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शुक्रवार, 18 दिसंबर 2020

श्री हनुमान चालीसा


श्री हनुमान चालीसा




॥दोहा॥

श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥

बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन-कुमार ।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं हरहु क्लेश बिकार ॥


॥चौपाई॥

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥1

राम दूत अतुलित बल धामा ।
अंजनी-पुत्र पवनसुत नामा ॥2

महाबीर बिक्रम बजरंगी ।
कुमति निवार सुमति के संगी ॥3

कंचन बरन बिराज सुबेसा ।
कानन कुण्डल कुंचित केसा ॥4

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै ।
काँधे मूँज जनेउ साजै ॥5

शंकर सुवन केसरीनन्दन ।
तेज प्रताप महा जग बन्दन ॥6

बिद्यावान गुनी अति चातुर ।
राम काज करिबे को आतुर ॥7

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।
राम लखन सीता मन बसिया ॥8

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा ।
बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥9

भीम रूप धरि असुर सँहारे ।
रामचन्द्र के काज सँवारे ॥10

लाय संजीवनी लखन जियाये ।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥11

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई ।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥12

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं ।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ॥13

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।
नारद सारद सहित अहीसा ॥14

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते ।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥15

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा ।
राम मिलाय राज पद दीन्हा ॥16

तुह्मरो मंत्र बिभीषन माना ।
लंकेश्वर भए सब जग जाना ॥17

जुग सहस्त्र जोजन पर भानु ।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥18

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥18

दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥20

राम दुआरे तुम रखवारे ।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥21

सब सुख लहै तुम्हारी सरना ।
तुम रच्छक काहू को डर ना ॥22

आपन तेज सम्हारो आपै ।
तीनों लोक हाँक तें काँपै ॥23

भूत पिसाच निकट नहिं आवै ।
महाबीर जब नाम सुनावै ॥24

नासै रोग हरै सब पीरा ।
जपत निरन्तर हनुमत बीरा ॥25

संकट तें हनुमान छुड़ावै ।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥26

सब पर राम तपस्वी राजा ।
तिन के काज सकल तुम साजा ॥27

और मनोरथ जो कोई लावै ।
सोई अमित जीवन फल पावै ॥28

चारों जुग परताप तुम्हारा ।
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥29

साधु सन्त के तुम रखवारे ।
असुर निकन्दन राम दुलारे ॥30

अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता ।
अस बर दीन जानकी माता ॥31

राम रसायन तुम्हरे पासा ।
सदा रहो रघुपति के दासा ॥32

तुम्हरे भजन राम को पावै ।
जनम जनम के दुख बिसरावै ॥33

अन्त काल रघुबर पुर जाई ।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥34

और देवता चित्त न धरई ।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥35

संकट कटै मिटै सब पीरा ।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥36

जय जय जय हनुमान गोसाईं ।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥37

जो सत बार पाठ कर कोई ।
छूटहि बन्दि महा सुख होई ॥38

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा ।
होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥39

तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥40 

॥दोहा॥

पवनतनय संकट हरन मंगल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ॥