दिनांक : 14 जनवरी 2021
आज का पंचांग
सूर्योदय का समय : प्रातः 07:15
सूर्यास्त का समय : सायं 05:46
चंद्रोदय का समय : प्रातः 08:15
चंद्रास्त का समय : सायं 06:57
तिथि संवत :-
दिनांक - 14 जनवरी 2021
मास - पौष
पक्ष - शुक्ल पक्ष
तिथि - प्रतिपदा गुरुवार प्रातः 09:01 तक रहेगी
अयन - सूर्य दक्षिणायन
ऋतु - हेमन्त ऋतु
विक्रम संवत - 2077
शाके संवत - 1942
सूर्यादय कालीन नक्षत्र :-
नक्षत्र - श्रवण नक्षत्र कल प्रातः 05:05 तक रहेगा इसके बाद धनिष्ठा नक्षत्र रहेगा
योग - वज्र योग रात्रि 10:06 तक रहेगा इसके बाद सिध्दि योग रहेगा
करण - बव करण प्रातः 09:01 तक रहेगा इसके बाद बालव करण रहेगा
ग्रह विचार :-
सूर्यग्रह - मकर
चंद्रग्रह - मकर
मंगलग्रह - मेष
बुधग्रह - मकर
गुरूग्रह - मकर
शुक्रग्रह - धनु
शनिग्रह - मकर
राहु - वृषभ
केतु - वृश्चिक, राशि में स्थित है
* शुभ समय *
अभिजित मुहूर्त :-
दोपहर 12:09 से दोपहर 12:51 तक रहेगा
विजय मुहूर्त :-
दोपहर 02:15 से दोपहर 02:57 तक रहेगा
गोधूलि मुहूर्त :-
सायं 05:35 से सायं 05:59 तक रहेगा
निशिता मुहूर्त :-
रात्रि 12:03 से रात्रि 12:57 तक रहेगा
ब्रह्म मुहूर्त :-
प्रातः 05:27 (15 जनवरी) से प्रातः 06:21 तक रहेगा
तिथि संवत :-
दिनांक - 14 जनवरी 2021
मास - पौष
पक्ष - शुक्ल पक्ष
तिथि - प्रतिपदा गुरुवार प्रातः 09:01 तक रहेगी
अयन - सूर्य दक्षिणायन
ऋतु - हेमन्त ऋतु
विक्रम संवत - 2077
शाके संवत - 1942
सूर्यादय कालीन नक्षत्र :-
नक्षत्र - श्रवण नक्षत्र कल प्रातः 05:05 तक रहेगा इसके बाद धनिष्ठा नक्षत्र रहेगा
योग - वज्र योग रात्रि 10:06 तक रहेगा इसके बाद सिध्दि योग रहेगा
करण - बव करण प्रातः 09:01 तक रहेगा इसके बाद बालव करण रहेगा
ग्रह विचार :-
सूर्यग्रह - मकर
चंद्रग्रह - मकर
मंगलग्रह - मेष
बुधग्रह - मकर
गुरूग्रह - मकर
शुक्रग्रह - धनु
शनिग्रह - मकर
राहु - वृषभ
केतु - वृश्चिक, राशि में स्थित है
* शुभ समय *
अभिजित मुहूर्त :-
दोपहर 12:09 से दोपहर 12:51 तक रहेगा
विजय मुहूर्त :-
दोपहर 02:15 से दोपहर 02:57 तक रहेगा
गोधूलि मुहूर्त :-
सायं 05:35 से सायं 05:59 तक रहेगा
निशिता मुहूर्त :-
रात्रि 12:03 से रात्रि 12:57 तक रहेगा
ब्रह्म मुहूर्त :-
प्रातः 05:27 (15 जनवरी) से प्रातः 06:21 तक रहेगा
* अशुभ समय *
राहुकाल :-
दोपहर 01:49 से दोपहर 03:08 तक रहेगा
गुलिक काल :-
प्रातः 09:55 से प्रातः 11:12 तक रहेगा
यमगण्ड :-
प्रातः 07:15 से प्रातः 08:34 तक रहेगा
दूमुहूर्त :-
प्रातः 10:45 से प्रातः 11:27 तक रहेगा
दोपहर 02:57 से दोपहर 03:39 तक रहेगा
वर्ज्य :-
प्रातः 09:24 से प्रातः 10:59 तक रहेगा
दिशाशूल :-
दक्षिण दिशा की तरफ रहेगा यदि जरुरी हो तो तिल,गुड़ या गुड़ के चावल खाकर यात्रा कर सकते है
चौघड़िया मुहूर्त :-
दिन का चौघड़िया
प्रातः 07:15 से 08:34 तक शुभ का
प्रातः 08:34 से 09:53 तक रोग का
प्रातः 09:53 से 11:12 तक उद्वेग का
प्रातः 11:12 से 12:30 तक चर का
दोपहर 12:30 से 01:49 तक लाभ का
दोपहर 01:49 से 03:08 तक अमृत का
दोपहर बाद 03:08 से 04:27 तक काल का
सायं 04:27 से 05:46 तक शुभ का चौघड़िया रहेगा
* अशुभ समय *
राहुकाल :-
दोपहर 01:49 से दोपहर 03:08 तक रहेगा
गुलिक काल :-
प्रातः 09:55 से प्रातः 11:12 तक रहेगा
यमगण्ड :-
प्रातः 07:15 से प्रातः 08:34 तक रहेगा
दूमुहूर्त :-
प्रातः 10:45 से प्रातः 11:27 तक रहेगा
दोपहर 02:57 से दोपहर 03:39 तक रहेगा
वर्ज्य :-
प्रातः 09:24 से प्रातः 10:59 तक रहेगा
दिशाशूल :-
दक्षिण दिशा की तरफ रहेगा यदि जरुरी हो तो तिल,गुड़ या गुड़ के चावल खाकर यात्रा कर सकते है
चौघड़िया मुहूर्त :-
दिन का चौघड़िया
प्रातः 07:15 से 08:34 तक शुभ का
प्रातः 08:34 से 09:53 तक रोग का
प्रातः 09:53 से 11:12 तक उद्वेग का
प्रातः 11:12 से 12:30 तक चर का
दोपहर 12:30 से 01:49 तक लाभ का
दोपहर 01:49 से 03:08 तक अमृत का
दोपहर बाद 03:08 से 04:27 तक काल का
सायं 04:27 से 05:46 तक शुभ का चौघड़िया रहेगा
रात का चौघड़िया
सायं 05:46 से 07:27 तक अमृत का
रात्रि 07:27 से 09:08 तक चर का
रात्रि 09:08 से 10:49 तक रोग का
रात्रि 10:49 से 12:30 तक काल का
अधोरात्रि 12:30 से 02:11 तक लाभ का
रात्रि 02:11 से 03:53 तक उद्वेग का
प्रातः (कल) 03:53 से 05:34 तक शुभ का
प्रातः (कल) 05:34 से 07:15 तक अमृत का चौघड़िया रहेगा
आज विशेष :-
आज वज्र योग में कंबल दान करना शुभ फलदायी होता है गुरुवार को बृहस्पति भगवान का पीले गंध पुष्प पीतांबर से पूजन कर ब्राह्मणों को पीली गाय के घी में बनाए पीले धान्य के प्रदार्थो का भोजन कराकर स्वयं भोजन करें और ब्राह्मणों को दक्षिणा दे तो अनिष्ट दूर होती है तथा पारिवारिक सुख-समृध्दि मिलती है श्रवण नक्षत्र में भगवान विष्णु का उत्तम प्रकार के गंध फल फूल दूध दही धूप व दीप आदि से पूजन कर व्रत करें तो इच्छित सफलता मिलती है
आज मकर संक्रांति विशेष
* मकर संक्रांति की पौराणिक व्रत कथा और इसका विशेष महत्व :-
* परिचय :-
इसका महत्त्व जाने बिना इस व्रत को करते हैं तो इस व्रत को करना बेकार होता है मकर संक्रांति का जो पर्व है प्रत्येक वर्ष जनवरी माह में आता है यह जो पर्व है विशेष रूप से प्रकाश के देवता सूर्य देवता को समर्पित होता है संपूर्ण वर्ष में छठ पूजा और मकर संक्रांति जिनका सीधा संबंध सूर्य देव से होता है तो इन दोनों ही पर्व पर सूर्य देव को आराधना करना, दान करना, स्नान करना और पूजन आदि कार्य करना शुभ माना जाता है सूर्य देव को प्रसन्न करके आराधक इन दिनों अपनी मनोकामनाओं को पूरी करते हैं वास्तव में इस दिन को शरद ऋतु में बदलाव होना शुरु हो जाता है इसे मौसम में परिवर्तन के रूप में देखा जाता है तो दिन के वातावरण में तापमान इसमें बढ़ना आरंभ हो जाता है और सर्दियां इसमें कम होने लगती है
मकर संक्रांति का जो सापतिक अर्थ है मकर राशि में सूर्य के प्रवेश से होता है तो 12 महीनों में सूर्य 12 राशियों में भ्रमण करते हैं इस प्रकार सूर्य 1 महीने में एक राशि में रहते है सूर्य का यह जो राशि भ्रमण है राशि परिवर्तन है जो अप्रेल माह में मेष राशि से आरंभ होता है सूर्य का राशि बदलना ही संक्रांति कहलाता है मकर राशि सूर्य के पुत्र शनि की राशि है इसलिए जब सूर्य का मिलन अपने पुत्र से होता है तो वह विशेष हो जाता है मकर शंक्रांति इस लिए भी विशेष मानी जाती है क्योंकि इस दिन सूर्य देव दक्षिणायन से निकल कर के उत्तरायन में आ जाते हैं सूर्य का उत्तरायन आना धार्मिक शुभ कार्यों के लिए शुभता की सूचना देता है तो इस दिन के साथ ही शुभ कार्य मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाता है शुभ मुहूर्त आरंभ हो जाते है तो संक्रांति की तिथि सूर्य के राशि बदलने से निर्धारित होती है मकर संक्रांति को श्रद्धा विश्वास और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है सामान्यतः सभी पर्व, व्रत, चंद्र गोचर, तिथि, नक्षत्र, योग, और कर्ण अर्थात पंचांग के आधार पर तय किए जाते हैं यही वजह है कि कभी-कभी मकर संक्रांति 14 जनवरी पर कभी-कभी 15 जनवरी को मनाई जाती है
* धार्मिक महत्व क्या है :-
धार्मिक रूप से इस दिन भगवान सूर्य के लिए व्रत करके पवित्र नदियां और सरोवर ओर संगम स्थल पर स्नान करना दान करना पुननीय काम करना बड़ा ही शुभ माना जाता है सूर्य नमस्कार सूर्य देवता को अर्घ्य देना सूर्य देवता के मंत्र का जाप करना सूर्य की प्रार्थना करना और उस दिन सूर्य देवता के आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करना शुभ माना जाता है इससे सूर्यदेव अति प्रसन्न होते हैं और शांति के कार्य की इस अवसर पर करने से शुभ और मंगलकारी माने जाते हैं तो मकर संक्रांति के दिन ही दक्षिण भारत का पोंगल पर्व भी इसी दिन मनाया जाता है उत्तर भारत में से मकर संक्रांति के नाम से, कर्नाटक में संक्रांति के नाम से, केरल में पोंगल के नाम से और पंजाब और हरियाणा में मार्गमाह संक्रांति के नाम से एवं राजस्थान में इस पर्व को उत्तरायण और उत्तराखंड में जो यह पर्व है उत्तरायणी के नाम से मनाया जाता है
* मकर संक्रांति की पौराणिक कथा इस प्रकार :-
१. पौराणिक कथा को सुनने के कई लाभ हम को प्राप्त होते हैं तो मकर संक्रांति का स्वामीत्व शनि ग्रह के पास है तो मकर संक्रांति से जुड़े पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र से मिलने उनके घर जाते हैं वैसे सभी को ज्ञान है सूर्य भगवान शनि के पिता और पिता और पुत्र दोनों में शत्रु और संबंध भी है वैदिक ज्योतिष के अनुसार सूर्य और शनि का एक साथ होना भाव की शुभता और विशेषताओं मे कमी करता है फिर भी सूर्य का शनि ग्रह की राशि में जाने पर पुत्र को पिता का सम्मान और आदर भाव करने का अवसर मिलता है और सूर्य शनि से संबंधित अशुभ योगो में कमी करने के लिए सबसे उपयुक्त दिन माना जाता है
२. तो इस दिन से जुड़ी एक अन्य कथा के अनुसार इस दिन देवी गंगा जी भागीरथ के साथ सागर से जा मिली थी इसी के साथ गंगा जी की यात्रा पूर्ण हुई थी इसके अलावा इस दिन भागीरथ जी ने अपने पूर्वजों के मोक्ष के लिए तर्पण का कार्य संपन्न किया था तो भागीरथ जी के पितरों का तर्पण स्वीकार करने के बाद ही गंगा जी सागर में समाहित हो गई थी इसी महत्व को ध्यान में रखते हुए इस दिन गंगातट और गंगासागर पर तर्पण कार्य पूर्ण करने का इस दिन विशेष महत्व होता है
३. और इसके अलावा एक और कथा के अनुसार इस दिन महाभारत युद्ध में घायल भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने के पश्चात परलोक गमन के लिए अपने प्राण त्यागे थे यह दिन भीष्म पितामह ने लिया था इसी कारण इस दिन को काफी महत्व दिया गया है
४. और एक कथा के अनुसार इस दिन देवताओं और दानवों के मध्य युध्द हुआ था देवताओं ने दानवों का अंत कर दिया था और सदैव के लिए अशुभ शक्तियों का नाश कर दिया था
५. तो मकर संक्रांति से एक और कथा जुड़ी हुई है जिसके अनुसार माता यशोदा ने भगवान श्री कृष्ण को पुत्र प्राप्ति के लिए व्रत किया था
इन पौराणिक कथाओं के अनुसार यह जो पर्व है सूर्य देव की शुभता की प्राप्ति के लिए सारे देश भर में पूर्ण श्रद्धा विश्वास के साथ मनाया जाता है और मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य नारायण का विशेष आशीर्वाद पाने के लिए उनकी कृपा को पाने के लिए इस प्रकार से दान करना शुभ माना गया है नव ग्रहो मे सूर्य को राजा का स्थान दिया गया है यानी जिन लोगों की कुंडली में सूर्य ग्रह अच्छे होते हैं उन लोगों को जीवन में उच्च पद की प्राप्ति होती है हर प्रकार से सम्मान मिलता है सुख समृद्धि उनकी बढ़ती रहती है तो सूर्य ग्रह जो है उच्च पद, सरकारी क्षेत्र, उच्च अधिकारी, प्रशासनिक कार्य, आत्मा, आत्म बल,आत्म विश्वास और श्रद्धा के कारक ग्रह कहे गए है सूर्य की शुभता प्राप्त किए बिना इन विषयों में अनुकूलता प्राप्त करना संभव नहीं होता है तो यही वजह है जिसके कारण विभिन्न पुराणों में मकर संक्रांति के पर्व पर दान धर्म कार्य करने के लिए विशेष रूप से बताया गया है
पौराणिक महत्व के अनुसार मकर संक्रांति पर शुद्ध घी एवं काले तिलो और कंबल आदि का दान करने से व्यक्ति धन-धान्य जीवन मे कभी कमी नहीं आती है और सुख समृद्धि उसकी बनी रहती है ऐसे व्यक्ति को जीवन में सभी प्रकार के सुख साधन प्राप्त होते हैं साथ ही ऐसा व्यक्ति जीवन में सुख शांति के साथ उसका जीवन व्यतीत होता है इसके अलावा अन्य धर्मो ग्रंथो में ऐसा बताया है कि मकर संक्रांति के दिन शनि ग्रह के दोषों का निवारण और शनि शांति करने के लिए सफेद तिल से बनी हुई वस्तुओं से देवताओं को भोग लगाना चाहिए और काले तिल से पितरों का तर्पण करने से पितरों की आत्मा को इस दिन शांति मिलती है तो भगवान आशुतोष को प्रसन्न करने से भी शनि देव शीघ्र प्रसन्न होते हैं इसके लिए शुद्ध जल से शिवलिंग का अभिषेक करने से इस दिन बहुत ही शुभ फल की प्राप्ति होती है तो सूर्य ग्रह और ग्रह दोनों की शुभता प्राप्ति के लिए ब्राह्मणों को नया पंचांग दान में दिया जाता है जो बड़ा ही शुभ मंगलकारी माना जाता है
मकर संक्रांति पर्व शनि और सूर्य ग्रह से संबंधित पर्व होने के कारण इस दिन की अधिकतर क्रियाओं में गुड़ और तिल का प्रयोग करने का प्रयास करना चाहिए जहां तक संभव हो उस दिन प्रातः काल से नित्य क्रियाओ से निवृत होने के बाद स्नान के जल में थोड़े से तिल मिलाकर के उससे स्नान करना चाहिए और उबटन बनाते समय भी उस में तिल आदि शामिल करना चाहिए पूजा पाठ में हवन में तिल और युक्त जल का प्रयोग करना चाहिए तिल मिलाकर ही देवताओं का प्रसाद तैयार करना चाहिए इस प्रकार जो व्यक्ति इस दिन तिल का प्रयोग करता है उसके सभी पापों का नाश हो जाता है और पुर्ण्य फल की विशेष रूप से उस व्यक्ति को प्राप्ति होती है
इस दिन के विषय में ऐसी मान्यताएं है की बेटी और दामाद को बुलाकर आदर सत्कार करके उनको वस्त्र दान आदि देना चाहिए किसी गरीब या पुजारी को धन व वस्त्र अन्न का दान और तिल और गुड़ के साथ करना चाहिए और इस दिन तिल से बनी हुई वस्तुओं का सेवन करने का प्रचलन है तिल से बने हुए लड्डू मिठाई अन्य खाद्य वस्तुए बनाकर के अपने मित्रों सगे संबंधियो और निकट व्यक्तियों को उपहार के रूप में देना चाहिए इसके अलावा इसका स्वयं भी परिवार सहित सेवन करना चाहिए प्रसाद के रूप में और इस दिन के महत्व के विषय में ऐसा कहा जाता है इस दिन दान करते समय विनीत भाव से अपने अहंकार का दान भी करना चाहिए प्रत्येक शुभ अवसर की तरह इस दिन करोड़ों लाखों लोग धर्म कार्य करते हैं परन्तु सबकी आस्था और विश्वास एक जैसा नहीं होने के कारण सब को मिलने वाले फलों की प्राप्ति का अलग-अलग प्रकार होता है यानी जैसी जिसकी भावना होती है वैसा ही फल उस व्यक्ति को मिलता है तो कोई भी शुभ कार्य इस भावना के साथ नहीं करना चिहिए की इसके बदले हमें पुण्य शुभ फलों की प्राप्ति हो कोई भी धर्म कार्य तभी फलदायक होता है
जब उसमें निस्वार्थ भाव जुड़ा होता है अन्यथा किए गए कार्य के फल नष्ट हो जाते हैं साथ ही कोई भी दान इस भावना के साथ नहीं करना चाहिए कि हमने इतना अधिक दान कर दिया है दान की गई वस्तुओं के खर्च का भारी दबाव महसूस नहीं करना चाहिए ना ही किसी से आपको चर्चा करना चाहिए तो यह भाव मन में आना नहीं चाहिए हम इतने दानी है इस अहंकार भाव के साथ किया गया दान निष्फल हो जाता है दान सदैव अपनी मेहनत और ईमानदारी की कमाई से ही करना चाहिए और गलत तरीको से धन अर्जित करके उसका दान हमको कभी नहीं करना चाहिए उसका कोई फल हमें प्राप्त नहीं होता
* गुरुवार व्रत की कथा *
* पूजा विधि :-
इस दिन बृहस्पतेश्वर महादेव जी की पूजा होती है । दिन में एक समय ही भोजन करें । पीले वस्त्र धारण करें ।भोजन भी चने की दाल का होना चाहिए, नमक नही खाना चाहिए । पीले रंग के फुल, चने की दाल, पीले कपड़े तथा पीले चन्दन से पूजा करनी चाहिए। पूजन के पश्चात् कथा सुननी चाहिए । इस व्रत को करने से बृहस्पति जी अति प्रसन्न होते है तथा धन और विद्या का लाभ होता है । स्त्रियो के लिए यह व्रत अति आवश्यक है । इस व्रत मे केले का पूजन होता है ।
* कथा प्रारम्भ :-
किसी गांव मे एक साहूकार रहता था, जिसके घर मे अनन, वस्त्र और धन किसी की कोई कमी नही थी, परन्तु उसकी स्त्री बहुत ही कृपण थी। किसी कसी भिक्षाथी को कुछ नही देती, सारे दिन घर के कामकाज मे लगी रहती एक समय एक साधु-महात्मा बृहस्पतिवार के दिन उसके द्वार पर आये और भिक्षा की याचना की । स्त्री उस समय घर के आंगन को लीप रही थी
इस कारण साधु महाराज से कहने लगी कि महाराज इस समय तो मै घर लीप रही हूँ आपको कुछ नही दे सकती, फिर किसी अवकाश समय आना । साधु महात्मा खाली हाथ चले गए। कुछ दिन के पश्चात् वही साधु महात्मा आए उसी तरह भिक्षा मांगी । साहूकारनी उस समय लड़के को खिला रही थी । कहने लगी- महाराज मै क्या करूँ अवकाश नही है, इसलिए आपको भिक्षा नही दे सकती ।
तीसरी बार महात्मा आए तो उसने उन्हे उसी तरह टालना चाहा परन्तु महात्मा जी कहने लगे कि यदि तुमको बिल्कुल ही अवकाश हो जाए तो क्या मुझको दोगी ? साहुकारनी कहने लगी कि हाँ महाराज यदि ऐसा हो जाए तो आपकी बड़ी कृपा होगी । साधु- महात्मा जी कहने लगे कि अच्छा मै एक उपाय बताता हूँ। तुम बृहस्पतिवार को दिन चढ़े उठो और सारे घर मे झाडू लगा कर कूड़ा एक कोने में जमा करके रख दो । घर मे चौका इत्यादि मन लगाओ। फिर स्नान आदि करके घर वालो से कह दो, उस दिन सब हजामत अवश्य बनवाये ।
रसोई बनाकर चूल्हे के पीछे रखा करो, सामने कभी रक्खो । सांयकाल को अन्धेरा होने के बाद दीपक जलाओ तथा बृहस्पतिवार को पीले वस्त्र मत धारण करो, न पीले रंग की चीजो का भोजन करो । यदि ऐसा करोगे तो तुमको घर का कोई काम नही करना पड़ेगा । साहूकारनी ने ऐसा ही किया । बृहस्पतिवार को दिन चढे उठी, झाडू लगाकर कूड़े को घर के एक कोने में जमा करके रख दिया । पुरूषो ने हजामत बनवाई । भोजन बनवाकर चूल्हे के पीछे रखा ।
वह सब बृहस्पतिवारो को ऐसा ही करती रही । अब कुछ काल : बाद उसके घर मे खाने को दाना न रहा । थोड़े दिनो मे महात्मा फिर आए और भिक्षा मांगी परन्तु सेठानी ने कहा महाराज मेरे घर मे खाने को अन्न् नही है, आपको क्या दे सकती हूँ । तब महात्मा ने कहा कि जब तुम्हारे घर मे सब कुछ था तब भी कुछ नही देती थी। अब पूरा-पूरा अवकाश है तब भी कुछ नही दे रही हो, तुम क्या चाहती हो वह कहो ?
तब सेठानी ने हाथ जोड़ कर कहा की महाराज अब कोई ऐसा उपाय बताओ कि मेरे पहले जैसा धन-धान्य हो जाय । अब मै प्रतिज्ञा करती हूँ कि अवश्यमेव आप जैसा कहेगे वैसा ही करूंगी । तब महात्मा जी बोले - "बृहस्पतिवार को प्रात: काल उठकर स्नानादि से निवृत हो घर को गौ के गोबर से लीपो तथा घर के पुरुष हजामत न बनवाये ।
भूखो को अन्न-जल देती रहा करो । ठीक सांय काल दीपक जलाओ । यदि ऐसा करोगी तो तुम्हारी सब मनोकामनाएं भगवान् बृहस्पति जी की कृपा से पूर्ण होगी। सेठानी ने ऐसा ही किया और उसके घर मे धन-धान्य वैसा ही होगा जैसा पहले था । इस प्रकार भगवान् बृहस्पति जी की कृपा से अनेक प्रकार के सुख भोगकर दीर्घकाल तक जीवित रही !
आज विशेष :-
* परिचय :-
मकर संक्रांति का जो सापतिक अर्थ है मकर राशि में सूर्य के प्रवेश से होता है तो 12 महीनों में सूर्य 12 राशियों में भ्रमण करते हैं इस प्रकार सूर्य 1 महीने में एक राशि में रहते है सूर्य का यह जो राशि भ्रमण है राशि परिवर्तन है जो अप्रेल माह में मेष राशि से आरंभ होता है सूर्य का राशि बदलना ही संक्रांति कहलाता है मकर राशि सूर्य के पुत्र शनि की राशि है इसलिए जब सूर्य का मिलन अपने पुत्र से होता है तो वह विशेष हो जाता है मकर शंक्रांति इस लिए भी विशेष मानी जाती है क्योंकि इस दिन सूर्य देव दक्षिणायन से निकल कर के उत्तरायन में आ जाते हैं सूर्य का उत्तरायन आना धार्मिक शुभ कार्यों के लिए शुभता की सूचना देता है तो इस दिन के साथ ही शुभ कार्य मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाता है शुभ मुहूर्त आरंभ हो जाते है तो संक्रांति की तिथि सूर्य के राशि बदलने से निर्धारित होती है मकर संक्रांति को श्रद्धा विश्वास और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है सामान्यतः सभी पर्व, व्रत, चंद्र गोचर, तिथि, नक्षत्र, योग, और कर्ण अर्थात पंचांग के आधार पर तय किए जाते हैं यही वजह है कि कभी-कभी मकर संक्रांति 14 जनवरी पर कभी-कभी 15 जनवरी को मनाई जाती है
* धार्मिक महत्व क्या है :-
धार्मिक रूप से इस दिन भगवान सूर्य के लिए व्रत करके पवित्र नदियां और सरोवर ओर संगम स्थल पर स्नान करना दान करना पुननीय काम करना बड़ा ही शुभ माना जाता है सूर्य नमस्कार सूर्य देवता को अर्घ्य देना सूर्य देवता के मंत्र का जाप करना सूर्य की प्रार्थना करना और उस दिन सूर्य देवता के आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करना शुभ माना जाता है इससे सूर्यदेव अति प्रसन्न होते हैं और शांति के कार्य की इस अवसर पर करने से शुभ और मंगलकारी माने जाते हैं तो मकर संक्रांति के दिन ही दक्षिण भारत का पोंगल पर्व भी इसी दिन मनाया जाता है उत्तर भारत में से मकर संक्रांति के नाम से, कर्नाटक में संक्रांति के नाम से, केरल में पोंगल के नाम से और पंजाब और हरियाणा में मार्गमाह संक्रांति के नाम से एवं राजस्थान में इस पर्व को उत्तरायण और उत्तराखंड में जो यह पर्व है उत्तरायणी के नाम से मनाया जाता है
* मकर संक्रांति की पौराणिक कथा इस प्रकार :-
१. पौराणिक कथा को सुनने के कई लाभ हम को प्राप्त होते हैं तो मकर संक्रांति का स्वामीत्व शनि ग्रह के पास है तो मकर संक्रांति से जुड़े पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र से मिलने उनके घर जाते हैं वैसे सभी को ज्ञान है सूर्य भगवान शनि के पिता और पिता और पुत्र दोनों में शत्रु और संबंध भी है वैदिक ज्योतिष के अनुसार सूर्य और शनि का एक साथ होना भाव की शुभता और विशेषताओं मे कमी करता है फिर भी सूर्य का शनि ग्रह की राशि में जाने पर पुत्र को पिता का सम्मान और आदर भाव करने का अवसर मिलता है और सूर्य शनि से संबंधित अशुभ योगो में कमी करने के लिए सबसे उपयुक्त दिन माना जाता है
२. तो इस दिन से जुड़ी एक अन्य कथा के अनुसार इस दिन देवी गंगा जी भागीरथ के साथ सागर से जा मिली थी इसी के साथ गंगा जी की यात्रा पूर्ण हुई थी इसके अलावा इस दिन भागीरथ जी ने अपने पूर्वजों के मोक्ष के लिए तर्पण का कार्य संपन्न किया था तो भागीरथ जी के पितरों का तर्पण स्वीकार करने के बाद ही गंगा जी सागर में समाहित हो गई थी इसी महत्व को ध्यान में रखते हुए इस दिन गंगातट और गंगासागर पर तर्पण कार्य पूर्ण करने का इस दिन विशेष महत्व होता है
३. और इसके अलावा एक और कथा के अनुसार इस दिन महाभारत युद्ध में घायल भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने के पश्चात परलोक गमन के लिए अपने प्राण त्यागे थे यह दिन भीष्म पितामह ने लिया था इसी कारण इस दिन को काफी महत्व दिया गया है
४. और एक कथा के अनुसार इस दिन देवताओं और दानवों के मध्य युध्द हुआ था देवताओं ने दानवों का अंत कर दिया था और सदैव के लिए अशुभ शक्तियों का नाश कर दिया था
५. तो मकर संक्रांति से एक और कथा जुड़ी हुई है जिसके अनुसार माता यशोदा ने भगवान श्री कृष्ण को पुत्र प्राप्ति के लिए व्रत किया था
इन पौराणिक कथाओं के अनुसार यह जो पर्व है सूर्य देव की शुभता की प्राप्ति के लिए सारे देश भर में पूर्ण श्रद्धा विश्वास के साथ मनाया जाता है और मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य नारायण का विशेष आशीर्वाद पाने के लिए उनकी कृपा को पाने के लिए इस प्रकार से दान करना शुभ माना गया है नव ग्रहो मे सूर्य को राजा का स्थान दिया गया है यानी जिन लोगों की कुंडली में सूर्य ग्रह अच्छे होते हैं उन लोगों को जीवन में उच्च पद की प्राप्ति होती है हर प्रकार से सम्मान मिलता है सुख समृद्धि उनकी बढ़ती रहती है तो सूर्य ग्रह जो है उच्च पद, सरकारी क्षेत्र, उच्च अधिकारी, प्रशासनिक कार्य, आत्मा, आत्म बल,आत्म विश्वास और श्रद्धा के कारक ग्रह कहे गए है सूर्य की शुभता प्राप्त किए बिना इन विषयों में अनुकूलता प्राप्त करना संभव नहीं होता है तो यही वजह है जिसके कारण विभिन्न पुराणों में मकर संक्रांति के पर्व पर दान धर्म कार्य करने के लिए विशेष रूप से बताया गया है
पौराणिक महत्व के अनुसार मकर संक्रांति पर शुद्ध घी एवं काले तिलो और कंबल आदि का दान करने से व्यक्ति धन-धान्य जीवन मे कभी कमी नहीं आती है और सुख समृद्धि उसकी बनी रहती है ऐसे व्यक्ति को जीवन में सभी प्रकार के सुख साधन प्राप्त होते हैं साथ ही ऐसा व्यक्ति जीवन में सुख शांति के साथ उसका जीवन व्यतीत होता है इसके अलावा अन्य धर्मो ग्रंथो में ऐसा बताया है कि मकर संक्रांति के दिन शनि ग्रह के दोषों का निवारण और शनि शांति करने के लिए सफेद तिल से बनी हुई वस्तुओं से देवताओं को भोग लगाना चाहिए और काले तिल से पितरों का तर्पण करने से पितरों की आत्मा को इस दिन शांति मिलती है तो भगवान आशुतोष को प्रसन्न करने से भी शनि देव शीघ्र प्रसन्न होते हैं इसके लिए शुद्ध जल से शिवलिंग का अभिषेक करने से इस दिन बहुत ही शुभ फल की प्राप्ति होती है तो सूर्य ग्रह और ग्रह दोनों की शुभता प्राप्ति के लिए ब्राह्मणों को नया पंचांग दान में दिया जाता है जो बड़ा ही शुभ मंगलकारी माना जाता है
इस दिन के विषय में ऐसी मान्यताएं है की बेटी और दामाद को बुलाकर आदर सत्कार करके उनको वस्त्र दान आदि देना चाहिए किसी गरीब या पुजारी को धन व वस्त्र अन्न का दान और तिल और गुड़ के साथ करना चाहिए और इस दिन तिल से बनी हुई वस्तुओं का सेवन करने का प्रचलन है तिल से बने हुए लड्डू मिठाई अन्य खाद्य वस्तुए बनाकर के अपने मित्रों सगे संबंधियो और निकट व्यक्तियों को उपहार के रूप में देना चाहिए इसके अलावा इसका स्वयं भी परिवार सहित सेवन करना चाहिए प्रसाद के रूप में और इस दिन के महत्व के विषय में ऐसा कहा जाता है इस दिन दान करते समय विनीत भाव से अपने अहंकार का दान भी करना चाहिए प्रत्येक शुभ अवसर की तरह इस दिन करोड़ों लाखों लोग धर्म कार्य करते हैं परन्तु सबकी आस्था और विश्वास एक जैसा नहीं होने के कारण सब को मिलने वाले फलों की प्राप्ति का अलग-अलग प्रकार होता है यानी जैसी जिसकी भावना होती है वैसा ही फल उस व्यक्ति को मिलता है तो कोई भी शुभ कार्य इस भावना के साथ नहीं करना चिहिए की इसके बदले हमें पुण्य शुभ फलों की प्राप्ति हो कोई भी धर्म कार्य तभी फलदायक होता है
आज वज्र योग में कंबल दान करना शुभ फलदायी होता है गुरुवार को बृहस्पति भगवान का पीले गंध पुष्प पीतांबर से पूजन कर ब्राह्मणों को पीली गाय के घी में बनाए पीले धान्य के प्रदार्थो का भोजन कराकर स्वयं भोजन करें और ब्राह्मणों को दक्षिणा दे तो अनिष्ट दूर होती है तथा पारिवारिक सुख-समृध्दि मिलती है श्रवण नक्षत्र में भगवान विष्णु का उत्तम प्रकार के गंध फल फूल दूध दही धूप व दीप आदि से पूजन कर व्रत करें तो इच्छित सफलता मिलती है
आज मकर संक्रांति विशेष
* मकर संक्रांति की पौराणिक व्रत कथा और इसका विशेष महत्व :-
* परिचय :-
इसका महत्त्व जाने बिना इस व्रत को करते हैं तो इस व्रत को करना बेकार होता है मकर संक्रांति का जो पर्व है प्रत्येक वर्ष जनवरी माह में आता है यह जो पर्व है विशेष रूप से प्रकाश के देवता सूर्य देवता को समर्पित होता है संपूर्ण वर्ष में छठ पूजा और मकर संक्रांति जिनका सीधा संबंध सूर्य देव से होता है तो इन दोनों ही पर्व पर सूर्य देव को आराधना करना, दान करना, स्नान करना और पूजन आदि कार्य करना शुभ माना जाता है सूर्य देव को प्रसन्न करके आराधक इन दिनों अपनी मनोकामनाओं को पूरी करते हैं वास्तव में इस दिन को शरद ऋतु में बदलाव होना शुरु हो जाता है इसे मौसम में परिवर्तन के रूप में देखा जाता है तो दिन के वातावरण में तापमान इसमें बढ़ना आरंभ हो जाता है और सर्दियां इसमें कम होने लगती है
मकर संक्रांति का जो सापतिक अर्थ है मकर राशि में सूर्य के प्रवेश से होता है तो 12 महीनों में सूर्य 12 राशियों में भ्रमण करते हैं इस प्रकार सूर्य 1 महीने में एक राशि में रहते है सूर्य का यह जो राशि भ्रमण है राशि परिवर्तन है जो अप्रेल माह में मेष राशि से आरंभ होता है सूर्य का राशि बदलना ही संक्रांति कहलाता है मकर राशि सूर्य के पुत्र शनि की राशि है इसलिए जब सूर्य का मिलन अपने पुत्र से होता है तो वह विशेष हो जाता है मकर शंक्रांति इस लिए भी विशेष मानी जाती है क्योंकि इस दिन सूर्य देव दक्षिणायन से निकल कर के उत्तरायन में आ जाते हैं सूर्य का उत्तरायन आना धार्मिक शुभ कार्यों के लिए शुभता की सूचना देता है तो इस दिन के साथ ही शुभ कार्य मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाता है शुभ मुहूर्त आरंभ हो जाते है तो संक्रांति की तिथि सूर्य के राशि बदलने से निर्धारित होती है मकर संक्रांति को श्रद्धा विश्वास और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है सामान्यतः सभी पर्व, व्रत, चंद्र गोचर, तिथि, नक्षत्र, योग, और कर्ण अर्थात पंचांग के आधार पर तय किए जाते हैं यही वजह है कि कभी-कभी मकर संक्रांति 14 जनवरी पर कभी-कभी 15 जनवरी को मनाई जाती है
* धार्मिक महत्व क्या है :-
धार्मिक रूप से इस दिन भगवान सूर्य के लिए व्रत करके पवित्र नदियां और सरोवर ओर संगम स्थल पर स्नान करना दान करना पुननीय काम करना बड़ा ही शुभ माना जाता है सूर्य नमस्कार सूर्य देवता को अर्घ्य देना सूर्य देवता के मंत्र का जाप करना सूर्य की प्रार्थना करना और उस दिन सूर्य देवता के आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करना शुभ माना जाता है इससे सूर्यदेव अति प्रसन्न होते हैं और शांति के कार्य की इस अवसर पर करने से शुभ और मंगलकारी माने जाते हैं तो मकर संक्रांति के दिन ही दक्षिण भारत का पोंगल पर्व भी इसी दिन मनाया जाता है उत्तर भारत में से मकर संक्रांति के नाम से, कर्नाटक में संक्रांति के नाम से, केरल में पोंगल के नाम से और पंजाब और हरियाणा में मार्गमाह संक्रांति के नाम से एवं राजस्थान में इस पर्व को उत्तरायण और उत्तराखंड में जो यह पर्व है उत्तरायणी के नाम से मनाया जाता है
* मकर संक्रांति की पौराणिक कथा इस प्रकार :-
१. पौराणिक कथा को सुनने के कई लाभ हम को प्राप्त होते हैं तो मकर संक्रांति का स्वामीत्व शनि ग्रह के पास है तो मकर संक्रांति से जुड़े पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र से मिलने उनके घर जाते हैं वैसे सभी को ज्ञान है सूर्य भगवान शनि के पिता और पिता और पुत्र दोनों में शत्रु और संबंध भी है वैदिक ज्योतिष के अनुसार सूर्य और शनि का एक साथ होना भाव की शुभता और विशेषताओं मे कमी करता है फिर भी सूर्य का शनि ग्रह की राशि में जाने पर पुत्र को पिता का सम्मान और आदर भाव करने का अवसर मिलता है और सूर्य शनि से संबंधित अशुभ योगो में कमी करने के लिए सबसे उपयुक्त दिन माना जाता है
२. तो इस दिन से जुड़ी एक अन्य कथा के अनुसार इस दिन देवी गंगा जी भागीरथ के साथ सागर से जा मिली थी इसी के साथ गंगा जी की यात्रा पूर्ण हुई थी इसके अलावा इस दिन भागीरथ जी ने अपने पूर्वजों के मोक्ष के लिए तर्पण का कार्य संपन्न किया था तो भागीरथ जी के पितरों का तर्पण स्वीकार करने के बाद ही गंगा जी सागर में समाहित हो गई थी इसी महत्व को ध्यान में रखते हुए इस दिन गंगातट और गंगासागर पर तर्पण कार्य पूर्ण करने का इस दिन विशेष महत्व होता है
३. और इसके अलावा एक और कथा के अनुसार इस दिन महाभारत युद्ध में घायल भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने के पश्चात परलोक गमन के लिए अपने प्राण त्यागे थे यह दिन भीष्म पितामह ने लिया था इसी कारण इस दिन को काफी महत्व दिया गया है
४. और एक कथा के अनुसार इस दिन देवताओं और दानवों के मध्य युध्द हुआ था देवताओं ने दानवों का अंत कर दिया था और सदैव के लिए अशुभ शक्तियों का नाश कर दिया था
५. तो मकर संक्रांति से एक और कथा जुड़ी हुई है जिसके अनुसार माता यशोदा ने भगवान श्री कृष्ण को पुत्र प्राप्ति के लिए व्रत किया था
इन पौराणिक कथाओं के अनुसार यह जो पर्व है सूर्य देव की शुभता की प्राप्ति के लिए सारे देश भर में पूर्ण श्रद्धा विश्वास के साथ मनाया जाता है और मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य नारायण का विशेष आशीर्वाद पाने के लिए उनकी कृपा को पाने के लिए इस प्रकार से दान करना शुभ माना गया है नव ग्रहो मे सूर्य को राजा का स्थान दिया गया है यानी जिन लोगों की कुंडली में सूर्य ग्रह अच्छे होते हैं उन लोगों को जीवन में उच्च पद की प्राप्ति होती है हर प्रकार से सम्मान मिलता है सुख समृद्धि उनकी बढ़ती रहती है तो सूर्य ग्रह जो है उच्च पद, सरकारी क्षेत्र, उच्च अधिकारी, प्रशासनिक कार्य, आत्मा, आत्म बल,आत्म विश्वास और श्रद्धा के कारक ग्रह कहे गए है सूर्य की शुभता प्राप्त किए बिना इन विषयों में अनुकूलता प्राप्त करना संभव नहीं होता है तो यही वजह है जिसके कारण विभिन्न पुराणों में मकर संक्रांति के पर्व पर दान धर्म कार्य करने के लिए विशेष रूप से बताया गया है
पौराणिक महत्व के अनुसार मकर संक्रांति पर शुद्ध घी एवं काले तिलो और कंबल आदि का दान करने से व्यक्ति धन-धान्य जीवन मे कभी कमी नहीं आती है और सुख समृद्धि उसकी बनी रहती है ऐसे व्यक्ति को जीवन में सभी प्रकार के सुख साधन प्राप्त होते हैं साथ ही ऐसा व्यक्ति जीवन में सुख शांति के साथ उसका जीवन व्यतीत होता है इसके अलावा अन्य धर्मो ग्रंथो में ऐसा बताया है कि मकर संक्रांति के दिन शनि ग्रह के दोषों का निवारण और शनि शांति करने के लिए सफेद तिल से बनी हुई वस्तुओं से देवताओं को भोग लगाना चाहिए और काले तिल से पितरों का तर्पण करने से पितरों की आत्मा को इस दिन शांति मिलती है तो भगवान आशुतोष को प्रसन्न करने से भी शनि देव शीघ्र प्रसन्न होते हैं इसके लिए शुद्ध जल से शिवलिंग का अभिषेक करने से इस दिन बहुत ही शुभ फल की प्राप्ति होती है तो सूर्य ग्रह और ग्रह दोनों की शुभता प्राप्ति के लिए ब्राह्मणों को नया पंचांग दान में दिया जाता है जो बड़ा ही शुभ मंगलकारी माना जाता है
मकर संक्रांति पर्व शनि और सूर्य ग्रह से संबंधित पर्व होने के कारण इस दिन की अधिकतर क्रियाओं में गुड़ और तिल का प्रयोग करने का प्रयास करना चाहिए जहां तक संभव हो उस दिन प्रातः काल से नित्य क्रियाओ से निवृत होने के बाद स्नान के जल में थोड़े से तिल मिलाकर के उससे स्नान करना चाहिए और उबटन बनाते समय भी उस में तिल आदि शामिल करना चाहिए पूजा पाठ में हवन में तिल और युक्त जल का प्रयोग करना चाहिए तिल मिलाकर ही देवताओं का प्रसाद तैयार करना चाहिए इस प्रकार जो व्यक्ति इस दिन तिल का प्रयोग करता है उसके सभी पापों का नाश हो जाता है और पुर्ण्य फल की विशेष रूप से उस व्यक्ति को प्राप्ति होती है
इस दिन के विषय में ऐसी मान्यताएं है की बेटी और दामाद को बुलाकर आदर सत्कार करके उनको वस्त्र दान आदि देना चाहिए किसी गरीब या पुजारी को धन व वस्त्र अन्न का दान और तिल और गुड़ के साथ करना चाहिए और इस दिन तिल से बनी हुई वस्तुओं का सेवन करने का प्रचलन है तिल से बने हुए लड्डू मिठाई अन्य खाद्य वस्तुए बनाकर के अपने मित्रों सगे संबंधियो और निकट व्यक्तियों को उपहार के रूप में देना चाहिए इसके अलावा इसका स्वयं भी परिवार सहित सेवन करना चाहिए प्रसाद के रूप में और इस दिन के महत्व के विषय में ऐसा कहा जाता है इस दिन दान करते समय विनीत भाव से अपने अहंकार का दान भी करना चाहिए प्रत्येक शुभ अवसर की तरह इस दिन करोड़ों लाखों लोग धर्म कार्य करते हैं परन्तु सबकी आस्था और विश्वास एक जैसा नहीं होने के कारण सब को मिलने वाले फलों की प्राप्ति का अलग-अलग प्रकार होता है यानी जैसी जिसकी भावना होती है वैसा ही फल उस व्यक्ति को मिलता है तो कोई भी शुभ कार्य इस भावना के साथ नहीं करना चिहिए की इसके बदले हमें पुण्य शुभ फलों की प्राप्ति हो कोई भी धर्म कार्य तभी फलदायक होता है
जब उसमें निस्वार्थ भाव जुड़ा होता है अन्यथा किए गए कार्य के फल नष्ट हो जाते हैं साथ ही कोई भी दान इस भावना के साथ नहीं करना चाहिए कि हमने इतना अधिक दान कर दिया है दान की गई वस्तुओं के खर्च का भारी दबाव महसूस नहीं करना चाहिए ना ही किसी से आपको चर्चा करना चाहिए तो यह भाव मन में आना नहीं चाहिए हम इतने दानी है इस अहंकार भाव के साथ किया गया दान निष्फल हो जाता है दान सदैव अपनी मेहनत और ईमानदारी की कमाई से ही करना चाहिए और गलत तरीको से धन अर्जित करके उसका दान हमको कभी नहीं करना चाहिए उसका कोई फल हमें प्राप्त नहीं होता
* गुरुवार व्रत की कथा *
* पूजा विधि :-
इस दिन बृहस्पतेश्वर महादेव जी की पूजा होती है । दिन में एक समय ही भोजन करें । पीले वस्त्र धारण करें ।भोजन भी चने की दाल का होना चाहिए, नमक नही खाना चाहिए । पीले रंग के फुल, चने की दाल, पीले कपड़े तथा पीले चन्दन से पूजा करनी चाहिए। पूजन के पश्चात् कथा सुननी चाहिए । इस व्रत को करने से बृहस्पति जी अति प्रसन्न होते है तथा धन और विद्या का लाभ होता है । स्त्रियो के लिए यह व्रत अति आवश्यक है । इस व्रत मे केले का पूजन होता है ।
* कथा प्रारम्भ :-
किसी गांव मे एक साहूकार रहता था, जिसके घर मे अनन, वस्त्र और धन किसी की कोई कमी नही थी, परन्तु उसकी स्त्री बहुत ही कृपण थी। किसी कसी भिक्षाथी को कुछ नही देती, सारे दिन घर के कामकाज मे लगी रहती एक समय एक साधु-महात्मा बृहस्पतिवार के दिन उसके द्वार पर आये और भिक्षा की याचना की । स्त्री उस समय घर के आंगन को लीप रही थी
इस कारण साधु महाराज से कहने लगी कि महाराज इस समय तो मै घर लीप रही हूँ आपको कुछ नही दे सकती, फिर किसी अवकाश समय आना । साधु महात्मा खाली हाथ चले गए। कुछ दिन के पश्चात् वही साधु महात्मा आए उसी तरह भिक्षा मांगी । साहूकारनी उस समय लड़के को खिला रही थी । कहने लगी- महाराज मै क्या करूँ अवकाश नही है, इसलिए आपको भिक्षा नही दे सकती ।
तीसरी बार महात्मा आए तो उसने उन्हे उसी तरह टालना चाहा परन्तु महात्मा जी कहने लगे कि यदि तुमको बिल्कुल ही अवकाश हो जाए तो क्या मुझको दोगी ? साहुकारनी कहने लगी कि हाँ महाराज यदि ऐसा हो जाए तो आपकी बड़ी कृपा होगी । साधु- महात्मा जी कहने लगे कि अच्छा मै एक उपाय बताता हूँ। तुम बृहस्पतिवार को दिन चढ़े उठो और सारे घर मे झाडू लगा कर कूड़ा एक कोने में जमा करके रख दो । घर मे चौका इत्यादि मन लगाओ। फिर स्नान आदि करके घर वालो से कह दो, उस दिन सब हजामत अवश्य बनवाये ।
रसोई बनाकर चूल्हे के पीछे रखा करो, सामने कभी रक्खो । सांयकाल को अन्धेरा होने के बाद दीपक जलाओ तथा बृहस्पतिवार को पीले वस्त्र मत धारण करो, न पीले रंग की चीजो का भोजन करो । यदि ऐसा करोगे तो तुमको घर का कोई काम नही करना पड़ेगा । साहूकारनी ने ऐसा ही किया । बृहस्पतिवार को दिन चढे उठी, झाडू लगाकर कूड़े को घर के एक कोने में जमा करके रख दिया । पुरूषो ने हजामत बनवाई । भोजन बनवाकर चूल्हे के पीछे रखा ।
वह सब बृहस्पतिवारो को ऐसा ही करती रही । अब कुछ काल : बाद उसके घर मे खाने को दाना न रहा । थोड़े दिनो मे महात्मा फिर आए और भिक्षा मांगी परन्तु सेठानी ने कहा महाराज मेरे घर मे खाने को अन्न् नही है, आपको क्या दे सकती हूँ । तब महात्मा ने कहा कि जब तुम्हारे घर मे सब कुछ था तब भी कुछ नही देती थी। अब पूरा-पूरा अवकाश है तब भी कुछ नही दे रही हो, तुम क्या चाहती हो वह कहो ?
तब सेठानी ने हाथ जोड़ कर कहा की महाराज अब कोई ऐसा उपाय बताओ कि मेरे पहले जैसा धन-धान्य हो जाय । अब मै प्रतिज्ञा करती हूँ कि अवश्यमेव आप जैसा कहेगे वैसा ही करूंगी । तब महात्मा जी बोले - "बृहस्पतिवार को प्रात: काल उठकर स्नानादि से निवृत हो घर को गौ के गोबर से लीपो तथा घर के पुरुष हजामत न बनवाये ।
भूखो को अन्न-जल देती रहा करो । ठीक सांय काल दीपक जलाओ । यदि ऐसा करोगी तो तुम्हारी सब मनोकामनाएं भगवान् बृहस्पति जी की कृपा से पूर्ण होगी। सेठानी ने ऐसा ही किया और उसके घर मे धन-धान्य वैसा ही होगा जैसा पहले था । इस प्रकार भगवान् बृहस्पति जी की कृपा से अनेक प्रकार के सुख भोगकर दीर्घकाल तक जीवित रही !