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शनिवार, 22 सितंबर 2018

श्री रामचंद्र जी की आरती


श्री रामचंद्र जी की आरती



श्रीरामचंद्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं,





नवकंज लोचन, कंजमुख कर, कंज पद कंजारुणं.





कंदर्प अगणित अमित छवि नव नील नीरज सुन्दरम,





पट पीत मानहु तडित रूचि-शुची नौमी, जनक सुतावरं.





भजु दीनबंधु दिनेश दानव दैत्य वंष निकन्दनं,





रघुनंद आनंद कंद कोशल चन्द्र दशरथ नंदनम.





सिर मुकुट कुंडल तिलक चारू उदारु अंग विभुशनम,





आजानुभुज शर चाप-धर, संग्राम-जित-खर दूषणं.





इति वदति तुलसीदास, शंकर शेष मुनि-मन-रंजनं,





मम ह्रदय कंज निवास कुरु, कामादि खल-दल-गंजनं.





मनु जाहि राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरो,





करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो





एही भांति गोरी असीस सुनी सिय सहित हिं हरषीं अली,





तुलसी भावानिः पूजी पुनि-पुनि मुदित मन मंदिर चली.





जानी गौरी अनूकोल, सिया हिय हिं हरषीं अली,





मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे.





बोल सीता राम दरबार की जय.





बोल सिया वर राम चन्द्र की जय.





पवन सुत हनुमान की जय.