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रविवार, 4 अक्टूबर 2020

पशु-पक्षी जन्य महामारियों से निजात सम्भव

पशु-पक्षी जन्य महामारियों से निजात सम्भव

पशु-पक्षी जन्य महामारियों से निजात सम्भव :- ज्योतिष शास्त्र के संहिता-स्कंध में विश्वभर में घटने वाली शुभाशुभ घटनाओं को जानने की विभिन्न विधियों का विवेचन मिलता है।


विश्वभर में फैलने वाली महामारी, प्राकृतिक उपद्रवों आदि की दिव्य,भौम व अंतरिक्ष उत्पात के रूप में समय से पहले जानकारी प्राप्त कर, उन्हें शान्त करने या रोकने का प्रयास विभिन्न विधानों के द्वारा संभव है।


आचार्य वराहमिहिर के अनुसार मनुष्यों के अविनय से पाप एकत्र होते है, पाप के बढ़ने से उपद्रव होते है और अविनय से नाराज देवता एवं देवतांश(ग्रह-नक्षत्र) उन उत्पातों को उत्पन्न करते है।


गर्न्थो में महामारी या सामूहिक रोगों के फैलने से मनुष्य व जीव-जंतुओं के समूहों में मारे जाने के वर्णन मिलते है।


प्लेग(चूहों से फैलने वाली महामारी), मेड-काऊ (गौ-मांस खाने वाले लोगों को होने वाले रोग),मलेरिया व फाइलेरिया (मच्छरों से फैलने वाले रोग),बर्ड फ्लू(मुर्गों, मुर्गियों, बतखों आदि से फैलने वाले जहरीली प्रजाति के वायरस से उत्पन्न रोग) आदि महामारियों में अंडज, जलचर,वनचर,पशु-पक्षियों, किट-पतंगों,वृक्ष-वनस्पति व जलवायु के प्रभावित-प्रदूषित होने पर मनुष्यों तक में यह संक्रमण होने की आशंका चिंता का कारण बन जाती है।


बर्ड फ्लू एक ऐसी बीमारी है, जो मुर्गे-मुर्गियों, बतखों आदि को होती है। इनके पोल्ट्री फॉर्म के सम्पर्क में आने से इनके फैलने की संभावना बढ़ जाती है।


पशु-पक्षियों के विनाश के ज्योतिषीय योग :-


रवि-सोम के ग्रहण के समय में राहु(पृथ्वी की छाया) का रंग लाल रंग के समान होने पर पक्षियों को पीड़ा होती है।


'अंडजहा रविजो यदि चित्रः'-के अनुसार अंतरिक्ष में मन्द या यम की छाया यदि चित्र-विचित्र या अनेक रंग की दिखाई देता है, तो अंडजो(अंडे से उत्पन्न जीवों-मुर्गी,मुर्गा आदि) का, सोम यदि चार नक्षत्रों-ज्येष्ठा, मूल,पूर्वाषाढ़ा व उत्तराषाढ़ा के दक्षिण में होकर जाने पर जलचर जीवों का नाश होता है।


मकर राशि में रवि-सोम का ग्रहण से मछलियों का नाश होता है।


रवि का बिम्ब(छाया या प्रतिच्छाया) यदि काले रंग का दिखाई देता है तो किट से डर(मच्छर, कीड़े-मकोड़े व सूक्ष्म जीवों से उत्पन्न रोगों का डर) होता है।


सोम यदि दण्डकार दिखाई देता है तो या बुध हस्त से छह नक्षत्रों में योग-तारा को छेदकर घूमता हुवा चक्र को पूर्ण करे तो गायों को कष्ट होता है।


'कालमुख' :- यदि भौम जिस नक्षत्र में अस्त होता है, उससे तेरहवें या चौदहवें नक्षत्र में जाकर उल्टा चलने वाला हो जाये तो यह 'कालमुख' कहलाता है। इस प्रकार का भौम द्रंष्टि(सुअर,कुत्ता आदि) के लिए कष्टकारी होता है। यह योग पिग फ्लू आदि फैलाने में प्रभावशाली होता है।


मार्गशीर्ष वर्ष :- यदि मृगशिरा व आर्द्रा नक्षत्र में जीव का गमन होने का वर्ष को मार्गशीर्ष वर्ष कहलाता है। यह मार्गशीर्ष वर्ष जंगली जानवरों, चूहे,शलभ(टिडडी दल) व पक्षियों द्वारा मनुष्यों में रोग उत्पन्न करते हैं।


चित्रा नक्षत्र में स्थित भृगु अंडजो को कष्ट देता है।


पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में भृगु जल में उत्पन्न जीवों को कष्ट पहुंचा कर उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में आने वाले रोगों का प्रकोप को बढ़ाता है।


भृगु से आगे मन्द या शनैश्चर का गमन करने पर बिल्ली,हाथी,गधा,भैंस व सुअर नेत्र रोग व वायु विकार से नष्ट होते है।


भृगु से आगे बुध या सौम्य का गमन करने पर अश्व(घोड़े) व गौ का नाश होगा।


अश्विन नक्षत्र का मन्द या शनि अश्व व अश्व के उपचार करने वालों का नाश करता है।


'अश्रुमुख भौम' :- औदयिक(उदित) नक्षत्र से दशमे,ग्यारहवें व बारहवें नक्षत्रों में यदि भौम उल्टा चलने वाला हो तो यह 'अश्रुमुख भौम' कहलाता है। यह रसों  को खराब करके रोगों को बढ़ाता है।


यदि भौम रोहिणी नक्षत्र का भेदन करता है तो महामारी उत्पन्न हो जाती है।


भृगु चित्रांडजो(विभिन्न प्रकार के पक्षियों) तथा मन्द कौवे व गिद्ध आदि पक्षियों, पक्षियों का नाश करने वाले मनुष्यों ,सुअर पालने वालों आदि का प्रतिनिधि ग्रह है।


उदय काल में यदि निर्मल बिम्ब नहीं होने पर, विपुल-बिम्ब नहीं होने पर, निर्घात, उल्का धूलि व ग्रह युद्ध से हत होने पर, स्वराशिस्थ नहीं होने पर, उच्चगत या शुभ ग्रह से अदृष्ट या नहीं देखा जाने पर सम्बन्धित जीवों, पशु-पक्षियों का विनाश करते है।


रोहिणी,मृगशिरा व स्वाति नक्षत्र पशु,पक्षी व जलचर जीवों के प्रतिनिधि है। ये नक्षत्र मन्द से युत भौम के भेदन या वक्रगमन से दूषित ग्रहण-कालिक उल्का से हत, सोमकिरण से पीड़ित, स्वाभाविक उत्तम गुणों से रहित होने पर पीड़ित या उपहत कहलाते है। ऐसा होने पर प्रभावित पशु-पक्षियों का रोग आदि कारणों से सामूहिक विनाश होता है।


पशु-पक्षी जन्य महामारियों से निजात के उपाय :- शतभिषा नक्षत्र के उपहत होने पर सामूहिक रूप से सम्बंधित मनुष्यों में रोग संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।


जबकि शुभ प्रभावित शतभिषा नक्षत्र शुभ संकेत(रोग संक्रमण की संभावना में कमी) देता है। उपहत शतभिषा नक्षत्र सामूहिक परेशानी बढ़ाता है। उपरोक्त समस्त योगों का विचार कर पशु,पक्षी आदि की विकृतिजन्य उत्पात शांति का विधान कराना चाहिए 


'बर्ड फ्लू','मैड काऊ','पिग फ्लू' प्लेग आदि महामारियों का ज्योतिषीय योगों से पहले से अनुमान लगाकर विद्वान ब्राह्मणों से शांति-विधानोक्त हवन,पांच ब्राह्मणों से 'देवाः कपोत' आदि मन्त्रों का जाप, एक ब्राह्मण से 'सुदेवाः' आदि मन्त्रों का जाप, दक्षिणा के साथ गौ-दान,शाकुन-सूक्त,वेद-शिरांसि आदि मन्त्रों का जाप कराने से पशु-पक्षियोंजन्य रोगों से निजात संभव है।