Breaking

रविवार, 21 फ़रवरी 2021

Aaj Ka Panchang 22 February 2021: सोमवार पंचांग से जानिए आज की तिथि, शुभ मुहूर्त; योग और राहुकाल

Aaj Ka Panchang 22 February 2021: सोमवार पंचांग से जानिए आज की तिथि, शुभ मुहूर्त; योग और राहुकाल


दिनांक : 22 फरवरी 2021

आज का पंचांग   


सूर्योदय का समय : प्रातः 06:53

सूर्यास्त का समय : सायं 06:16

 

चंद्रोदय का समय : दोपहर 01:22

चंद्रास्त का समय : प्रातः 03:50 (23 फरवरी)


तिथि संवत :-

दिनांक - 22 फरवरी 2021 

मास - माघ

पक्ष - शुक्ल पक्ष

तिथि - दशमी सोमवार सायं 05:16 तक रहेगी

अयन -  सूर्य उत्तरायण

ऋतु -  शिशिर ऋतु

विक्रम संवत - 2077

शाके संवत - 1942
 

सूर्यादय कालीन नक्षत्र :-

नक्षत्र - मृगशिरा नक्षत्र प्रातः 10:58 तक रहेगा इसके बाद आर्द्रा नक्षत्र रहेगा

योग - प्रीति योग कल प्रातः 05:24 तक रहेगा इसके बाद आयुष्मान योग रहेगा

करण - गर करण सायं 05:16 तक रहेगा इसके बाद वणिज करण रहेगा

ग्रह विचार :-

सूर्यग्रह - कुम्भ

चंद्रग्रह - मिथुन 

मंगलग्रह - वृषभ

बुधग्रह - मकर

गुरूग्रह - मकर

शुक्रग्रह - कुम्भ

शनिग्रह - मकर

राहु - वृषभ

केतु - वृश्चिकराशि में स्थित है

* शुभ समय *

अभिजित मुहूर्त :-

दोपहर 12:12 से दोपहर 12:58 तक  रहेगा

विजय मुहूर्त :-

दोपहर 02:29 से दोपहर 03:14 तक  रहेगा

गोधूलि मुहूर्त :-

सायं 06:05 से सायं 06:29 तक  रहेगा

निशिता मुहूर्त :-

रात्रि 12:09 से रात्रि 12:59 तक  रहेगा

ब्रह्म मुहूर्त :-

प्रातः 05:11 (23 फरवरीसे प्रातः 06:02 तक  रहेगा


* अशुभ समय * 

राहुकाल :-

प्रातः 08:19 से प्रातः 09:44 तक  रहेगा

गुलिक काल :-

दोपहर 02:00 से दोपहर 03:26 तक  रहेगा

यमगण्ड :-

प्रातः 11:09 से दोपहर 12:35 तक  रहेगा

दूमुहूर्त :-

दोपहर 12:58 से दोपहर 01:43 तक  रहेगा

दोपहर 03:14 से सायं 04:00 तक  रहेगा

वर्ज्य :-

सायं 07:55 से रात्रि 09:37 तक  रहेगा

भद्रा :-

प्रातः 05:46 (23 फरवरी) से प्रातः 06:52 तक  रहेगा

दिशाशूल :-

पूर्व दिशा की तरफ रहेगा यदि जरुरी हो तो घी खाकर यात्रा कर सकते है

चौघड़िया मुहूर्त :-

दिन का चौघड़िया 

प्रातः 06:53 से 08:19 तक अमृत का

प्रातः 08:19 से 09:44 तक काल का

प्रातः 09:44 से 11:09 तक शुभ का

प्रातः 11:09 से 12:35 तक रोग का

दोपहर 12:35 से 02:00 तक उद्वेग का

दोपहर 02:00 से 03:26 तक चर का

दोपहर बाद 03:26 से 04:51 तक लाभ का

सायं 04:51 से 06:16 तक अमृत का चौघड़िया  रहेगा


रात का चौघड़िया

सायं 06:16 से 07:51 तक चर का

रात्रि 07:51 से 09:25 तक रोग का

रात्रि 09:25 से 11:00 तक काल का

रात्रि 11:00 से 12:34 तक लाभ का

अधोरात्रि 12:34 से 02:09 तक उद्वेग का

रात्रि 02:09 से 03:43 तक शुभ का

प्रातः (कल) 03:43 से 05:18 तक अमृत का

प्रातः (कल) 05:18 से 06:52 तक चर का चौघड़िया रहेगा


आज विशेष :-

आज प्रीति योग में तेल दान करना शुभ फलदायी होता है मृगशिरा नक्षत्र में चंद्रमा का गंध फल फूल धूप व दीप आदि से पूजन करें तो सुख-सौभाग्य और संपत्ति मिलती है और वर्चस्व बढ़ता है


* सोमवार व्रत कथा *

विधि :-

सोमवार का व्रत साधारणतया दिन के तीसरे पहर तक होता है। व्रत में फलाहार या पारायण का कोई खास नियम नहीं है किन्तु यह आवश्यक है कि दिन रात में केवल एक समय भोजन करें। सोमवार के व्रत में शिवजी पार्वती का पूजन करना चाहिए। सोमवार के व्रत तीन प्रकार के हैं साधारण प्रति सोमवारसौम्य प्रदोष और सोलह सोमवारविधि तीनों की एक जैसी है। शिव पूजन के पश्चात् कथा सुननी चाहिए।

सोमवार व्रत कथा प्रारम्भ :- 

एक बहुत धनवान साहूकार थाजिसके घर धन आदि किसी प्रकार की कमी नहीं थी। परन्तु उसको एक दुःख था कि उसके कोई पुत्र नहीं था। वह इसी चिन्ता में रात-दिन रहता था और वह पुत्र की कामना के लिए प्रति सोमवार को शिवजी का व्रत और पूजन किया करता था तथा सायंकाल को शिव मन्दिर में जाकर के शिवजी के श्री विग्रह के सामने दीपक जलाया करता था। 

उसके इस भक्तिभाव को देखकर एक समय श्री पार्वती जी ने शिवजी महाराज से कहा कि महाराजयह साहूकार आप का अनन्य भक्त है और सदैव आपका व्रत और पूजन बड़ी श्रद्धा से करता है। इसकी मनोकामना पूर्ण करनी चाहिए। शिवजी ने कहा- हे पार्वती! यह संसार कर्मक्षेत्र है। जैसे किसान खेत में जैसा बीज बोता है वैसा ही फल काटता है। उसी तरह इस संसार में जैसा कर्म करते हैं वैसा ही फल भोगते हैं। 

पार्वती जी ने अत्यन्त आग्रह से कहा-'महराज! जब यह आपका अनन्य भक्त है और इसको अगर किसी प्रकार का दुःख है तो उसको अवश्य दूर करना चाहिएक्योंकि आप सदैव अपने भक्तों पर दयालु होते हैं और उनके दुःखों को दूर करते हैं। यदि आप ऐसा नहीं करेंगे तो मनुष्य आपकी सेवा तथा व्रत क्यों करेंगे।" पार्वती जी का ऐसा आग्रह देख शिवजी महाराज कहने लगे-'हे पार्वती! इसके कोई पुत्र नहीं है इसी चिन्ता में यह अति दुःखी रहता है। 

इसके भाग्य में पुत्र न होने पर भी मैं इसको पुत्र की प्राप्ति का वर देता हूँ। परन्तु यह पुत्र केवल 12 वर्ष तक जीवित रहेगा। इसके पश्चात् वह मृत्यु को प्राप्त हो जायेगा। इससे अधिक मैं और कुछ इसके लिए नहीं कर सकता।" यह सब बातें साहूकार सुन रहा था। इससे उसको न कुछ प्रसन्नता हुई और न ही कुछ दुःख हुआ। वह पहले जैसा ही शिवजी महाराज का व्रत और पूजन करता रहा। कुछ काल व्यतीत हो जाने पर साहूकार की स्त्री गर्भवती हुई और दसवें महीने उसके गर्भ से अति सुन्दर पुत्र की प्राप्ति हुई। 

साहूकार के घर में बहुत खुशी मनाई गई परन्तु साहूकार ने उसकी केवल बारह वर्ष की आयु जान कोई अधिक प्रसन्नता प्रकट नहीं की और न ही किसी को भेद ही बताया। जब वह बालक 11 वर्ष का हो गया तो उस बालक की माता ने उसके पिता से विवाह आदि के लिए कहा तो वह साहूकार कहने लगा कि अभी मैं उसका विवाह नहीं करूंगा। 

अपने पुत्र को काशी जी पढ़ने के लिए भेजूंगा। फिर साहूकार ने अपने साले अर्थात् बालक के मामा को बुला उसको बहुत सा धन देकर कहा तुम बालक को काशी जी पढ़ने के लिये ले जाओ और रास्ते में जिस स्थान पर भी जाओ यज्ञ करते हुए ब्राहमणों को भोजन कराते जाओ। वह दोनों मामा-भानजे यज्ञ करते और ब्राहमणों को भोजन कराते जा रहे थे। रास्ते में उनको एक शहर पड़ा। 

उस शहर में राजा की कन्या का विवाह था और दूसरे राजा का लड़का जो विवाह कराने के लिए बारात लेकर आया थावह एक आँख से काना था। उसके पिता को इस बात की बड़ी चिन्ता थी कि कहीं वर को देख कन्या के माता-पिता विवाह में किसी प्रकार की अड़चन पैदा न कर दें। इस कारण जब उसने अति सुन्दर सेठ के लड़के को देखा तो मन में विचार किया कि क्यों न दरवाजे के समय इस लड़के से वर का काम चलाया जाये। 

ऐसा विचार कर वर के पिता ने उस लड़के और मामा से बात की तो वे राजी हो गये। फिर उस लड़के को वर के कपड़े पहना तथा घोड़ी पर चढ़ा दरवाजे पर ले गये और सब कार्य प्रसन्नता से पूर्ण हो गया। फिर वर के माता पिता ने सोचा कि यदि विवाह कार्य भी इसी लड़के से करा लिया जाय तो क्या बुराई हैऐसा विचार कर लडके और उसके मामा से कहा-यदि आप फेरों का और कन्यादान के काम को भी करा दें तो आपकी बड़ी कृपा होगी और मैं इसके बदले में आपको बहुत कुछ धन दूंगा तो उन्होंने स्वीकार कर लिया और विवाह कार्य भी बहुत अच्छी तरह से सम्पन्न हो गया। 

परन्तु जिस समय लड़का जाने लगा तो उसने राजकुमारी की चुन्दड़ी के पल्ले पर लिख दिया कि तेरा विवाह तो मेरे साथ हुआ हैपरन्तु जिस राजकुमार के साथ भेजेंगे वह एक आँख से काना है और मैं काशी जी पढ़ने जा रहा हूँ। लड़के के जाने के पश्चात् उस राजकुमारी ने जब अपनी चुन्दड़ी पर ऐसा लिखा हुआ पाया तो उसने राजकुमार के साथ जाने से मना कर दिया और कहा कि यह मेरा पति नहीं है। मेरा विवाह इसके साथ नहीं हुआ है। वह तो काशी जी पढ़ने गया है। 

राजकुमारी के माता-पिता ने अपनी कन्या को विदा नहीं किया और बारात वापस चली गयीं। उधर सेठ का लड़का और उसका मामा काशी जी में पहुंच गये। वहाँ जाकर उन्होंने यज्ञ करना और लड़के ने पढ़ना शुरू कर दिया। जब लड़के की आयु बारह साल की हो गई उस दिन उन्होंने यज्ञ रचा रखा था कि लड़के ने अपने मामा से कहा-"मामाजी आज मेरी तबियत कुछ ठीक नहीं है।" मामा ने कहा- "अन्दर जाकर सो जाओ। 

लड़का अन्दर जाकर सो गया और थोड़ी देर में उसके प्राण निकल गए। जब उसके मामा ने आकर देखा तो वह मुर्दा पड़ा है तो उसको बड़ा दुःख हुआ और उसने सोचा कि अगर मैं अभी रोना-पीटना मचा दूंगा तो यज्ञ का कार्य अधूरा रह जाएगा। अतः उसने जल्दी से यज्ञ का कार्य समाप्त कर ब्राहाणों के जाने के बाद रोना- पीटना आरम्भ कर दिया। संयोगवश उसी समय शिव-पार्वतीजी उधर से जा रहे थे। जब उन्होंने जोर-जोर से रोने की आवाज सुनी तो पार्वती जी कहने लगीं-"महाराज! कोई दुखिया रो रहा है 

इसके कष्ट को दूर कीजिये। जब शिव-पार्वती ने पास जाकर देखा तो वहां एक लड़का मुर्दा पड़ा था। पार्वती जी के कहने लगी-महाराज यह तो उसी सेठ का लड़का है जो आपके वरदान से हुआ था। शिवजी कहने लगे-"हे पार्वती! इसकी आयु इतनी थी सो यह भोग चुका।" तब पार्वती जी ने कहा- "हे महाराज! इस बालक को और आयु दो नहीं तो इसके माता-पिता तड़प-तड़प कर मर जायेंगे।" पार्वती जी के बार-बार आग्रह करने पर शिवजी ने उसको जीवन वरदान दिया और शिवजी महाराज की कृपा से लड़का जीवित हो गया। शिव-पार्वती कैलाश पर्वत चले गये। 

तब वह लड़का और मामा उसी प्रकार यज्ञ करते तथा ब्राहाणों को भोजन कराते अपने घर की ओर चल पड़े। रास्ते में उसी शहर में आए जहां उसका विवाह हुआ था। वहां पर आकर उन्होंने यज्ञ आरम्भ कर दिया तो उस लड़के के ससुर ने उसको पहचान लिया और अपने महल में ले जाकर उसकी बडी खातिर कीसाथ ही बहुत दास-दासियों सहित आदर पूर्वक लड़की और जमाई को विदा किया। जब वह अपने शहर के निकट आए तो मामा ने कहा कि मैं पहले तुम्हारे घर जाकर खबर कर लेता हूँ। 

जब उस लड़के का मामा घर पहुंचा तो लड़के के माता-पिता घर की छत पर बैठे थे और यह प्रण कर रखा था कि यदि हमारा पुत्र सकुशल लौट आया तो हम राजी- खुशी नीचे आ जायेंगे नहीं तो छत से गिरकर अपने प्राण खो देंगे। इतने में उस लड़के के मामा ने आकर यह समाचार दिया कि आपका पुत्र आ गया है तो उनको विश्वास नहीं आया तब उसके मामा ने शपथपूर्वक कहा कि आपका पुत्र अपनी स्त्री के साथ बहुत सारा धन साथ लेकर आया है तो सेठ ने आनन्द के साथ उसका स्वागत किया और बड़ी प्रसन्नता के साथ रहने लगे। इसी प्रकार से जो कोई भी सोमवार के व्रत को धारण करता है अथवा इस कथा को पढ़ता या सुनाता है उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है।