिए सबसे उपयुक्त दिन माना जाता है 

२. तो इस दिन से जुड़ी एक अन्य कथा के अनुसार इस दिन देवी गंगा जी भागीरथ के साथ सागर से जा मिली थी इसी के साथ गंगा जी की यात्रा पूर्ण हुई थी इसके अलावा इस दिन भागीरथ जी ने अपने पूर्वजों के मोक्ष के लिए तर्पण का कार्य संपन्न किया था तो भागीरथ जी के पितरों का तर्पण स्वीकार करने के बाद ही गंगा जी सागर में समाहित हो गई थी इसी महत्व को ध्यान में रखते हुए इस दिन गंगातट और गंगासागर पर तर्पण कार्य पूर्ण करने का इस दिन विशेष महत्व होता है 

३. और इसके अलावा एक और कथा के अनुसार इस दिन महाभारत युद्ध में घायल भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने के पश्चात परलोक गमन के लिए अपने प्राण त्यागे थे यह दिन भीष्म पितामह ने लिया था इसी कारण इस दिन को काफी महत्व दिया गया है 

४. और एक कथा के अनुसार इस दिन देवताओं और दानवों के मध्य युध्द हुआ था देवताओं ने दानवों का अंत कर दिया था और सदैव के लिए अशुभ शक्तियों का नाश कर दिया था 

५. तो मकर संक्रांति से एक और कथा जुड़ी हुई है जिसके अनुसार माता यशोदा ने भगवान श्री कृष्ण को पुत्र प्राप्ति के लिए व्रत किया था  

इन पौराणिक कथाओं के अनुसार यह जो पर्व है सूर्य देव की शुभता की प्राप्ति के लिए सारे देश भर में पूर्ण श्रद्धा विश्वास के साथ मनाया जाता है और मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य नारायण का विशेष आशीर्वाद पाने के लिए उनकी कृपा को पाने के लिए इस प्रकार से दान करना शुभ माना गया है नव ग्रहो मे सूर्य को राजा का स्थान दिया गया है यानी जिन लोगों की कुंडली में सूर्य ग्रह अच्छे होते हैं उन लोगों को जीवन में उच्च पद की प्राप्ति होती है हर प्रकार से सम्मान मिलता है सुख समृद्धि उनकी बढ़ती रहती है तो सूर्य ग्रह जो है उच्च पद, सरकारी क्षेत्र, उच्च अधिकारी, प्रशासनिक कार्य, आत्मा, आत्म बल,आत्म विश्वास और श्रद्धा के कारक ग्रह कहे गए है सूर्य की शुभता प्राप्त किए बिना इन विषयों में अनुकूलता प्राप्त करना संभव नहीं होता है तो यही वजह है जिसके कारण विभिन्न पुराणों में मकर संक्रांति के पर्व पर दान धर्म कार्य करने के लिए विशेष रूप से बताया गया है 

पौराणिक महत्व के अनुसार मकर संक्रांति पर शुद्ध घी एवं काले तिलो और कंबल आदि का दान करने से व्यक्ति धन-धान्य जीवन मे कभी कमी नहीं आती है और सुख समृद्धि उसकी बनी रहती है ऐसे व्यक्ति को जीवन में सभी प्रकार के सुख साधन प्राप्त होते हैं साथ ही ऐसा व्यक्ति जीवन में सुख शांति के साथ उसका जीवन व्यतीत होता है इसके अलावा अन्य धर्मो ग्रंथो में ऐसा बताया है कि मकर संक्रांति के दिन शनि ग्रह के दोषों का निवारण और शनि शांति करने के लिए सफेद तिल से बनी हुई वस्तुओं से देवताओं को भोग लगाना चाहिए और काले तिल से पितरों का तर्पण करने से पितरों की आत्मा को इस दिन शांति मिलती है तो भगवान आशुतोष को प्रसन्न करने से भी शनि देव शीघ्र प्रसन्न होते हैं इसके लिए शुद्ध जल से शिवलिंग का अभिषेक करने से इस दिन बहुत ही शुभ फल की प्राप्ति होती है तो सूर्य ग्रह और ग्रह दोनों की शुभता प्राप्ति के लिए ब्राह्मणों को नया पंचांग दान में दिया जाता है जो बड़ा ही शुभ मंगलकारी माना जाता है 

मकर संक्रांति पर्व शनि और सूर्य ग्रह से संबंधित पर्व होने के कारण इस दिन की अधिकतर क्रियाओं में गुड़ और तिल का प्रयोग करने का प्रयास करना चाहिए जहां तक संभव हो उस दिन प्रातः काल से नित्य क्रियाओ से निवृत होने के बाद स्नान के जल में थोड़े से तिल मिलाकर के उससे स्नान करना चाहिए और उबटन बनाते समय भी उस में तिल आदि शामिल करना चाहिए पूजा पाठ में हवन में तिल और युक्त जल का प्रयोग करना चाहिए तिल मिलाकर ही देवताओं का प्रसाद तैयार करना चाहिए इस प्रकार जो व्यक्ति इस दिन तिल का प्रयोग करता है उसके सभी पापों का नाश हो जाता है और पुर्ण्य फल की विशेष रूप से उस व्यक्ति को प्राप्ति होती है 

इस दिन के विषय में ऐसी मान्यताएं है की बेटी और दामाद को बुलाकर आदर सत्कार करके उनको वस्त्र दान आदि देना चाहिए किसी गरीब या पुजारी को धन व वस्त्र  अन्न का दान और तिल और गुड़ के साथ करना चाहिए और इस दिन तिल से बनी हुई वस्तुओं का सेवन करने का प्रचलन है तिल से बने हुए लड्डू मिठाई अन्य खाद्य वस्तुए बनाकर के अपने मित्रों सगे संबंधियो और निकट व्यक्तियों को उपहार के रूप में देना चाहिए इसके अलावा इसका स्वयं भी परिवार सहित सेवन करना चाहिए प्रसाद के रूप में और इस दिन के महत्व के विषय में ऐसा कहा जाता है इस दिन दान करते समय विनीत भाव से अपने अहंकार का दान भी करना चाहिए प्रत्येक शुभ अवसर की तरह इस दिन करोड़ों लाखों लोग धर्म कार्य करते हैं परन्तु सबकी आस्था और विश्वास एक जैसा नहीं होने के कारण सब को मिलने वाले फलों की प्राप्ति का अलग-अलग प्रकार होता है यानी जैसी जिसकी भावना होती है वैसा ही फल उस व्यक्ति को मिलता है तो कोई भी शुभ कार्य इस भावना के साथ नहीं करना चिहिए की इसके बदले हमें पुण्य शुभ फलों की प्राप्ति हो कोई भी धर्म कार्य तभी फलदायक होता है 

जब उसमें निस्वार्थ भाव जुड़ा होता है अन्यथा किए गए कार्य के फल नष्ट हो जाते हैं साथ ही कोई भी दान इस भावना के साथ नहीं करना चाहिए कि हमने इतना अधिक दान कर दिया है दान की गई वस्तुओं के खर्च का भारी दबाव महसूस नहीं करना चाहिए ना ही किसी से आपको चर्चा करना चाहिए तो यह भाव मन में आना नहीं चाहिए हम इतने दानी है इस अहंकार भाव के साथ किया गया दान निष्फल हो जाता है दान सदैव अपनी मेहनत और ईमानदारी की कमाई से ही करना चाहिए और गलत तरीको से धन अर्जित करके उसका दान  हमको कभी नहीं करना चाहिए उसका कोई फल हमें प्राप्त नहीं होता